जलवायु परिवर्तन से बढ़ती आपदाएंजलवायु परिवर्तन से बढ़ती आपदाएं

मानवीय गतिविधियां मौसम पर भारी पड़ रही हैं

असलियत में मानवीय गतिविधियां मौसम पर भारी पड़ रही हैं और मौसमी घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला देश भारत है जो दुनिया में छठवें नम्बर पर है। इसके अलावा प्रभावितों में डोमिनिका, चीन, होंडुरास, म्यांमार, इटली, ग्रीस, स्पेन, फिलीपींस और वानुअतु प्रमुख हैं।

आज जलवायु परिवर्तन समूची दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है । यह पहले से ही धरती  पर ज्यादातर समस्याओं का कारण बन गया है लेकिन अब यह जल्दी ही ग्रह के चारों ओर की कक्षा में अव्यवस्था भी पैदा करेगा। वह यह कि कोयले, तेल और गैस के जलने से होने वाली वैश्विक तापमान बढ़ोतरी जारी रहने के कारण सदी के आखिर तक धरती की निचली कक्षा में उपग्रहों के लिए उपलब्ध स्थान एक तिहाई से लेकर 82 फीसदी तक कम हो जायेगा। यह कार्बन प्रदूषण की फैलने की मात्रा पर निर्भर करेगा। यह इसलिए भी होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति द्वारा इसे साफ करने के तरीके कम होने के कारण अंतरिक्ष मलबे  से और अधिक अटा-पड़ा होगा।

गौरतलब है कि धरती की सतह के पास हवा को गर्म करने वाले ग्रीनहाउस प्रभाव का एक हिस्सा वायुमंडल के ऊपरी हिस्सों को भी ठंडा करता है, जहां से अंतरिक्ष शुरू होता है और उपग्रह निचली कक्षा में चक्कर लगाते हैं। यह ठंडापन ऊपरी वायुमंडल को कम घना भी बनाता है। यही मानव निर्मित मलबे  को और उपग्रहों के लाखों टुकड़ों पर खिंचाव को कम करता है। एम आई टी के शोध अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि यह खिंचाव अंतरिक्ष के मलबे को धरतों की ओर खीचता है जो रास्ते में जलकर नष्ट हो जाता है ।

लेकिन ऊपरी वायुमंडल ठंडा और धना होने का अर्थ है कि अंतरिक्ष द्वारा खुद को साफ करना। यह इस बात का जीता जागता सबूत हैं कि अंतरिक्ष में भीड़ भाड़ बढ़ रही है। असलियत यह है कि हम अपने मलबे को साफ करने के लिए वायुमंडल पर निर्भर हैं। अंतरिक्ष में फैले इस मलबे के लाखों टुकड़े हैं। इसर मलबे को हटाने का कोई और तरीका नहीं है।

इस मलबे की निगरानी करने वाले दि एयरोस्पेस कारपोरेशन के अनुसार धरती की परिक्रमा करने वाले मलबे के लाखों टुकड़े तकरीब इंच के नौवें हिस्से यानी तीन मिलीमीटर और उससे बड़े हैं जो एक गोली की ऊर्जा में टकराते हैं। अंतरिक्ष में फैले मलबे में बेर के आकार के हजारों टुकड़े हैं जो दुर्घटनाग्रस्त बस की ताकत से टकराते हैं। उसमें पहले अंतरिक्ष में हुई दुर्घटनाओं और राकेट के लाखों हिस्से शामिल हैं। ट्रैकिंग वेबसाइट आबिंटिंग नाउ  की मानें तो धरती की परिक्रमा करने वाले 11,905 उपग्रह हैं जिनमें से 7356 निचली कक्षा में है जो संचार, नेविगेशन, मौसम के पूर्वानुमान और पर्यावरण व सुरक्षा जैसे मुद्दों की निगरानी के लिए महत्वपूर्ण हैं।

गौरतलब है कि 2009 में अंतरिक्ष में दो उपग्रहों  के आपस में टकराने से मलवे के हजारों टुकड़े फैले हुए हैं। इस बारे में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण में अंतरिक्ष मौसम वैज्ञानिक इंग्रिड नोमेन कहते हैं कि इसके चलते धरती से 250 मील यानी 400 किलोमीटर ऊपर घनत्व एक दशक में लगभग दो फीसदी कम हो रहा है।

वातावरण में अधिक ग्रीनहाउस गैस जमा होने की वजह से इसके तीव्र होने की उम्मीद है। यही वह अहम कारण है जिसकी वजह से अंतरिक्ष विज्ञानी जलवायु परिवर्तन के कक्षीय प्रभावों व उसकी दीर्घकालिक स्थिरता को निश्चित किये जाने के उचित उपाय किये जाने के बारे में चिंतित हैं। क्योंकि नासा के अंतरिक्ष मापन ड्रैग में दिखाई दे रही कमी जो जलवायु परिवर्तन घटक में महत्वपूर्ण है। यही धरती की कक्षा में अव्यवस्था या अहम कारक है जो सब कुछ बिगाड़ कर रख देगा।

असलियत में मानवीय गतिविधियां मौसम पर भारी पड़ रही है और मौसमी घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला देश भारत है जो दुनिया में छठवें नम्बर पर है। इसके अलावा प्रभावितों में डॉमिनिका, चीन, होंडुरास, म्यांमार, इटली, ग्रीस, स्पेन, फिलीपींस और वानुअतु प्रमुख हैं। इसके  चलते 1993 से 2022 तक देश में 400 से अधिक घटनाओं में 80 हजार लोगों की जान गयी है और लगभग 180 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है। जबकि दुनिया में आठ लाख लोग मौत के मुंह में चले गये।

