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जलवायु परिवर्तन और घटती वर्षा ऋतु

जलवायु परिवर्तन और घटती वर्षा ऋतु: कम दिनों में अत्यधिक वर्षा का वैज्ञानिक विश्लेषण

जलवायु परिवर्तन और घटती वर्षा ऋतु: कम दिनों में अत्यधिक वर्षा का वैज्ञानिक विश्लेषण

कम दिनों में अत्यधिक वर्षा का वैज्ञानिक विश्लेषण

अजय सहाय

वर्तमान समय में वैश्विक जलवायु परिवर्तन (Climate Change) भारतीय उपमहाद्वीप समेत पूरे विश्व के वर्षा चक्र (Rainfall Cycle) को असंतुलित कर चुका है, जिससे भारत में मानसून अवधि (Monsoon Duration) लगातार घटती जा रही है और अत्यधिक वर्षा (Extreme Rainfall) की घटनाएं बढ़ रही हैं, यदि ऐतिहासिक आंकड़ों का विश्लेषण करें तो 1951 से 1960 के दशक में भारतीय वर्षा ऋतु सामान्यतः 120 से 150 दिनों तक सक्रिय रहती थी, जिसमें जून से सितंबर तक संतुलित वर्षा होती थी, किंतु 1990 के बाद से यह अवधि घटने लगी और अब 2020 के दशक में औसतन 90 से 100 दिनों तक ही सिमट गई है।

 IMD के अनुसार वर्षा ऋतु की औसत अवधि में लगभग 25 से 30 दिनों की कमी दर्ज की गई है, जबकि अत्यधिक वर्षा वाले दिन (Extreme Rainfall Days) 1901-1950 के मुकाबले दोगुने हो चुके हैं, इसका प्रमुख कारण है वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Warming) जो IPCC AR6 रिपोर्ट के अनुसार 1880 से 2023 तक 1.2°C बढ़ चुका है, वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार वायुमंडलीय तापमान बढ़ने से वायुमंडल की जलवाष्प धारण करने की क्षमता (Moisture Holding Capacity) हर 1°C पर 7% बढ़ जाती है, इससे अधिक मात्रा में जलवाष्प एकत्र होता है और यह जब वर्षा में परिवर्तित होता है तो कम समय में भारी मात्रा में वर्षा होती है, जिसे ‘Moisture Convergence’ और ‘Convective Burst’ कहा जाता है,

भारत में अब मानसून की शुरुआत औसतन 10-15 दिन विलंबित हो रही है और वापसी भी जल्दी हो रही है, इसका मुख्य कारण है महासागरीय ऊष्मा धाराएं (Oceanic Heat Currents) और समुद्र सतह तापमान (Sea Surface Temperature – SST) में वृद्धि, CSIR-NIO और IITM Pune के अध्ययन अनुसार अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में SST औसतन 0.8°C से 1.2°C बढ़ चुका है, जिससे मानसूनी हवाएं अधिक नमी लेकर आती हैं और यह नमी अचानक वर्षा के रूप में गिरती है, इसी कारण ‘Short Intense Rainfall Events’ बढ़े हैं, ENSO (El Niño Southern Oscillation) तथा Indian Ocean Dipole (IOD) जैसे महासागरीय घटनाएं भी वर्षा ऋतु की अवधि घटाने में सहायक हैं ।

 वर्ष 2023 में El Niño के प्रभाव से भारत के कई हिस्सों में अत्यधिक वर्षा और सूखे की घटनाएं एक साथ देखी गईं, इसके अलावा ‘Arctic Amplification’ जिसमें आर्कटिक का तापमान वैश्विक औसत से 4 गुना तेज़ बढ़ रहा है, भारतीय मानसून को प्रभावित कर रहा है, इससे Jet Streams अर्थात ऊपरी वायुमंडलीय हवाएं अनियमित हो गई हैं, पहले ये हवाएं भारत में मानसून को समय पर लाती थीं पर अब ये विलंब से आती हैं और अल्प समय में अधिक वर्षा कर जाती हैं, इसी प्रक्रिया को ‘Jet Stream Shifting’ कहा जाता है ।

‘Heat Dome Effect’ भी मानसून को असंतुलित कर रहा है, जब उच्च दबाव प्रणाली से कोई क्षेत्र अत्यधिक गर्मी के घेरे में आ जाता है तो वहां बादलों का विकास रुक जाता है जिससे मानसून विलंबित होता है, भारत में राजस्थान, पंजाब और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में 2022 व 2023 में Heat Dome Effect देखा गया, जिससे मानसून 15 से 20 दिन देर से आया और बाद में अत्यधिक वर्षा हुई ।

वनों की कटाई (Deforestation) भी वर्षा ऋतु की अवधि को प्रभावित कर रही है क्योंकि वनों के नष्ट होने से स्थानीय जलवाष्प चक्र बाधित होता है और सतही परावर्तन क्षमता (Albedo) बढ़ जाती है जिससे पृथ्वी की सतह गर्म होती है, ISRO के अनुसार भारत के वनों में 2.3% की गिरावट 2001 से 2021 के बीच दर्ज हुई है, जिससे मानसूनी स्थिरता गड़बड़ा गई है, भारत में जल निकायों का अतिक्रमण (Encroachment of Water Bodies) और शहरीकरण (Urbanization) भी मुख्य कारण हैं, शहरों में सीमेंटेड सतह (Impermeable Surfaces) के कारण जल अवशोषण घटता है, जिससे भूमि की सतही नमी कम होती है और मानसून असंतुलित होता है ।

