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वनों की आग से बढ़ता पर्यावरणीय खतरा

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वनों की आग से बढ़ता पर्यावरणीय खतरा

डॉ दीपक कोहली

कुछ  महीने पहले उत्तराखंड के अल्मोड़ा एवं नैनीताल ज़िलों में  बड़े पैमाने पर वनों की आग ने एक बार फिर से आपदा प्रबंधन, पर्यावरणीय सुरक्षा, बहुमूल्य वनस्पति एवं वन्यजीवों के संरक्षण जैसे बहुत से प्रश्नों पर विचार करने को विवश कर दिया है। प्रत्येक वर्ष गर्मी का मौसम आते ही देश के पहाड़ी राज्यों, विशेषकर उत्तराखंड के वनों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है। वार्षिक आयोजन जैसी बन चुकी उत्तराखंड के वनों की यह आग प्रत्येक वर्ष विकराल होती जा रही है, जो न केवल जंगल, वन्यजीवन और वनस्पति के लिये नए खतरे उत्पन्न कर रही है, बल्कि हमारे समूचे पर्यावरण पर अब इसका प्रभाव नज़र आने लगा है।
जंगलों में अनियंत्रित रूप से फैलने वाली आग को वनाग्नि या जंगली की आग  कहा जाता है। इसमें पौधे, जानवर, घास के मैदान, जो भी उसके रास्ते में आते हैं सब जलकर राख हो जाते है। जंगलों में चलने वाली तेज हवा के कारण यह आग अनियंत्रित होकर बड़े भू-भाग में फैल जाती है, जिससे वायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ जाता है। जंगल में लगने वाली आग आमतौर पर, लंबे समय तक जलती रहती है। इसका मुख्य कारण, जलवायु परिवर्तन होता है। यह आग जंगल में स्थित सुखी लकडियां या अन्य ज्वलनशील पदार्थ के कारण फैलती जाती है। कई बार जंगलों में लगने वाली आग का कारण बिजली गिरना या अत्यधिक सूखी लकड़ियां या पेड़ पौधों के सुखे पत्ते भी होते हैं।
पिछले कुछ सालों से गर्मी के कारण कई देशों में जंगलों के एक बड़े हिस्से में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही है। इन घटनाओं से अब तक सैकड़ों किलो मीटर के जंगल जलकर खाक हो गए हैं। जंगल की आग  या वनाग्नि के पीछे जलवायु परिवर्तन  और ग्लोबल वार्मिंग  को एक बड़ा कारण माना जा रहा है।जलवायु परिवर्तन से जूझ रही दुनिया को जंगल की धधकती आग ने और बड़े संकट में डाल दिया है। 

वनाग्नि मुख्यतः चार प्रकार की होती है:

