शीघ्र निस्तारित हों पर्यावरणीय अपराध
रोहित कौशिक
ज्यों-ज्यों भारत समेत पूरा विश्व विकसित होता जा रहा है, त्यों-त्यों पर्यावरण की सेहत बिगड़ती जा रही है। हालात यह बता रहे हैं कि विकसित होते विश्व में पर्यावरण केवल संगोष्ठियों का मुद्दा बन कर रह गया है। यही कारण है कि लगातार पर्यावरण की स्थिति बद से बदतर हो रही है। एक तरफ अनेक लोग और संगठन पर्यावरण को बचाने के लिए काम कर रहे हैं तो दूसरी ओर कई लोग स्वार्थ के वशीभूत होकर पर्यावरण की स्थिति बिगाड़ने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। ऐसे लोग पर्यावरण से संबंधित अपराधों में लिप्त रहकर भी समाज के जिम्मेदार पदों पर रहते हुए भाषणबाजी कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि देश की विभिन्न अदालतों में पर्यावरण से संबंधित अपराधों के अनेक मामले सुनवाई के लिए लंबित हैं।
इस दौर में जिस गति से पर्यावरणीय अपराध बढ़ रहे हैं, उस गति से इनका निपटारा नहीं हो पा रहा है। आज पर्यावरण का क्षेत्र एक बड़ा आपराधिक क्षेत्र बनता जा रहा है लेकिन इसे दूसरे अपराधों की तुलना में उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता है। यही कारण है कि पर्यावरणीय अपराधों के निपटारे में लापरवाही बरती जाती है। कुछ समय पहले गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ ने एक रिपोर्ट में बताया था कि देश में पर्यावरण से जुड़े अपराध चार फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं। हालांकि इन मामलों का निस्तारण बहुत धीमी गति से हो रहा है। अगर यही हाल रहा तो इन मामलों के निपटारे में कई दशक लग जाएंगे। अदालतों द्वारा रोज इस तरह मामलों का निपटारा किया जा रहा है लेकिन बैक लॉग खत्म करने के लिए ज्यादा मामलों का निपटारा होना जरूरी है।
कुछ समय पूर्व ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ द्वारा जारी यह रिपोर्ट पर्यावरण के क्षेत्र में पनप रहे खोखले आदर्शवाद की तरफ भी इशारा करती है। क्या कारण है कि भाषणों में पर्यावरण पर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से पर्यावरणीय अपराधों में लिप्त लोग खुले आम घूमते रहते हैं ? दरअसल विश्व स्तर पर कुछ प्रचलित पर्यावरणीय अपराध माने जाते हैं। वन्यजीव अपराध अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में लगातार बढ़ता जा रहा है। इस अपराध से सभी प्रकार की प्रजातियां-स्तनधारी, पक्षी जीवन, सरीसृप और उभयचर, कीड़े और पौधे प्रभावित होते हैं। अवैध रूप से वृक्षों की कटाई ने दुनिया में सभी महाद्वीपों को प्रभावित किया है और यह चीन, भारत और वितयनाम जैसे सभी उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्रों में व्यापक रूप से हो रही है।
विश्व के कई भागों में अवैध रूप से मछली पकड़ना इसी अपराध की श्रेणी में आता है। पर्यावरणीय अपराधों में प्रदूषण संबंधी अपराधों का भी बड़ा दायरा है। अवैध कचरे की तस्करी तथा क्लोरोफ्लोरोकार्बन, हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन और अन्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थों का अवैध उत्पादन और उपभोग भी इसी श्रेणी में आता है। अवैध खनन के पर्यावरण पर होने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए इसे पर्यावरण अपराध की श्रेणी में रखा गया है। पर्यावरण अपराधों की अन्य सूचियों में कचरा और अपशिष्ट निपटान, तेल रिसाव, जल स्रोतों में अनुचित निष्कासन, आर्द्र्रभूमि (वेटलैंड) विनाश, कीटनाशकों का अनुचित निष्कासन आदि शामिल हैं।
यह सही है कि जलवायु परिवर्तन का असर झेलने के बाद भी आम जनता इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है लेकिन दूसरी तरफ अनेक लोग जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर पहले की अपेक्षा ज्यादा जागरूक हुए हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के लिए जम्मेदार माने जाने वाली कंपनियों के खिलाफ मुकदमे तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। ‘ग्लोबल ट्रेंड्स इन क्लाइमेट लिटिगेशन: 2024 स्नैपशॉट’नामक रिपोर्ट के अनुसार बड़ी कंपनियों और व्यापारिक संघों के खिलाफ जलवायु परिवर्तन संबंधी मुकदमे बड़ी संख्या में दायर हुए हैं। ‘ग्रांथम रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन क्लाइमेट चेंज एंड एनवायरनमेंट’द्वारा जारी इस रिपोर्ट में 1986 से लेकर अब तक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर दायर ज्यादातर मुकदमों को रिकॉर्ड किया गया है।