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोध के अनुसार Bengaluru, Mumbai, Delhi, Hyderabad में वर्षा ऋतु का 30 से 40% हिस्सा अब अचानक अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में केंद्रित हो गया है, भारत के 64% हिस्से में वर्षा ऋतु का आरंभ 10-15 दिन विलंबित हो रहा है, IMD की 2024 रिपोर्ट के अनुसार पिछले 30 वर्षों में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में 35% वृद्धि दर्ज हुई है ।

Climate Resilience India की रिपोर्ट अनुसार हिमालय और वेस्टर्न घाट्स जैसे क्षेत्रों में अब 45% वर्षा केवल 20-30 दिनों में हो जाती है, वैज्ञानिकों के अनुसार इस स्थिति को ‘Compounding Climatic Disaster’ कहा जाता है जहां सूखा, बाढ़ और जल संकट एक साथ उत्पन्न होते हैं, उदाहरण के लिए Himachal Pradesh, Uttarakhand, Sikkim, और Maharashtra में 2023 में महज 3-5 दिनों में 300 mm से 800 mm वर्षा हुई जिससे विनाशकारी बाढ़ें आईं, वहीं पूरे मानसून में बाकी दिन शुष्क रहे, यही ‘Shortened Monsoon Period’ का प्रभाव है ।

 महासागरों के तापमान बढ़ने से मानसूनी हवाएं अधिक नमी लेकर आती हैं परंतु जब वायुमंडलीय तापमान अंतर बढ़ता है तो पूरी नमी अत्यधिक कम समय में गिरती है जिसे ‘Convective Burst’ कहा जाता है, वनों की कटाई से स्थानीय तापमान बढ़ता है जिससे वर्षा चक्र अनियमित हो जाता है, Planetary Boundaries के अनुसार ‘Freshwater Use’ और ‘Climate Change’ जोखिम अपने उच्चतम स्तर पर हैं, IPCC व WMO की रिपोर्ट के अनुसार मानसून का असंतुलन बढ़ रहा है, भारत सरकार के MoEFCC के अनुसार 2030 तक वर्षा ऋतु की अवधि औसतन 15-20 दिन और घटने की आशंका है ।

IITM Pune के मॉडलिंग अध्ययन में कहा गया है कि 2100 तक वर्षा ऋतु घटकर औसतन 60-75 दिन रह सकती है, जबकि अत्यधिक वर्षा वाले दिन 25 से 30 तक हो सकते हैं जिससे बाढ़, जलभराव, फसल नुकसान व जल संकट साथ-साथ बढ़ेंगे, Indian Ocean Dipole (IOD) के अनियमित होने से मानसून में चक्रीय असंतुलन (Monsoon Oscillation) बढ़ा है, अब IOD के Positive Phase में भी वर्षा कम हो रही है, वहीं ENSO की गतिविधियों के साथ मानसून का समन्वय टूट गया है ।

पहले ENSO Neutral Years में सामान्य मानसून होता था लेकिन अब इन वर्षों में भी अत्यधिक वर्षा या सूखा देखने को मिल रहा है, NASA के अध्ययन अनुसार Arctic Ice Loss से Northern Hemisphere में Weather Blocking Events बढ़ रहे हैं, जिससे भारत में मानसून पैटर्न बाधित हो रहा है, इसी से जुड़े ‘Rossby Waves’ का विक्षोभ भी मानसून की अनियमितता बढ़ा रहा है, साथ ही ‘Stratospheric Warming Events’ भी वैश्विक जेट स्ट्रीम्स को असंतुलित कर रहे हैं ।

 जिससे मानसून की दिशा, समय और तीव्रता सभी प्रभावित हो रहे हैं, इसी कारण भारत में अल्प अवधि में अत्यधिक वर्षा और लंबे शुष्क कालखंड की घटनाएं बढ़ रही हैं, ‘Urban Heat Island Effect’ अर्थात शहरी क्षेत्रों में अधिक तापमान के कारण स्थानीय मानसून असंतुलन हो रहा है, IMD के अनुसार Delhi, Mumbai, Chennai, Hyderabad जैसे शहरों में 15% तक मानसून पैटर्न बदल चुका है, वहीं Wetland Loss भी एक बड़ा कारण है, भारत के Wetlands Research Center के अनुसार पिछले 40 वर्षों में भारत के 30% वेटलैंड्स खत्म हो चुके हैं जिससे मानसूनी जल संचयन क्षमता घट गई है ।

 वैज्ञानिकों का मत है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं हुआ, तो मानसून की यह असंतुलनकारी प्रवृत्ति कृषि, जल, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा के लिए बड़ा संकट बन जाएगी, वैज्ञानिक समाधान के रूप में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन, वर्षा जल संरक्षण, वनों का संरक्षण, जल निकायों का पुनर्जीवन, सतत कृषि व शहरी हरियाली विकास पर ध्यान देना अनिवार्य है अन्यथा मानसून का असंतुलन भारत की 65% कृषि आधारित जनसंख्या, 50% ग्रामीण अर्थव्यवस्था और 60 करोड़ शहरी नागरिकों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।

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