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एक सींग वाले गैंडे के अवैध शिकार के पीछे संगठित अपराधी

एक सींग वाले गैंडे के अवैध शिकार के पीछे संगठित अपराधी

पंकज चतुर्वेदी

इस साल का पहला महिना ही असम के दुर्लभ एक सींग वाले गैंडों  के लिए बुरा साबित  हुआ । 22 जनवरी को काँजीरंगा पार्क के  माकलुङ केंप के करीब एक युवा नर गैंडे  का शव मिला । फिर 26 जनवरी को इस स्थान से कोई एक किलोमीटर दूर ही दूसरे गैंडे  के अस्थि पंजर मिले। दोनों ही गैंडों  के सींग काट लिए गए थे जिससे स्पष्ट था कि ये शिकारियों के हाथ मारे गए हैं । हालांकि राज्य के सुरक्षा बालों ने दो दिन में ही शिकारी जोगु पेगु को एक ए के 47 राएफल और एक सींग के साथ गिरफ्तार कर लिया। जांच में पता चल कि शिकारी के तार मणिपुर के उन लोगों से जुड़े हैं  जो म्यांमार के रास्ते चीन तक इस संकटग्रस्त प्रजाति के जानवर के सींगों की तस्करी करते हैं ।

एक सींग वाला गैंडा दुनिया में संकटग्रस्त प्राणी घोषित  है। इसकी संख्या सारे संसार में बामुश्किल 4000 होगी और इनमें से 88 प्रतिशत असम में ही हैं। कोई 2613 काजीरंगा पार्क में हैं तो पवित्र अभ्यारण में 107 और ओराङ्ग राष्ट्रीय उधयं में 125 गैंडे हैं। मानस संरक्षित वन में भी लगभग 45 एक सींग के गैंडे हैं ।

सन 2022 गैंडों  के लिए सबसे शुभ रहा था क्योंकि इस साल शिकार की एक भए घटना नहीं हुई। यदि सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करें तो सन 2009 में हुई गणना में कांजीरंगा में एक सींग वाले गेंडों की संख्या 2048 थी। सन 1980 से 1997 के सत्रह सालों में 550 गेंडों के शिकार की बात सरकार स्वीकार करती है, जिनमें सर्वाधिक 42 सन 1992 में मारे गए थे। उस दौर में काँजीरंगा का जंगल लगभग गैंडा विहीन हो गया था। 2000 और 2021 के बीच असम में कम से कम 191 गैंडों का शिकार किया गया। 2013 और 2014 में 27 गैंडों की मौत की सूचना मिली। 2020 और 2021 में दो-दो गैंडे मारे गए। पिछले साल भी दो गैंडों के शिकार की सूचना  है ।

कहते हैं कि बीती सदी में एक सींग वाला गैंडा समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता था यानी आज के पाकिस्तान के सिंध से ले कर नेपाल, भूटान और म्यांमार की सरहद तक। फिर किसी ने कह दिया कि इसका सींग यैनवर्धक होता है, कहीं इसके चमड़ें को गोली-तलवार का वार रोकने लायक मजबूत कह दिया गया।इन दिनों हल्ला है कि कैंसर की दवाई में गैंडे का सींग राम बाण है। वियतनाम और चीने के बाजार में इनकी खुलेआम मांग है।  फिर क्या था ? धड़ाधड़ मारा जाने लगा यह निरीह जानवर।  अब यह असम तक सीमित रह गया है। कोई 430 वर्ग किलोमीटर में फैले कांजीरंगा नेशनल पार्क का विकास गैंडो के लिए ही किया गयाथा, इसे यूनेस्को ने विस्त्र धरोहर घोशित कर रखा है, लेकिन कभी बाढ़ तो कभी शिकार के चलते इनका अस्तित्व ही खतरे में है।

