Site icon Indiaclimatechange

ओज़ोन परत संरक्षण और जलवायु कार्यवाही को बढ़ाना

ओज़ोन परत संरक्षण और जलवायु

ओज़ोन परत संरक्षण और जलवायु

                            ( विश्व ओज़ोन दिवस  16  सितम्बर पर  विशेष )

डॉ. मौहम्मद अवैस

ओज़ोन गैस ऑक्सीजन का एक अनुरूप  है  यह वायुमंडल में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। ऑक्सीजन के तीन  परमाणुओं के जुड़ने से ओज़ोन गैस का एक अणु बनता है।  ऑक्सीजन के समान ओज़ोन एक हल्के नीले रंग की विषैली  गैस  है जिसमें तीव्र गंध आती है। पृथ्वी के वायुमंडलीय क्षेत्रों में पृथ्वी से 15-40 किमी ऊपर  समताप मंडल में ओज़ोन गैस की एक परत पाई जाती है जिसे “ओज़ोन परत” कहते हैं तथा जिसकी मोटाई लगभग 30 किमी है। यह परत सूर्य से निकलने वाले 6 प्रतिशत पराबैंगनी विकिरण में से 5 प्रतिशत को अवशोषित करके हानिकारक  प्रभाव से हमारी रक्षा करती है। 

वर्ष 1970 में वैज्ञानिकों ने पाया कि इस परत में छेद होने लगा है जोकि पृथ्वी पर जीवों  के लिए बहुत ही हानिकारक है। वर्तमान समय में ओज़ोन परत का विनाश मुख्यतः मानवजनित कारणों से हो रहा है। मिथाइल ब्रोमाइड, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड, हेलोन्स, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (एचसीएफसी) जैसे कई मानव निर्मित रसायन ओज़ोन परत क्षरण  के लिए ज़िम्मेदार पाए जाते हैं। इन रसायनों के उत्पादन का अधिकांश भाग   प्रशीतकों, गलनकों, वातनुकूलकों, हवाई छिड़काव करने वाले डिब्बों, फोम को उड़ाने, धातुओं की सफाई,  चिकित्सा यंत्रों के कीटाणुरहित करने आदि कई कार्यों में  इस्तेमाल होता है जिसके  कारण ओज़ोन परत का ह्रास हो रहा है। इन गैसों में मौजूद क्लोरीन और ब्रोमीन तत्व ओज़ोन के साथ अभिक्रिया  करते हैं जिससे ओज़ोन अणु टूट जाते हैं। ओज़ोन के निरंतर क्षरण से पृथ्वी के वायुमंडल में एक छिद्र का निर्माण होना शुरू हो गया  जिससे पराबैंगनी विकिरण पृथ्वी की सतह पर निर्बाध रूप से पहुँचने लगीं ।जिसके परिणाम स्वरुप त्वचा , कैंसर,नेत्र ज्योति ह्रास, शरीर में प्रतिरोध तंत्र का ह्रास, फसलों के उत्पादन में कमी, वनों की हानि तथा समुद्री जीवन संकटमय हो जाएगा। पराबैंगनी विकिरण से वर्तमान जलवायु में भी परिवर्तन आ रहा है। 

ओज़ोन परत का विनाश रोकने के लिए इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण सम्मलेन कनाडा के शहर मॉन्ट्रियल  में 16 सितम्बर 1987  में आयोजित किया गया जिसमें संयुक्त राष्ट्र और  45 देशों ने मिलकर  मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए जिसमें ओज़ोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों को धीरे – धीरे समाप्त करने का निर्णय लिया गया।  इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने दिसंबर 1994 के संकल्प 49/114 के  तहत इसमें ओज़ोन परत के क्षरण की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने और इसे संरक्षित बनाये रखने तथा जन-सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से 16 सितम्बर को “विश्व ओज़ोन दिवस”  के रूप में नामित किया। इसी बात को ध्यान में रखते  हुए  16 सितम्बर, 1995 को विश्व भर में पहला ओज़ोन दिवस मनाया गया था।  तब से इस दिन को इसी तरीके से मनाया जाता आ रहा है और इस वर्ष भी हम 16 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र- पर्यावरण कार्यक्रम के ओज़ोन सचिवालय द्वारा प्रस्तावित विश्व ओज़ोन दिवस मना रहे हैं जिसका मूल विषय “मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: एडवांसिंग क्लाइमेट एक्शन”  अर्थात  ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: जलवायु कार्यवाही को आगे बढ़ाना’ है। 

