नील गायनील गाय

नील गाय – नील गाय या रोजा या फिर घोड़परास खेती के लिए खतरा

पंकज चतुर्वेदी

दो राज्यों के बीच फैले बुंदेलखंड में  सड़कें बहुत अच्छी बन गई हैं  लेकिन  सड़कों पर चलना जानलेवा होता जा रहा है । आए रोज सड़कों पर  तेज गति से चल रही कार- मोटर साइकिल से  आवागमन करने वालों से एशिया की सबसे बड़ी हिरण प्रजाति रोजड या रोजा का सामना हो जाता है ।  वाहन तो चकनाचूर होता ही है , चोटें लोगों की मौत का कारण बन चुकी है ।

मालवा के मंदसौर –नीमच में  अफीम के कई  किसान  इस पशु के डर से  खेती छोड़ चुके हैं । हालांकि कभी इनकी गणना हुई नहीं लेकिन अंदाज है कि सारे देश में नील गाय या रोजा या फिर घोड़परास किसानी के लिए खतरा बने हुए हैं । इस बलिष्ठ पशु का बड़ा झुंड जब किसी खेत-खलिहान में घुसता है तो वहाँ केवल तबाही होती है । इसे न किसी लाठी का डर होता है और न ही यह इंसान पर हमला करने से डरता है ।

हाल ही में बिहार में राज्यभर में 3909 घोड़परास  या नील गाय  को मारने के लिए कोई छह सौ निशंबाजों को काम सौंपा गया है । इनमें सर्वाधिक घोड़परास की संख्या पूर्वी चंपारण में 576 है । समस्तीपुर से लेकर सारण, वैशाली  और नालंदा तक आम लोगों की अर्जियाँ आई है कि उनके यहाँ नील गए के आतंक से मुक्ति के लिए मारने की अनुमति दी  जाए । बीते वर्ष  बिहार में आधिकारिक रूप से 4279 नील गाय को मारा गया था जिनमे सर्वाधिक उस वैशाली जिले में मारे गए जहां अहिंसा के पुजारी गौतम बुद्ध का अंतिम उपदेश और अपरिनिर्वं की घोषणा की थी । यहाँ  3057  नील गायों को  गोली से उड़ा  दिया गया था । 

गिर फाउंडेशन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण (2020-21) के अनुसार, गुजरात में नीलगाय की आबादी पिछले 10 वर्षों में 117.27% बढ़ी है । 2011 में यह 1,19,546 थी, जो बढ़कर 2,51,378 हो गई है । बनासकांठा, पाटन और अमरेली में इनकी संख्या सबसे अधिक है । गौर करें कि अमरेली तो एशियाई गिर शेर का सबसे बड़ा कुनबा है और ऐसे ही जंगली पशु उनका आहार होते हैं । इसके बावजूद उनकी संख्या बढ़ने का असल कारण  इनकी तेज प्रजनन दर  और  गिर शेर का इस ताकतवर जानवर से उलझने से बचने का स्वभाव है ।

उत्तर प्रदेश के  राज्य कृषि विभाग के अनुसार, पूरे प्रदेश में लगभग 2.33 लाख (233,000) नीलगाय हैं । ललितपुर और इटावा जैसे जिलों में इनका प्रकोप ज्यादा है । राजस्थान के  2015 के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में नीलगाय की संख्या 55,000 से अधिक थी ।  हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर और कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों में भी नीलगाय की आबादी पाई जाती है और कुछ जगहों पर यह काफी अधिक है।

भले ही राज्यों में इनके नाम अलग- अलग हों लेकिन सभी जगह इनका आतंक एक जैसा है । नीलगाय के लगातार हमलों से किसान बहुत परेशान और निराश हैं। कई मामलों में, इस नुकसान के कारण किसानों को अपनी खेती छोड़नी पड़ रही है या वे दूसरी फसलें लगाने से हिचकिचा रहे हैं। कुछ मामलों में, भारी नुकसान से निराश होकर किसानों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें भी आई हैं। नीलगाय से फसलों को बचाने के लिए किसानों को लगातार रात-दिन खेतों की रखवाली करनी पड़ती है, जो थका देने वाला काम है।

 इसके अलावा, बाड़ लगाने या अन्य उपाय करने में भी काफी खर्च आता है, जो छोटे किसानों के लिए मुश्किल होता है।हालांकि कुछ राज्यों में नीलगाय को मारने की अनुमति दी गई है, यह एक संवेदनशील मुद्दा है। कई लोग नीलगाय को “गाय” से जुड़ा होने के कारण मारना पसंद नहीं करते, जिससे समस्या और बढ़ जाती है। देश के अभूत से इलाकों में नीलगाय से फसलों को बहुत गंभीर खतरा है, जो किसानों की आर्थिक स्थिति और कृषि  गतिविधियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है। इसके समाधान के लिए प्रभावी और टिकाऊ उपायों की आवश्यकता है।