 इससे भारत में करीब पांच करोड़ लोग प्रभावित हैं और यहां जलवायु से जुड़ी आपदाओं में साल दर साल भयावह स्तर पर बढ़ोतरी हो रही है। इस दौरान भारत में बाढ़, लू और चक्रवात से भारी नुकसान हुआ है। इससे हर साल 2675 जिंदगियां मौत के मुंह में चाली जाती हैं। विश्व आर्थिक मंच ने जलवायु परिवर्तन की वजह से चरम मौसमी घटनाओं को सशस्त्र संघर्ष और युद्ध के बाद दूसरा सबसे बड़ा वैश्विक जोखिम बताया है।

दरअसल इसके लिए प्रकृति प्रदत मानव संसाधनों का बेतहाशा उपयोग और जंगलों का निर्ममता से किया गया अत्याधिक कटान तो जिम्मेदार है ही, इसमें भौतिक सुख-संसाधनों के सुख की मानवीय चाहत और विभित्र क्षेत्रों के प्रदूषण के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। बढ़ता वैश्विक तापमान और उसके चलते मौसम में आये अप्रत्याशित बदलाव का दुष्प्रभाव जीवन के हर पथ पर पड़ रहा है। इससे हमारा पर्यावरण, जीवन, रहन-सहन, भोजन, पानी, और स्वास्थ्य पर स्पष्ट रूप से प्रभाव  देखा जा सकता है।

तात्पर्य यह कि जीवन का कोई भी पक्ष इसके दुष्प्रभाव से अछूता नहीं है। मिसाल के लिए हमारे देश के हालात देख लीजिए। देशभर में मानसून ने गर्मी से भी राहत दी है, लेकिन जगह-जगह जलभराव और बाढ़ जैसी स्थिति ने लोगों की आफत को बढ़ा दिया है। देशभर से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही है जिनसे पता  चल रहा है कि जलभराव की मार लोगों पर पड़ रही है। नदियों और नाली का पानी सड़क पर आ गया है, जिससे लोगों को आवाजाही में समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

नौकरी पेशे वाले हों या स्कूली बच्चे सभी बाढ़ जैसे हालातों से जूझते हुए दिखाई दे रहे हैं. स्कूली बच्चों की बात करें तो बाढ़ और जलभराव का असर उनकी शिक्षा पर तो रहा है, खासतौर पर वो बच्चे तो ग्रामीण इलाके से आते हैं, जहां व्यवस्थाओं की कमी रहती है। घुटनों तक भरे पानी में बच्चे अपने सर पर किताबों को रख कर स्कूल ले जा रहे हैं. इसके अलावा ट्यूब पर चारपाई रखकर खुद से पानी वाली जगहों को पार किया जा रहा है।

 देश के पूर्वी हिस्से में भी बारिश ने अपना तगड़ा असर दिखाना शुरू कर दिया है। ओडिशा में बीते कुछ दिनों से बारिश की वजह से बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए हैं। ओडिशा में भारी बारिश के बाद कई इलाके पूरी तरह से डूबे हुए नजर आ रहे हैं। सड़क के ऊपर से बह रहे पानी में कार और बस निकल रहे हैं। भारी बारिश की वजह से कई इलाकों में सड़क और पुल टूट गए हैं। एक इलाके का दूसरे इलाके से संपर्क भी टूट गया है। खासतौर पर बालासोर जिले में बाढ़ की स्थिति ने परेशानी बढ़ा दी है कई जगह नांव के जरिए लोगों को राशन लेने जाना पड़ रहा है।

इससे पशुओं के जीवन की लय भी बिगड़ गयी है। इससे बाड़ क्लाक भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है। सिडनी यूनिवर्सिटी के शोध में यह खुलासा हुआ है। असलियत में धरती पर मौजूद सभी जीवों के शरीर में एक घड़ी होती है जिसे बाड़ी क्लाक, जेविक घड़ी या सरकेडियम रिद्म कहते हैं। सोना, जगना, भूख लगने जैसे काम इसी घड़ी से संचारित होते हैं। इससे सभी प्रकार के पशुओं का व्यवहार भी तय होता है। इस सरकेडियम रिद्म की मिगड़‌ती लय से पशुओं के जीने का पैटर्न भी बिगड़ रहा है।

इसलिए इसे संरक्षण प्रदान किए जाने की जरूरत है। असलियत में जलवायु परिवर्तन से बदलता मौसम भोजन, स्वास्थ्य और प्रकृति को जो नुकसान पहुंचा रहा है, उसकी भरपाई फिलहाल ती आसान नहीं दिखाई देती। हां इसके चलते प्राकृतिक असंतुलन के कारण जन्मी आपदायें  भयावह  रूप जरूर अख्तियार करती जा रही हैं जो तबाही का सबब बन रही हैं। पिछले सात दशकों में जलवायु परिवर्तन के चालते आयी आपदाओं में आठ गुणा की बढ़ोतरी हुई  है। धरती के लिए यह चेतावनी भी है कि अब भी समय है, संभल जाओ, यदि अब भी नहीं संभले, तो यह संकट लगातार गहराता चला जायेगा ।

तब इसका मुकाबला कर पाना बहुत मुश्किल होगा। इस बारे में दो राय नहीं है कि समूची  दुनिया में जलवायु संकट तेजी से खतरनाक होता जा रहा है। पिछले तीन दशक सबूत हैं कि ग्लोबल साउथ के देश विशेष रूप से चरम मौसमी घटनाओं से जूझ रहे हैं। हम जलवायु संकट के अप्रत्याशित और महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर रहे हैं। यह समाज को अस्थिर करने में अहम भूमिका निभाएगा।

साभार – प्रजातन्त्र

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *