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तपते द्वीप में बदलते शहरः पंकज चतुर्वेदी

अप्रेल महिना शुरू होते ही एक तरफ मौसम विभाग ने चेताया कि  गर्मी और लू का असर  झेलने को जल्द तैयार हो जाएँ तो केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग ने भी राज्यों को बताया दिया है कि बढ़ती गर्मी पर निगाह रखें  और लोगों को इससे सतर्क रहने के लिए जागरूक करें । चिंता की बात यह है कि गंगा-यमुना के मैदानी इलाकों में लू का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है , खासकर यहाँ बढ़ रहे शहरों में तपन का एहसास समय से पहले और सीमा से अधिक है । खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश  जो कि गंगा-यमुना दे दोआब के साथ-साथ बहुत सी छोटी- माध्यम नदियों का घर है और कभी घने  जंगलों  के लिए जाना जाता था , बुंदेलखंड की तरह तीखी गर्मी की चपेट में आ  रहा है । यहाँ पेड़ों की पत्तियों में नमी  के आकलन से पता चलता है कि आने वाले दशकों में हरित प्रदेश कहलाने वाला  इलाका बुंदेलखंड की तरह सूखे- पलायन-निर्वनीकरण का शिकार हो सकता है । खासकर इस क्षेत्र में जहां शहरीकरण का विस्तार हुआ, वहाँ लू और गर्मी का विस्तार अधिक हुआ।  

भारत के विश्वविध्यालयों  में  आपदा प्रबंधन के नेटवर्क में हो रहे शोध बताते हैं कि लू का देर बढ़ने और क्षारीकरण के विस्तार में सीधा संबंध हैं । यह सरकार का रिकार्ड बताया रहा है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में अब हर साल लगभग 272 “लू – दिन” दर्ज किए जा रहा हैँ । तकनीकी भाषा में इसे “अरबन हीट आई लेंड “ अर्थात शहरी ताप द्वीप “ प्रभाव कहा जा सकता है ।  जब किसी शहर में उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले तापमान अधिक बढ़ जाता है तो उसे अर्बन हीट आइलैंड कहते है। शहर अर्थात ऊंची इमारतें , हरियाली, खासकर पारंपरिक पेड़ों की कमी, जल-निधियों जैसे तालाब- जोहड़ और नदी का दायरा घटना । 

यही वे कारण है जो किसी शहर में गर्मी की मार को जानलेवा बना देते हैं। इसके कुप्रभावों को चौगुना करने में कंक्रीट की ऊंची इमारतें , इनमें लगे एयरकंडीशनर से निकलने वाली गर्मी, वाहनों के चलने से उत्सर्जित ऊष्मा और यातायात  थमने से उपजने वाली गैस भी शहरों को  तपा रही हैं । शहरों की गगनचुम्बी इमारतों की कंक्रीट भी गर्मी की विस्तारक हैं , ये भवन सूर्य की तपन  से गर्मी को परावर्तित और अवशोषित करते हैं। इसके अलावा, एक-दूसरे के करीब कई ऊंची इमारतें भी हवा के प्रवाह में बाधा बनती हैं, इससे शीतलन अवरुद्ध होता हैं।  

शहरों की सड़कें उसका तापमान बढ़ने में बड़ी कारक हैं ।  महानगर में सीमेंट और कंक्रीट के बढ़ते जंगल, डामर की सड़कें और ऊंचे ऊंचे मकान बड़ी मात्रा में सूर्य की किरणों को सोख रहे हैं। इस कारण शहर में गर्मी बढ़ रही है।वाहनों के चलने और इमारतों
में लगे पंखे
, कंप्यूटर, रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर जैसे बिजली के उपकरण भले ही इंसान को सुख देते हों लेकिन  ये शहरी अप्रिवेश का तापमान बढ़ने में बड़ी भूमिका अदा करते हैं । फिर कारखाने , निर्माण कार्य और बहुत कुछ है जो शहर को उबाल रहा है ।

 

अंतरराष्ट्रीय  संगठनों के सहयोग से तैयार  जलवायु पारदर्शिता रिपोर्ट -2022  के अनुसार वर्ष 2021 में भीषण गर्मी के चलते भारत में सेवा, विनिर्माण, खेती और निर्माण क्षेत्रों में लगभग 13 लाख करोड़ का नुक्सान हुआ, रिपोर्ट कहती है कि गर्मी बढ़ने के प्रभाव के चलते 167 अरब घंटे संभावित श्रम का नुक्सान हुआ जो सन 1999 के मुकाबले 39 प्रतिशत अधिक  है । इस रिपोर्ट के अनुसार तापमान में डेढ़ फीसदी इजाफा होने पर बाढ़ से हर साल होने वाला नुकसान  49 प्रतिशत बढ़ सकता है । गर्मी बढ़ेगी तो समुद्र का तापमान भी बढ़ेगा और इससे उपजने वाले चक्रवात से होने वाली तबाही में भी इजाफा होगा ।

लेंसेट काउंट डाउन की  रिपोर्ट कहती है कि भारत में -2000-2004 और2017 – 21  के बीच भीषण गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या में 55 प्रतिशत का उछाल आया है ।  बढ़ते तापमान से स्वास्थ्य प्रणाली पर हानिकारक असर हो रहा है । मार्च-24 में संयुक्त राष्ट्र के खाध्य और कृषि संगठन (एफ ए ओ ) ने भारत में एक लाख लोगों के बीच सर्वे कर एक रिपोर्ट में बताया है कि गर्मी/लू के कारण गरीब परिवारों को अमीरों की तुलना में पाँच फीसदी अधिक आर्थिक नुकसान होगा। चूंकि आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग बढ़ते तापमान के अनुरूप अपने कार्य को ढाल लेते हैं , जबकि गरीब ऐसा नहीं कर पाते ।

शहरों का बढ़ता तापमान न केवल पर्यावरणीय संकट है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक त्रासदी-असमानता और संकट का कारक भी बनेगा , गर्मी अकेले शरीर को नहीं प्रभावित करती, इससे इंसान की कार्यक्षमता प्रभावित होती है , पानी और बिजली की मांग बढती है , उत्पादन लागत भी बढती है ।  

अमरीका की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के शीर्ष वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के मुताबिक बढ़ती आबादी और गर्मी के कारण देश के चार बड़े शहर नई दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। पूरी दुनिया में बांग्लादेश की राजधानी ढाका इस मामले में पहले पायदान पर है। कोलकाता में बढ़ते जोखिम के पीछे 52 फीसदी गर्मी तथा 48 फीसदी आबादी जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बाहरी भीड़ को नही रोका गया तो तापमान तेजी से बढ़ेगा यह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित होगा।

इस समय अनिवार्य है कि शहरों में रहने वाले श्रमजीवियों के लिए लू- भीषण गर्मी से जूझने में अनुकूल परिवेश और कार्य समय निर्धारित किया जाए । जिन्हें मजबूरी में  खुले में रहना है उन्हें  छाँव मिले, साफ पानी मिले इसके लिए सरकार और समाज दोनों को साथ आना होगा । यदि शहरों को उमरभरी गर्मी और उससे उपजने वाली लू की मार से बचना है तो अधिक से अधिक  पारम्परिक पेड़ों का रोपना  जरुरी है।

शहर के बीच बहने वाली नदियाँ, तालाब, जोहड़ आदि यदि निर्मल और अविरल  रहेंगे तो बढ़ी गर्मी को सोखने में ये सक्षम होंगे । खासकर बिसरा चुके कुएं और बावड़ियों को जीलाने से जलवायु परिवर्तन की इस त्रासदी से बेहतर तरीके से निबटा जा सकता है । कार्यालयों के समय में बदलाव, सार्वजनिक  परिवहन को बढ़ावा, बहु मंजिला भवनों का ईको फ्रेंडली होना , उर्जा संचयन सहित कुछ ऐसे उपाय हैं जो बहुत कम व्यय में शहर को भट्टी बनने  से बचा सकते हैं।  हां – दूरगामी  उपाय तो शहरों की तरफ बढ़ रहे पलायन रोकना ही होगा ।  

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