गैंडा एक शांत  प्राणी है और उसका सींग काट कर मरने के लिए छोड़ देना बेहद अमानवीय और दर्दनाक अपराध है। भारतीय गैंडे की दृष्टि कमजोर होती है और इसके बजाय वह अपनी सुनने और सूंघने की बेहतर इंद्रियों पर निर्भर रहता है। यहां ध्यान देना होगा कि बीते दो  दशक के दौरान समूचे कांजीरंगा पार्क के चारों ओर असंख्य बस्तियां बस गईं। असम गण परिषद  व भाजपा कहता रहा है कि ये सभी अवैध रूप से भारत में घुसे बांग्लादेशी हैं और ये ही लोग गैंडों के शिकार व उसके सींग की तस्करी में शामिल हैं। हांलाकि पुलिस ने ‘‘कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाईगर्स’’ नामक आतंकवादी संगठन के कई लोगों को समय-समय पर गैडे के सींग की तस्करी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा है और यह बात खुफिया रिपोर्ट में दर्ज है कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के कुछ आतंकवादी संगठन गैंडे के सींग के बदले मादक दवाआं और हथियार  लाने के लिए म्यांमार, थाईलैंड तक आते-जाते हैं। इस बात की पुष्टि होती भी है क्योंकि कई बार गैंडो की हत्या में एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया है। चीन के बाजार में गैंडे के सींग की कीमत एक लाख रूपये प्रति किलो तक मिलती है। चीन में इसे दवा के तौर पर आधिकारिक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।

यहां जानना जरूरी है कि संरक्षित पार्क से सट कर अवैध आवासीय गतिविधियां और सड़कें बनने से कांजीरंगा के नैसर्गिक स्वरूप के साथ बहुत छेड़छाड़ हुई है और इसी का दुष्परिणाम  है कि जब ब्रह्मपुत्र में पानी बढ़ता है तो जंगल में बाढ़ आ जाती है। असम में हर साल आने वाली बाढ़ भी गैंडों के लिए काल बनती है । जब काजीरंगा में जल स्तर बढ़त है और गैंडे सुरक्षित स्थानों पर भागते हैं । इसी फिराक में वे शिकारियों के हत्थे चढ़ जाते हैं । इंसानों की बस्ती बढ़ने से संरक्षित वन क्षेत्र की बाढ़बंदी भी प्रभावित हुई हे। गैंडों के मारे जाने के बड़े कारणो में ये दो बातें बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा जंगल में निगरानी की अत्याधुनिक व्यवस्था ना होना, क्षेत्रफल के लिहाज से वनरक्षकों की कमी और उनके पास नए उपकरणों का अभाव गैंडों की जान का दुश्मन बना हुआ हे। सबसे बड़ी बात सरकार इस गंभीर समस्या को गंभीरता से नहीं ले रही है।

समय-समय पर गैंडों के अवैध शिकार की सी बी आई जांच की मांग होती रही है । वैसे सितंबर-2012 में सीबीआई ने गेंडों के शिकार के तीन मुकदमें दर्ज भी किए थे, लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। इसी तरह फरवरी-12 में असम के मुख्य वन सरंक्षक ने आश्वासन दिया था कि कांजीरंगा की रक्षा के लिए बीएसएफ को लगाया जाएगा, लेकिन उस के बाद यहां अवैध शिकार के कई मामले सामने आए थे ।

इसमें कोई शक नहीं कि बीते कुछ सालों में सरकार के कड़ी कदमों से जहां  गैंडों  के शिकार में कमी आई है वहीं सामूहिक प्रयासों से गैंडों की संख्या भी बढ़ी है । पूर्वोत्तर में म्यांमार से लागि सीमा पर बाधबन्दी और उन्मुक्त आवाजाही रुकने से संगठित शिकारी गिरोह काम नहीं कर पाएंगे। भारत के गैंडों के संरक्षण की कहानी सिर्फ उस जानवर के अस्तित्व की कहानी नहीं है, बल्कि हमारे धरती ग्रह की बहुमूल्य जैव विविधता के संरक्षण के लिए आशा की किरण है।

 

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