1. सतही आग: वनाग्नि अथवा दावानल की शुरुआत सतही आग  के रूप में होती है जिसमें वन भूमि पर पड़ी सूखी पत्तियाँ, छोटी-छोटी झाड़ियाँ और लकड़ियाँ जल जाती हैं तथा धीरे-धीरे इनकी लपटें फैलने लगती हैं।
2. भूमिगत आग: कम तीव्रता की आग, जो भूमि की सतह के नीचे मौजूद कार्बनिक पदार्थों और वन भूमि की सतह पर मौजूद अपशिष्टों का उपयोग करती है, को भूमिगत आग के रूप में उप-वर्गीकृत किया जाता है। अधिकांश घने जंगलों में खनिज मृदा के ऊपर कार्बनिक पदार्थों का एक मोटा आवरण पाया जाता है।
इस प्रकार की आग आमतौर पर पूरी तरह से भूमिगत रूप में फैलती है और यह सतह से कुछ मीटर नीचे तक जलती है।यह आग बहुत धीमी गति से फैलती है और अधिकांश मामलों में इस तरह की आग का पता लगाना तथा उस पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।ये कई महीनों तक जलते रह सकते हैं और मृदा से वनस्पति तक के आवरण को नष्ट कर सकते हैं।
3. कैनोपी या क्राउन फायर: ये तब होता है जब वनाग्नि पेड़ों की ऊपरी आवरण/वितान के माध्यम से फैलती है, जो प्रायः तेज़ हवाओं और शुष्क परिस्थितियों के कारण भड़कती है। ये विशेष रूप से तीव्र और नियंत्रित करने में कठिन हो सकती हैं।
4. कंट्रोल्ड डेलीबरेट फायर: कुछ मामलों में, कंट्रोल्ड डेलीबरेट फायर, जिसे निर्धारित वनाग्नि या झाड़ियों की आगजनी के रूप में भी जाना जाता है, इच्छित तौर पर या जानबूझकर वन प्रबंधन एजेंसियों द्वारा ईंधन भार को कम करने, अनियंत्रित वनाग्नि के जोखिम को कम करने और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये लगाई जाती है। जोखिमों को कम करने और वन पारिस्थितिकी तंत्र को अधिकतम लाभ पहुँचाने के लिये इन नियंत्रित अग्नि की सावधानीपूर्वक योजना बनाई जाती है तथा विशिष्ट परिस्थितियों में निष्पादित किया जाता है।
दरअसल वनाग्नि के कारण केवल वनों को ही नुकसान नहीं पहुँचता है बल्कि उपजाऊ मिट्टी के कटाव में भी तेज़ी आती है, इतना ही नहीं जल संभरण के कार्य में भी बाधा उत्पन्न होती है। वनाग्नि का बढ़ता संकट वन्यजीवों के अस्तित्व के लिये समस्या उत्पन्न करता है। यूँ तो वनों में आग लगने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसे वास्तविक कारण हैं, जिनकी वज़ह से विशेषकर गर्मियों के मौसम में आग लगने का खतरा हमेशा बना रहता है। उदाहरण के तौर पर- मज़दूरों द्वारा शहद, साल के बीज जैसे कुछ उत्पादों को इकट्ठा करने के लिये जान-बूझकर आग लगाना। कुछ मामलों में जंगल में काम कर रहे मज़दूरों, वहाँ से गुज़रने वाले लोगों या चरवाहों द्वारा गलती से जलती हुई किसी वस्तु/सामग्री आदि को वहाँ छोड़ देना।आस-पास के गाँव के लोगों द्वारा दुर्भावना से आग लगाना।मवेशियों के लिये चारा उपलब्ध कराने हेतु आग लगाना।बिजली के तारों का वनों से होकर गुज़रना।प्राकृतिक कारण यथा- बिजली का गिरना, पेड़ की सूखी पत्तियों के मध्य घर्षण उत्पन्न होना, तापमान में वृद्धि होना आदि की वज़ह से वनों में आग लगने की घटनाएँ सामने आती हैं। परंतु, यदि हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो वनों में अतिशय मानवीय अतिक्रमण या हस्तक्षेप के कारण इस प्रकार की घटनाओं में बारंबरता देखने को मिली है।
वन ही हमें सांस लेने के लिए साफ हवा देते हैं, इसलिए जंगल में आग  लगने की लगातार हो रही घटनाओं से समस्त जीवों के लिए संकट खड़ा हो गया है। डाउन टू अर्थ  पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार, गत वर्ष वनाग्नि से लगभग 1.76 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ था। इस वजह से हवा में जहरीला धुंआ घुल रहा है। आग लगने की घटनाओं को लेकर वन विभागों ने दावा किया है कि इनमें से कई घटनाएं मानव निर्मित भी होती हैं, कभी-कभी जानबूझकर भी जंगलों में आग लगाई जाती है। जंगलो में आग लगने की घटनाओं ने भारत समेत दुनिया भर में के जलवायु परिवर्तन पर्यावरणविदों और संरक्षणवादियों को चिंता में डाल दिया है। वनाग्नि एक वैश्विक चिंता बन गई है क्योंकि इससे कई देशों को वन में रहने वाले जीवों के साथ-साथ संपत्ति का भी नुकसान उठाना पड़ता है। इसके अलावा, जंगल की आग के कारण हवा में मिलने वाली जहरीली कार्बन डाइऑक्साइड से मनुष्यों में फेफड़े और त्वचा में संक्रमण भी होता है। वनाग्नि से होने वाले पेड़ों का नुकसान जलवायु परिस्थितियों को बाधित कर सकता है, जिससे कार्बन श्रृंखला टूटने का खतरा है। जंगल की आग में कई जानवरों की मौत हो जाती है, वहीं, कुछ जानवरों के आवास नष्ट हो जाते है, जिससे वे शहरो और गांवो की ओर भागने लगते हैं। आग से जंगल में पाई जान वाली वनस्पति और जीव नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी की गुणवत्ता पर भी विपरित प्रभाव पड़ता है। 
