दुनिया के सामने एक और व्यापक संकट माईक्रोप्लास्टिक
अमनदीप नारायण सिंह
आज दुनिया के सामने एक और व्यापक संकट माईक्रोप्लास्टिक के रूप में खड़ी है, जो जल्द से जल्द नियमन और नियंत्रण की मांग कर रहा है । माईक्रोप्लास्टिक ना केवल पर्यावरण के लिए हीं अपितु मानव स्वास्थय के लिए भी संकट का विषय है ।हाल ही में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के हवाले से यह खबर आई की लगभग लगभग भारत में हर ब्रांड के नमक और चीनी में माईक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी दर्ज की गई।
यह अत्यंत चिंताजनक है कि हमारै दैनिक इस्तेमाल की वस्तुएं में भी माईक्रोप्लास्टिक का संक्रमण बहुत सघन हो चुका है । रिपोर्ट ,के अनुसार , नमक के नमूनों में 6.17 से 89.15टुकडे, जबकि चीनी के नमूनों में यह मात्रा 11.85 से 68.25 टुकडे प्रति किलोग्राम तक पाई गई है ।
माईक्रोप्लास्टिक का सर्वव्यापक होना प्लास्टिक प्रदूषण का दुष्परिणाम है । प्लास्टिक की हर जगह मौजूदगी , कारखाने हों, घर हों, दफ़तर हो,बाजार हो हर जगह धडहल्ले से हो रहे इसका उपयोग किसी ना किसी रूप में पर्यावरण में मौजूद रहता है और मृदा, वायु और जल संक्रमण का कारण बनता है ।
मार्च 2024 में आई एक रिपोर्ट के हवाले से खबर आई कि भारत अब दुनिया के शिर्ष 4 देशों में से है जो अधिक मात्रा में प्लास्टिक उत्सर्जन करता है । वहीं दुनिया भर की बात करें तो करीब करीब 40 करोड टन प्रतिवर्ष प्लाटिक कचरा पैदा होती है जो कि 1940-1950 के दशक से कई गुना अधिक है और आने वाले 10 सालों में इसकी दुगुना होने कि आशंका जताई जा रही है ।गौरतलब है कि इस प्लास्टिक प्रदूषण में अधिकतर कचरे सकल उपयोग वाले हैं। प्लास्टिक का अंधाधुन इस्तमाल ना तो पारिस्थितकी तंत्र और ना हीं मानव स्वास्थय के लिए सही है ।
प्लास्टिक की सर्वव्यापकता कई तरीके की खतरे खडी कर सकती है ।
मृदा में पाई जाने वाली प्लास्टिक से भूमि कि उत्पादक क्षमता को कम करती है और इसका सीधा प्रभाव फसलोत्पादन में देखने को मिल सकता है जोकि अंततः हमारे खाद्द सुरक्षा पर भी नकारात्म प्रभाव डालेगा ।
वायु में फैले माईक्रोप्लास्टिक के कण मानव और जीवों के श्वास तंत्र के जरिये उनके फेफडे तक पहुंच कर कई प्रकार के गंभीर रोग उत्पन्न कर सकता है।
माईक्रोप्लास्टिक (5 mm से कम) के रूप में प्लास्टिक के छोटे कणों का सकेंद्रण गंभीर स्वास्थय संकट खडे करती है , और इन्हीं कणों के असंख्य टुकडे का सघन केंद्रण पृथ्वी की औसत तापमान बढाती है जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को और रफ्तार मिलेगी ।
इस संकट के सामाधन के लिए प्लास्टिक का उपभोग कम करना होगा । अलग अलग तरह की सुरक्षित विकल्पों की तालाश करनी होगी । सरकार के स्तर पर कड़ा नियमन और नियंत्रण , नए नए विकल्पों में सहयोग , प्लास्टिक कचरा के प्रती जन जागरण तथा खाद्द क्षेत्रों में कडी निगरानी और नियमन । इन सभी के साझा प्रयासों से हीं प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम लगाया जा सकता है।