– योगेश कुमार गोयल
कल-कारखानों एवं फैक्टरियों से निर्बाध रूप से निकलने वाले कार्बन उत्सर्जन वायु प्रदूषण के स्तर को दिनों-दिन बढ़ा रहे हैं, जिसके चलते दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौतियां विकराल रूप में खड़ी हो रही हैं। हालांकि भारत में औद्योगिक प्रदूषण की जांच के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एनपीसीबी) बनाया हुआ है, जो यह जांच करता है कि उद्योगों ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन किया है या नहीं लेकिन इसके बावजूद देश में औद्योगिक प्रदूषण को लेकर आज भी स्थिति कितनी विकराल है, यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है।जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए दुनियाभर के देश भले ही वैश्विक उपाय कर रहे हैं लेकिन ये उपाय अभी तक नाकाफी ही साबित हो रहे हैं। घातक विकिरणों से धरती की सुरक्षा करती ओजोन परत में छेद के लिए वायु प्रदूषण को ही जिम्मेदार माना जाता है। वातवरण में उत्सर्जित की जा रही जहरीली गैसों के कारण ही ओजोन परत में छिद्र हुआ है, जिसे भरने के लिए कई दशकों से प्रयास हो रहे हैं लेकिन इस कार्य में अभी तक सफलता हासिल नहीं हुई है। भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के अनुसार वायु प्रदूषण विश्वभर में प्रतिवर्ष करीब सत्तर लाख लोगों की मौत का कारण बन रहा है। आंकड़ों के अनुसार स्थिति इतनी खराब है कि वायु में मौजूद प्रदूषक हवा के जरिये सीधे शरीर में प्रवेश कर फेफड़ों, मस्तिष्क तथा हृदय को नुकसान पहुंचाते हैं और दस में से नौ लोगों को सांस लेने के लिए शुद्ध हवा भी नहीं मिलती। भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार भयावह हो रही है।
नेशनल हैल्थ प्रोफाइल की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाली संक्रामक बीमारियों में सांस संबंधी बीमारियों का प्रतिशत लगातार तेजी से बढ़ रहा है और देशभर में बड़ी संख्या में मौतें अब वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं।प्रदूषण अब इस कदर नासूर बनता जा रहा है कि पिछले कुछ समय से इस मामले में बार-बार देश की सर्वोच्च अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। खासकर दिल्ली एनसीआर के बढ़ते प्रदूषण स्तर पर तो सुप्रीम कोर्ट कई बार कड़ी नाराजगी जताते हुए कड़े निर्देश दे चुका है लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। हालांकि वायु गुणवत्ता आयोग द्वारा करीब दो महीने से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए ग्रैप के तहत कार्रवाई की जा रही है और अभी भी ग्रैप की पाबंदियां लागू हैं किन्तु इसके बावजूद वायु प्रदूषण पर लगाम कसने में सफलता नहीं मिल रही। दिल्ली में वायु प्रदूषण और वायु गुणवत्ता सूचकांक के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश की राजधानी में इस साल नवम्बर का महीना अत्यधिक प्रदूषित रहा और अभी भी हालात में स्थायी सुधार की कोई संभावना नजर नहीं आ रही। वायु प्रदूषण को लेकर देश के कई अन्य इलाकों के हालात भी अच्छे नहीं हैं।
वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को लेकर सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि यह न केवल तरह-तरह की गंभीर बीमारियों का जनक बन रहा है बल्कि प्रतिवर्ष लाखों लोग वायु प्रदूषण के ही कारण काल के भी ग्रास बन रहे हैं। विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि दुनियाभर में करीब चार अरब लोग खाना पकाने के लिए आज भी लकड़ी, कोयला, केरोसिन ऑयल, गोबर इत्यादि ऐसे ईंधन पर निर्भर हैं, जो बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं और इनका गंभीर असर पर्यावरण के साथ-साथ खाना पकाने वालों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। हैल्थ इफैक्ट इंस्टीच्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक बाहर तथा घर के अंदर लंबे समय तक वायु प्रदूषण के सम्पर्क में रहने के कारण स्ट्रोक, दिल का दौरा, डायबिटीज, फेफड़ों का कैंसर तथा जन्म के समय होने वाली बीमारियों इत्यादि की चपेट में आकर अब हर साल भारत में कई लाख लोगों की मौत हो रही है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण और हृदय एवं फेफड़े रोगों के बीच संबंध होने के स्पष्ट साक्ष्य हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2010 के बाद से पांच करोड़ से अधिक लोग घर के अंदर वायु प्रदूषण से पीड़ित हुए हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की वैज्ञानिक बेट रिट्ज का कहना है कि घरों के अंदर वायु प्रदूषण की सर्वाधिक समस्या भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में है। वायु प्रदूषण दुनियाभर में मौत के बड़े कारणों में चौथे स्थान पर है। ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर’ रिपोर्ट के अनुसार उच्च रक्तचाप, तम्बाकू का सेवन तथा खराब आहार के बाद समय से पहले मौत का चौथा प्रमुख कारण वायु प्रदूषण ही है।
बच्चों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर तो दुनियाभर में अनेक शोध किए जा चुके हैं और सभी का निष्कर्ष यही है कि प्रदूषण बच्चों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है, जिसके चलते प्रतिवर्ष लाखों बच्चे असमय ही काल का ग्रास बन जाते हैं और करोड़ों बच्चे मासूम उम्र में ही तरह-तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक के अनुसार, व्यस्कों की तुलना में बच्चे वायु प्रदूषण के सबसे आसान शिकार बन रहे हैं, जो अपने विकासशील फेफड़ों और इम्यून सिस्टम के चलते हवा में मौजूद विषैले तत्वों को सांस के जरिये अपने अंदर ले रहे हैं तथा अधिक जोखिम का शिकार बन रहे हैं। कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं, ऐसे में वे अधिक जोखिम में होते हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण बच्चों की रोगों से लड़ने की क्षमता को प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण बच्चे के फेफड़े और मस्तिष्क के विकास तथा संज्ञानात्मक विकास को भी प्रभावित कर सकता है और अगर इसका समय पर इलाज नहीं करवाया जाए तो वायु प्रदूषण से संबंधित कुछ स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं तो पूरी जिंदगी बनी रह सकती हैं।
(लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार तथा हिंदी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित चर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ के लेखक हैं)