आंकड़ों के अनुसार 1986 से 2023 के बीच जलवायु परिवर्तन से जुड़े लगभग 2,666 मामले दायर हुए हैं। इनमें से 70 फीसदी मामले 2015 के बाद दर्ज किए गए। पिछले तीन दशकों में अमेरिका में जलवायु परिवर्तन से संबंधित सबसे ज्यादा 1,745 मामले दायर किए गए। रिपोर्ट में बताया गया है कि अब उन देशों में भी ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां पहले इस तरह के मामले सामने नही आते थे। उदाहरण के तौर पर 2023 में पनामा और पुर्तगाल में भी पहली बार ऐसे मामले दर्ज किए गए। जनता की यह प्रवृत्ति संकेत करती है कि कुछ देशों में जनता का एक तबका जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर कदम उठा रहा है।
गौरतलब है कि भारत के संदर्भ में हमारे पर्यावरण कानून मुख्य रूप से वायु प्रदूषण और गुणवत्ता, जल प्रदूषण और गुणवत्ता, सतत विकास, अपशिष्ट प्रबंधन, संक्रमित क्षेत्रों की सफाई तथा रासायनिक तत्वों के उचित निस्तारण पर केन्द्रित होते हैं। दरअसल पर्यावरण के मुद्दों को निपटाने के लिए बहुत से कानून अस्तित्व में हैं लेकिन उनका ठीक ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। अनेक पर्यावरणीय अपराधों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) की स्थापना की गई थी। हालांकि एनजीटी एक अर्ध-न्यायिक निकाय है और इसके पास सीमित शक्तियां हैं। सामान्य अदालतों पर बोझ कम करने के लिए एनजीटी बनाया गया था।
इसके पास कानून-प्रवर्तन एजेंसियों के समान अधिकार हैं लेकिन यह एक सामान्य अदालत की तरह नहीं है। एनजीटी अपराध की प्रकृति और गंभीरता के आधार पर सजा के लिए सिफारिशें जारी कर सकता है। हालांकि इस तरह की सजा को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। आज एनजीटी को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए एनजीटी अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा की जरूरत है। आमतौर पर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायिक सदस्यों के रूप में नियुक्त किए जाते हैं। इसके साथ ही 15 साल के अनुभव वाले भौतिक विज्ञान या जीव विज्ञान में डॉक्टरेट तथा इंजीनियरिंग स्नातकोत्तर व्यक्तियों को भी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया जाता है। सवाल यह है विशेषज्ञों को किताबी ज्ञान के अलावा कितना व्यावहारिक ज्ञान होता है ?
समस्या यह है कि इस दौर में किताबी ज्ञान वाले पर्यावरण विशेषज्ञों की भीड़ पैदा हो गई है। इन विशेषज्ञों को पर्यावरण का व्यावहारिक ज्ञान नहीं होता है। आज जरूरत इस बात की है कि प्राधिकरण और अदालतों में व्यावहारिक ज्ञान वाले पर्यावरण विशेषज्ञों और जजों की नियुक्ति भी की जाए। पर्यावरण के संदर्भ में जजों की समझ विकसित करने के लिए निश्चित अंतराल पर कार्यशालाएं भी आयोजित की जा सकती हैं। कमरों से बाहर निकलकर विभिन्न पर्यावरणीय क्षेत्रों में जाकर भी जजों को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।
इस प्रक्रिया के माध्यम से जजों में एक नई पर्यावरणीय चेतना पैदा होगी और पर्यावरण से जुड़े अपराधों का शीघ्र निस्तारण संभव हो सकेगा। अभी तक पर्यावरण से जुड़े अपराधों को उतनी गंभीरता से नहीं देखा जाता है, जितनी गंभीरता से अन्य अपराधों को देखा जाता है। पर्यावरण से जुड़े अपराध मुख्यतः प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और प्रदूषण को लेकर ही होते हैं। जब इन अपराधों के माध्यम से प्रदूषण बढ़ता है या प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है तो इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। पर्यावरणीय अपराधों के शीघ्र निस्तारण के लिए सरकार को भी पर्यावरणीय न्यायालयों में और ज्यादा संसाधन बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।
रोहित कौशिक
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