तो क्या केवल उनकी हत्या कर देना ही  नील गाय  का एकमात्र निदान है ? पिछले साल पंजाब कृषि  विश्व विद्यालय  में सुश्री कीरं रानी और भूपेंदार कौर बब्बर का एक शोध कार्य प्रकाश में आया था – मिटीगेटिग ब्लू बुल मेनान्स : एसेसिंग सट्रेजीस फॉर सस्टैनबल  ऐग्रिकल्चर , जिसमें  नील गाय  से खेती को निरापद रखने के बहुत से विकल्प बताए थे ।  

एनआईएससीपीआर और रिसर्चगेट में प्रकाशित  शोध के अनुसार, प्राकृतिक और रासायनिक दोनों प्रकार के निरोधक के जरिए  जानवरों को डरा कर उनकी नुकसान करने की आदत  को काफी कुछ कम किया जा सकता है । खेतों के चारों तरफ बाड़, खाइयां और गड्ढे नील गायों को खेतों में प्रवेश करने से रोक सकते हैं।    सोलर  शक्ति से संचालित बिजली की बाड़ अधिक प्रभावी निवारक हो सकते हैं, लेकिन इनके लिए उचित डिजाइन और रखरखाव की आवश्यकता होती है।  

 रिसर्चगेट की रिपोर्ट के अनुसार  नायलॉन  या  लोहे की जंजीर की कम से कम 7 फीट ऊंची बाड़ प्रभावी होते हैं ।  शोध में बताया गया है कि  फसलों के चयन को ले कर थोड़ी सावधानी भी इस जानवर की खेत से दूरी बना सकती है ।  ऐसी फसलें चुनें जिन्हें नील गायों द्वारा खाने की संभावना कम हो ।   तोरिया , तंबाकू, लेमन ग्रास , नागफनी, रामदाना आदि पर यह जानवर मुंह नहीं मारता । यदि खेत के बाहरी तरफ इन फसलों को बोया जाए तो यह खेत में घुसेगी नहीं ।  हालंकी यह तरीका आंशिक ही सफल है – एक तो यदि इसे भूख लगे तो यह कुछ भी कहा लेता है, दूसरा इसकी लंबी छलांग  लगाने की भी क्षमता होती है ।

 फसलों को बदलने से नील गायों के आहार पैटर्न में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।   यह वैज्ञानिक भी स्वीकारते हैं कि पारंपरिक तरीके जैसे गौमूत्र, पशु मल या दुर्गंधयुक्त मिश्रण का प्रयोग नील गायों को रोकने में सहायक हो सकता है।    इसके अलावा फोरेट और फिनाइल घोल जैसे रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग निवारक के रूप में किया जा सकता है, लेकिन उनकी प्रभावशीलता सीमित है।

चूंकि ये भारतीय  उपमहाद्वीप में मिलने वाल जानवर है  अतः इससे निबटने के उपाय स्थानीय अधिक है ।  दो बातें विचार करना ही होगा – आखिर यह शाकाहारी जानवर बस्ती की तरफ क्यों आ रहा है ? क्या  घने जंगलों की घटती संख्या और जंगलों में  इनके अनुरूप हरियाली कम हो रही है । दूसरा जब सारे देश में  शेर वर्ग के जानवर बढ़ रहे हैं , और तेंदुए जैसे जानवर आए रोज बस्ती में शिकार करने आ रहे  है । फिर भी नील गाय उनका आहार क्यों नहीं हो रहा ? आश्चर्यजनक है कि जंगल में जानवरों की प्रकृति बदल रही हैं ।

 शेर- तेंदुए आदि की संख्या कम हो रही है और वे छोटे झुंड या अकेले ही अपना इलाका बना रहे हैं । वहीं नील गाय के झुंड बड़े हो रहे हैं । इस जानवर का वजन 200 से 300 किलो तक होता है और शेर आदि अपने वजन से अधिक के शिकार को मारने से बचते हैं । गिर राष्ट्रीय उद्यान (गुजरात) में किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि शेरों के आहार में सांभर और नीलगाय एक उचित मात्रा में होते हैं, लेकिन चीतल जैसे अधिक प्रचुर और आसान शिकार पर उनकी निर्भरता अधिक होती है । तेंदुओं के आहार में मुख्य रूप से 10-40 किलोग्राम के बीच के शिकार शामिल होते हैं, हालांकि वे अवसर मिलने पर नीलगाय के शावकों का शिकार कर सकते हैं।

हो सकता है  शिकार कर मार देना इस समस्या  का तात्कालिक उपाय हो लेकिन किसी भी इतने बड़े जानवर को  इस तरह से बड़ी संख्या में मार देना  जंगल के नैसर्गिक न्याय के विपरीत है । इसके लिए वन्य प्रबंधन । इनके वजन और झुंड को बढ़ने से रोकना । इनके पसंद के भोजन की वनस्पति को अपेक्षाकृत गहने जंगलों में अधिक उपजाना  जैसे  कुछ उपाय  किए जा सकते हैं  ।