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घड़े जैसे सिर वाला: घडियाल

घड़े जैसे सिर वाला: घडियाल

घड़े जैसे सिर वाला: घडियाल

“अरे! मुझसे क्यों डर रहे हो? मैं मगरमच्छ तो हूँ लेकिन वो वाला नहीं ! मुझसे तुम्हें  कोई खतरा नहीं। देखो न मेरा कितना लम्बा मुंह है । पहले लम्बी थूथन और फिर आगे से घड़े जैसा उठा हुआ। मगरमच्छ का मुंह बड़ा सा खुलता है और उसमें बड़े बड़े दांत होते हैं जिससे आप सब डरते हैं। लेकिन देखो ! मेरे  न तो इतने बड़े दांत हैं, न ही मेरा इतना बड़ा मुंह खुलता है। मैं तो किसी इंसान को नुकसान पहुंचा ही नहीं सकता।”

हमारे देश में ये तीन किस्म के पाये जाते हैं -आम मगरमच्छ, घड़ियाल और खारे पानी का मगरमच्छ। आम मगरमच्छ तालाब-झील, गंदे पानी, नाली-नाला में कहीं भी रह सकता है। जबकि घड़ियाल केवल साफ और तेज धार वाली नदियों में ही रहना पसंद करता है। खारे पानी वाला मगरमच्छ समुद्र के पास की नदियों में रहता है।

कई कारणों से नदियाँ गन्दी भी हुईं और उनकी धार भी कम हो गई।  यहीं से घड़ियाल पर खतरा मंडराने लगा। घड़ियाल अपने अंडे नदी के किनारे रेत में देते हैं। रेत खनन से उनके अंडे नष्ट हो जाते हैं। कई बार लोग इनके अंडे चोरी कर लेते हैं । इस तरह घड़ियाल को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिर्सोसेस ने अति संकट ग्रस्त प्राणियों की श्रेणी में रखा है।

कोई नदी कितनी साफ है? वहां घड़ियाल का मिलना इसका प्रमाण होता है । जानलें नदी दूषित होगी, उसकी धार कम होगी तो घड़ियाल वहां से रूठ कर दूसरी जगह चला जाएगा।

इसके लिए यूएनडीपी/एफएओ और भारत सरकार ने 1975 में कई राज्यों में मगरमच्छ की तीनों प्रजातियों को बचाने की परियोजना शुरू की गई । घड़ियाल के लिए चम्बल एवं गंगा की अन्य सहायक नदियों में प्रजनन केन्द्र बनाए गये हैं । अंडों से बच्चे निकलने  के बाद उन्हें तेज धार वाली नदियों में छोड़ा जाता है। जहां-जहां घड़े से सिर वाला यह जीव है, वहां जल का घड़ा कभी खाली नहीं होगा। क्यूंकि वहां साफ़ और तेज़ धारा वाली नदी होगी।

पंकज चतुर्वेदी

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