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अब मडुआ से बन सकेंगे मूल्यवर्धित उत्पाद

पंत विवि ने मडुआ की बाहरी परत हटाने के लिए विकसित किया यंत्र, पेटेंट भी हासिल

औषधीय गुणों से भरपूर मडुआ मात्र अनाज नहीं रह जाएगा, अब इससे मूल्यवर्धित उत्पाद भी बनाए जाएंगे। जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने डिहलर सहित पर्लर यंत्र विकसित किया है। इसके लिए विवि को पेटेंट भी हासिल हो गया है।

उत्तराखंड के लगभग 88 हजार 500 हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 1.3 लाख मीट्रिक टन मडुवा (रागी) का उत्पादन किया जाता है। मडुवा में विटामिन और खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, परंतु

डॉ. नवीन चंद्र शाही डॉ. अनुपमा सिंह इसकी बाह्य त्वचा खुरदरे वैक्सी पदार्थ की बनी होती हैं, जो खाने के लिए उपयुक्त नहीं होती है। मडुवा को खाने योग्य बनाने के लिए ऊपरी त्वचा को हटाना अनिवार्य है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए पंतनगर विवि के वैज्ञानिकों ने मडुवा के लिए डिहलर सहित पर्लर का विकास किया है। मडुवा के लिए विकसित इस डिहलर सहित मडुवा भरपूर को इस में दो डॉ. निदेशक अहम डॉ. खानचंद पर्लर से मडुवा का मूल्यवर्धन किया जा सकता है। उत्तराखंड के उत्पादक किसानों को इसका लाभ मिल सकेगा। वैज्ञानिकों मशीन को विकसित करने वर्षों का समय लगा। जिसमें अधिष्ठात्री प्रौद्योगिकी महाविद्यालय अलकनंदा अशोक और शोध डॉ. एएस नैन की भूमिका रही है। मनमोहन सिंह चौहान और विवि के बौद्धिक संपदा प्रबंधन केंद्र के सीईओ डॉ. जेपी मिश्रा ने वैज्ञानिकों को पेटेंट मिलने पर बधाई दी है।

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