इस वर्ष के मूल विषय का उद्देश्य ओजोन परत की रक्षा करने और वैश्विक स्तर पर व्यापक जलवायु के अनुकूल कार्यवाही से जुड़ी पहलों को आगे बढ़ाने में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाना  है। विश्व ओज़ोन  दिवस हमें याद दिलाता है कि ओज़ोन  परत पृथ्वी पर जीवन के लिए  कितनी आवश्यक है और आने वाली  पीढ़ियों के लिए इसे बचाने के लिए सतत  जलवायु के अनुकूल कार्यवाही  की आवश्यकता कितनी  है। ओज़ोन परत के  क्षरण रोकने के लिए  और जलवायु कार्यवाही को आगे बढ़ाने के लिए उपचारात्मक उपाय करने  आवश्यक हैं ।  यह अंतर्राष्टीय सहयोग से ही संभव है।  इस दिशा में पहला प्रयास  अंतर्राष्टीय समझौता वियना कन्वेंशन था जिसको  22 मार्च 1985 को ओज़ोन परत के संरक्षण के लिए  28 देशों द्वारा अपनाया और हस्ताक्षरित किया गया।  मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल जो 16 सितंबर 1987 को लागू हुआ था  जिसको  अब तक की सबसे सफल और प्रभावी पर्यावरण संधियों में से एक माना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य कुल वैश्विक उत्पादन और इसे क्षरित करने वाले पदार्थों की खपत को नियंत्रित करने के उपायों से  ओज़ोन परत की रक्षा करना है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के बाद दुनिया में पहचाने गए ओजोन क्षयकारी पदार्थ के विकल्प के रूप में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) का उपयोग बढ़ गया। एचएफसी ओज़ोन परतों को नष्ट नहीं करता है लेकिन उनमें ग्लोबल वार्मिंग की संभावना बहुत अधिक है। एचएफसी गैस के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए 2016 में किगाली बैठक में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में एक संशोधन किया गया था। किगाली संशोधन ने एचएफसी को धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए एक कार्यक्रम निर्धारित किया है। किगाली संशोधन के अनुसार, भारत 2032 से 4 चरणों में नियंत्रित उपयोगों के लिए एचएफसी के उत्पादन और खपत को कम करेगा। इसके तहत, 2032 में 10 प्रतिशत, 2037 में 20 प्रतिशत, 2042 में 30 प्रतिशत और 2047 में 85 प्रतिशत की संचयी कमी होगी।

आज के समय में बढ़ते तापमान के कारण रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर जैसे कूलिंग सिस्टम का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे तापमान में वृद्धि और भी बदतर हो रही है, जिससे एक दुष्चक्र बन रहा है। इसके लिए कुछ उपायों  की मदद से ओज़ोन  परत के क्षरण को रोका जा सकता है जिसमें ऐसे सौंदर्य प्रसाधन और एयरोसोल और प्लास्टिक के कंटेनर, स्प्रे, जिसमें क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) विद्यमान हैं उन उत्पादों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। वृक्ष रोपण और घर के पीछे  उद्यान के रूप में गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।  खेतों में पर्यावरण के अनुकूल उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा  प्लास्टिक और रबर से बने टायर को जलाने से बचना चाहिए। यदि हमें पृथ्वी को हरा- भरा रखना है तो ओज़ोन गैस  जो हमारे लिए एक प्रकार की ढाल के रूप में कार्य करती  है इसके  संरक्षण की नितांत आवश्यकता है इसके बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है।    

कृषि विज्ञान संकाय

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय,

अलीगढ़                                                                                                 

Exit mobile version