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ऐसी दिल्ली को तो डूबना ही था

ऐसी दिल्ली को तो डूबना ही था

ऐसी दिल्ली को तो डूबना ही था

बमुश्किल एक घंटे की बरसात में ही दिल्ली ठिठक गई

पंकज चतुर्वेदी

इस बार बीते डेढ़ महीने में राजधानी दिल्ली पर कुल चार  बार ठीकठाक बादल बरसे और बमुश्किल एक घंटे की बरसात में ही दिल्ली ठिठक गई । तीन दशकों से लाख दावों के बावजूद  हर साल  जल भराव वाले स्थानों की संख्या बढ़ रही है । 2023 में जहां जलभराव के 308 बिंदु चिन्हित किए गए थे, वहीं 2025 में इनकी संख्या बढ़कर 410 हो गई है। अब तो डूबने का दायरा वी आई पी कहलाने वाली लुटियन  दिल्ली तक आ गया है । पानी भरते ही  दो बातें  सामने आती हैं – एक तो  इस महीने या फिर इतने कम समय में इतना अधिक पानी कितने साल बाद बरसा। दूसरा नायलॉन की सफाई और सीवर तंत्र का  पुराना  होना ।

 समझना यह होगा कि दिल्ली  बसी  ही इस लिए थी कि  यहाँ से यमुना बह रही थी । दिल्ली का जलभराव हो या फिर प्यास, उसका एकमात्र इलाज यमुना ही है । हमारे पुरखों ने दिल्ली के हर कौने  से जमा जल को  यमुना या फिर  तालाबों तक पहुँचाने  की नैसर्गिक व्यवस्था की  थी जिसे आधुनिकता ने उजाड़ दिया । इस समस्या का निदान तकनीकी तंत्र के विस्तार से कहीं अधिक पारंपरिक ज्ञान को पुनर्स्थापित करने में है ।  

जिस शहर के बीचों बीच से  22 किलोमीटर तक यमुना बहती है , वह  शहर अपनी प्यास बुझाने को उसी यमुना का पानी 104 किलोमीटर  दूर करनाल से मूनक नहर के जरिए लेता है । जिन जल- तिजोरियों को  बरसात की हर बूंद  को सहेजने के लिए इस्तेमाल किया जाना था , उसे “रियल एस्टेट “ मान  लिया गया  और कुदरत की नियामत बरसते ही, बेपानी विशालकाय शहर की  पूरी सड़कें, कालेनियां पानी से लबालब हो जाती हैं ।

 काश केवल यमुना को अविरल बहने दिया होता, उससे जुड़े तालाबों और नहरों को जीवन दे दिया जाए तो दिल्ली से दुगने बड़े शहरों को पानी देने और बारिश के चरम पर भी हर बूंद को अपने में समेट  लेने की क्षमता इसमें हैं । दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी की अप्रैल 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में कुल 1,046 जल निकाय (तालाब, जोहड़, झील आदि) हैं लेकिन केवल 656 ही अस्तित्व में पाए गए, बाकी 635 जलाशय सिर्फ कागजों में हैं या उनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है। यही वे जल तिजोरियाँ हैं जो  हर किस्म की बरसात को अपने में समेट लेने की क्षमता रखती थीं ।

दिल्ली में जल भराव का कारण यमुना का गाद और कचरे के  कारण इतना उथला हो जाना है कि यदि महज एक लाख क्यूसेक पानी आ जाए तो इसमें बाढ़ या जाती है  । नदी की जल ग्रहण  क्षमता को कम करने में बड़ी मात्रा में जमा गाद (सिल्ट), रेत, सीवरेज, पूजा-पाठ सामग्री, मलबा और तमाम तरह के कचरे का योगदान है । नदी की गहराई कम हुई तो इसमें पानी भी कम आता है । आजादी के 77  साल में कभी भी नदी की गाद साफ करने का कोई प्रयास हुआ ही नहीं , जबकि नदी में  कई निर्माण परियोजनाओं के मलवे को डालने से रोकने में एन जी टी के आदेश नाकाम रहे हैं । 

सन 1994 से लेकर अब तक यमुना एक्शन प्लान के तीन चरण आ चुके हैं, हजारों करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं पर यमुना में गिरने वाले दिल्ली के 21 नालों की गाद भी अभी तक नहीं रोकी जा सकी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश भी बेमानी ही साबित हो रहे हैं और फिर जब महानगर के बड़े नाले गाद से बजबजाते हैं तो जल भराव की चोट दोधारी होती है – जब नाले का पानी नदी की तरफ लपकता है और  उथली नदी में पहले से ही नाले के मुंह तक पानी भरा  होता है । ऐसे में नदी के प्रवाह से  उपजे प्रतिगामी बल से नाले फिर पलट कर   सड़कों को दरिया बना देते हैं ।

कभी यमुना का बहाव और हाथी डुब्बा गहराई  आज के  मयूर विहार, गांधी नगर, ओखला,  अक्षरधाम तक हुआ करता था  । एक तरफ ढेर सारी वैध-अवैध कालोनियों और सरकारी भवनों के कारण नदी की  चौड़ाई कम हुई  तो दूसरी तरफ गहराई में गाद भर दी – इस तरह जीवनदायी बरसात के जल को समेटने वाली  जल धार को कूड़ा ढोने की धार बना दिया गया । वहीं शहर के छह सौ से अधिक तालाब- झीलों तक बरसात का पानी आने के रास्ते रोक दिए गए ।

दुर्भाग्य है कि कोई भी सरकार दिल्ली में आबादी को बढ़ने से रोकने पर काम कर नहीं रही और इसका खामियाजा भी यमुना को उठाना पड़ रहा है , हालांकि  इसकी मार  उसी आबादी को पड़ रही है । यह सभी जानते हैं कि  दिल्ली जैसे  विशाल आबादी वाले इलाके में हर घर पानी और मुफ़्त पानी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है और जब नदी-नहर पानी की कमी पूरी कर नहीं पाते तो जमीन में छेद कर पानी उलिछा जाता है , यह जाने बगैर कि इस तरह भूजल स्तर से बेपरवाही का असर यमुना के जल स्तर पर ही पड़ रहा है ।

 मसला आबादी  को बसाने का हो या उनके लिए सुचारु परिवहन के लिए पूल या मेट्रो बनाने का, हर बार यमुना की धारा के बीच ही खंभे गाड़े जा रहे हैं । वजीराबाद और ओखला के बीच यमुना पर कुल 22 पुल बन चुके हैं और चार निर्माणधीन हैं और इन  सभी ने यमुना के नैसर्गिक प्रवाह , गहराई और चौड़ाई को नुकसान किया है ।  रही बची कसर अवैध आवासीय निर्माणों ने कर दी । इस तरह देखते ही देखते यमुना का कछार , अर्थात जहां तक  नदी अपने पूरे यौवन में लहरा सके , को ही  हड़प गए ।

कछार  में अतिक्रमण ने नदी के फैलाव को ही रोक दिया और इससे जल-ग्रहण क्षमता कम हो गई ।  तभी  इसमें पानी आते ही, कुछ ही दिनों में बह जाता है और फिर से कालिंदी उदास सी दिखती है ।

यह बात सरकारी बस्तों में दर्ज है कि यमुना के दिल्ली प्रवेश वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला बैराज तक के 22 किलोमीटर में 9700 हेक्टेयर की कछार भूमि पर अब पक्के निर्माण हो चुके हैं और इसमें से 3638 हैक्टेयर को दिल्ली विकास प्राधिकरण खुद नियमित अर्थात वैध बना चुका है । कहना न होगा यहाँ पूरी तरह सरकारी  अतिक्रमण हुआ- जैसे 100 हेक्टेयर में अक्षरधाम मंदिर, खेल गांव का 63.5 हेक्टेयर, यमुना बैंक मेट्रो डिपो 40 हैक्टेयर और शास्त्री पार्क मेट्रो डिपो 70 हेक्टेयर। इसके अलावा आईटी पार्क, दिल्ली सचिवालय, मजनू का टीला और अबु फजल एनक्लेव जैसे बड़े वैध- अवैध अतिक्रमण  अभी भी हर साल बढ़ रहे हैं ।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक शोध के मुताबिक  यमुना के बाढ़ क्षेत्र में 600 से अधिक आर्द्रभूमि और जल निकाय थे, लेकिन उनमें से 60% से अधिक अब सूखे हैं । यह  बरसात के पानी को सारे साल  सहेज कर रखते लेकिन अब इससे शहर में बाढ़ आने का खतरा है।  रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “यमुना बाढ़ क्षेत्र में यमुना से जुड़ी कई जल- तिजोरियों का संपर्क तटबंधों के कारण नदी से टूट गया ।”

समझना होगा कि अरावली से चल कर  नजफ़गढ़ झील में  मिलने वाली साहबी नदी और इस झील को यमुना से  जोड़ने वाली नैसर्गिक नहर का  नाला बनना हो या फिर सराय  कालेखान के पास बारा पुला  या फिर साकेत में खिड़की गाँव का सात पुला या फिर लोधी गार्डेन की नहरें, असल में ये सभी यमुना में जब कभी क्षमता से अधिक पानी आ  जाता था तो उसे जोहड़-तालाब में सहेजने का जरिया थीं ।

 एनजीटी में इन  सभी जल मार्गों को बचाने के मुकदमे चल रहे हैं  लेकिन इन  पर अतिक्रमण और इनकी राह रोकने वाले सरकारी निर्माण भी अनवरत जारी हैं। शहर को चमकाने के नाम पर इन सभी सदियों पुरानी संरचनाओं को तबाह किया गया , सो न अब बरसात का पानी तालाब में जाता है और न ही बरसात के दिनों में सड़कों पर जल जमाव  रुक पाता है ।

वैसे एन जी टी सन 2015 में ही दिल्ली  के यमुना तटों पर निर्माण पर पाबंदी लगा चुका है  लेकिन इससे बेपरवाह  सरकारें मान नहीं  रही । अभी एक साल के भीतर ही लाख आपत्तियों के बावजूद सराय कालेखान के पास  “बांस घर” के नाम से  केफेटेरिया और अन्य निर्माण हो गए । जान लें कि यदि दिल्ली को जल भराव से जूझना है तो यमुना अविरल बहे  उसकी गहराई  और पाट  बचे रहें , यही अनिवार्य है । यह बात कोई जटिल रॉकेट साइंस है नहीं लेकिन बड़े ठेके, बड़े दावे , नदी से निकली जमीन पर और अधिक कब्ज का लोभ यमुना को जीवित रहने नहीं दे रहा । तैयार रहिए , भले ही अदालत डांटती रहे – अपनी संपदा  यमुना को चोट पहुँचाने के चलते सावन-भादों  में  तो हर फुहार के साथ दिल्ली डूबेगी ही !

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