भारत में, जंगलों में आग आम तौर पर मार्च और अप्रैल के महीनों के दौरान लगती है, जब जमीन सूखी लकड़ियों, घास, खरपतवार और सूखे पत्तों से भर जाती है। कुछ उदाहरणों में तापमान अधिक होने के समय सूखे पेड़ों की शाखाओं के आपस में रगड़ने से होने वाले घर्षण से भी जंगल में आग लग जाती है। पिछले साल जनवरी में हिमाचल प्रदेश और नागालैंड-मणिपुर सीमा पर लंबे समय तक आग लगी रही। ओडिशा के सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान में भी फरवरी और मार्च के महीनों में जंगल में भीषण आग लगने की घटना हुई थी। मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ वन रिजर्व और गुजरात में अभयारण्यों में भी जंगलों में आग लगने की घटनाएं हुई थी। उत्तराखंड में पिछले साल छह महीनों में जंगल में आग लगने की लगभग 1,000 घटनाएं हुई थी।
भारत में जंगलों में रहने वाले कई परिवार और समुदाय भोजन, चारे और ईंधन के लिए जंगलों पर निर्भर रहते हैं, इसलिए हमारे देश में जंगल की आग अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकती है। जंगल में लगने वाली आग से छोटी झाड़ियों और घास जल जाती है है, बारिश के मौसम से भूस्खलन और मिट्टी के कटाव का खतरा बढ़ जाता है। जंगलों में लगने वाली आग से अत्यधिक मात्रा में धुंआ और जहरीली गैस निकलती है, जिससे वातावरण प्रदुषित होता है और मनुष्य में स्वास्थ्य संबंधी महत्वपूर्ण समस्याएं पैदी करती है।
वनाग्नि के कारणों एवं परिणामों के बारे में जनता को शिक्षित करने के साथ-साथ जंगलों में ज़िम्मेदारीपूर्ण व्यवहार को बढ़ावा देने से मानव-जनित आग की घटनाओं को कम करने में मदद मिल सकती है।अग्नि सुरक्षा, सिगरेट के उचित निपटान और कैम्पफायर को बिना निगरानी के छोड़ने के खतरों पर अभियान जागरूकता बढ़ा सकते हैं और साथ ही ज़िम्मेदारीपूर्ण व्यवहार को प्रोत्साहित कर सकते हैं। वनाग्नि की रोकथाम से संबंधित कानूनों एवं विनियमों को लागू करने से, जैसे कि मलबे को जलाने पर प्रतिबंध तथा शुष्क अवधि के दौरान कैम्प फायर पर प्रतिबंध, आकस्मिक आग के जोखिम को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है। गैर-उत्तरदायीपूर्ण व्यवहार की रोकथाम करने हेतु अग्नि सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने की दशा में दंड के प्रावधान का सख्ती से कार्यान्वन किये जाने की आवश्यकता है।
अतिरिक्त वनस्पति का नाश करने के लिये नियंत्रित तरीके से दहन करने और अग्निरोधक/फायरब्रेक बनाने से अन्य उपयोगी वनस्पति के दहन की रोकथाम हेतु अवरोध उत्पन्न होता है और ईंधन भार कम होता है जिससे अग्नि के संचरण को कम करने में मदद मिल सकती है। उचित ईंधन प्रबंधन प्रथाएँ, जैसे घनी वनस्पतियों का विरलन करना और निर्जीव काष्ठ को साफ करना, वनों की अग्नि के प्रति संवेदनशीलता को कम सकता है।अनुवीक्षण कैमरे, उपग्रह निगरानी और लुकआउट टावरों जैसे त्वरित जाँच प्रणालियों के कार्यान्वन से अग्नि का शुरुआती चरण में ही पता लगाने में मदद मिल सकती है जिससे उसका शमन करना आसान हो जाता है। अग्नि का त्वरित रूप से पता लगाने से इसकी व्यापकता और प्रभाव को कम करते हुए त्वरित कार्रवाई करने में सहायता मिलती है।
वनाग्नि के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना- वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना का आरंभ वर्ष 2018 में किया गया था। इसका उद्देश्य वन क्षैत्र के आसपास रहने वाले समुदायों को सूचित करना कि , उन्हें सक्षम और सशक्त बनाकर वनाग्नि को कम करना है। इस योजना के तहत जंगलों के पास रहने वाले लोगों को आग की घटनाओं को कम करने के लिए विभिन्न राज्यों के वन विभागों के साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसका उद्देश्य देश में विविध वन पारिस्थितिक तंत्रों में आग के खतरों को काफी हद तक कम करना है। इसका योजना का उद्देश्य आग से लड़ने और आग की घटनाओं के बाद तेजी से रिकवरी में वन कर्मियों और संस्थानों की क्षमताओं को बढ़ाना भी है। वनाग्नि निवारण और प्रबंधन योजना, वनाग्नि को रोकने के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित एक कार्यक्रम है, जो जंगल में लगने वाली आग से निपटने में राज्यों की मदद करता है।
मानवीय गतिविधियों, मौसम की स्थिति और शुष्कता जैसे प्राकृतिक कारकों तथा ड्राई बायोमास की प्रारंभिक उपलब्धता के संयोजन ने इस वर्ष 2024 भारत में वनाग्नि के जोखिम एवं घटनाओं को बढ़ाने में योगदान दिया है। शमन रणनीतियों को कार्यान्वित करने और अग्नि सुरक्षा तथा अनुकूलन की संस्कृति को बढ़ावा देकर संबद्ध समुदाय वनाग्नि के जोखिम एवं प्रभाव को कम करने के लिये मिलकर कार्य कर सकते हैं। वनाग्नि को जलवायु परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण आयाम मानते हुए इससे निपटने के लिये हमें वैश्विक स्तर पर नीति निर्माण की आवश्यकता है, जो वनाग्नि और उससे संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करती हो। वनाग्नि प्रबंधन के संबंध में कई देशों द्वारा कुछ विशेष मॉडल प्रयोग किये जा रहे हैं, आवश्यक है कि हम भी इन्हें अपने अनुसार परिवर्तित कर प्रयोग में लाएँ। 

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डॉ दीपक कोहली, ( मोबाइल – 9454410037)
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