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पुरानी भारतीय पद्धतियों से प्लास्टिक मुक्ति की कल्पना होगी साकार

फोटो - गूगल

पुरानी भारतीय पद्धतियों से प्लास्टिक मुक्ति की कल्पना होगी साकार

विवेक वैष्णव

प्रकृति मानव को प्रदत्त ईश्वर का अनमोल उपहार है लेकिन मानव ने अपने भौतिक सुखों और इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रकृति के साथ निरन्तर खिलवाड़ करते हुए वर्तमान समय में सभी सीमाओं को पार कर दिया है। जहां जहां मानव ने अपने पांव रखे है वहां वहां पॉलीथीन प्रदूषण पहुंच चुका है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार बहुत से कारणों में प्लास्टिक एक बहुत बड़ा खतरा है।
असल में कभी जीवन को आसान बनाने के लिए ईजाद किया गया प्लास्टिक आज इंसानों एवं पशुओं दोनो के लिए जान का दुश्मन बन गया है। जब से पॉलीथीन प्रचलन में आया है हमारी पुरानी पद्धतियां धरी सी रह गई है और कपड़ें, जूट व कागज की जगह अब पॉलीथीन ने ले ली है। दुनिया में प्रदूषण फैलाने में प्लास्टिक की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है। प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए एक गंभीर संकट बन चुका है और देश में सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा बोतलों से आता है। कुल प्लास्टिक में से सिर्फ दस प्रतिशत प्लास्टिक कचरा ही रि-साईकिल किया जाता है और बाकी 90 प्रतिशत कचरा पर्यावरण के लिए नुकसान देह साबित होता है।
दुनिया के करीब 60 देशों ने प्लास्टिक की थैलियों और सिर्फ एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक के उत्पादन पर काबू पाने के लिए कानून बनाये है। ‘‘वनूआतू’’ नाम का छोटा सा देश एक बार इस्तेमाल होने वाले हर तरह के प्लास्टिक पर रोक लगाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। प्लास्टिक के कचरे की समस्या से निजात पाने के लिए प्लास्टिक की थैलियों के विकल्प के रूप में जूट या कपड़े से बने थैलों का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा किया जाना चाहिए। साथ ही प्लास्टिक कचरे का समुचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
प्लास्टिक नॉन बॉयोडिग्रेडेबल होता है। यह ऐसा पदार्थ होता है जो बैक्टीरिया द्वारा ऐसी अवस्था में नही पहुंच पाता जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान ना हो। प्लास्टिक की एक छोटी सी थैली को भी पूरी तरह छोटे पार्टिकल्स में तब्दील होने में हजारों साल लगते है और इतने ही साल गायब होने में भी लगते है। प्लास्टिक बैग्स बनाने में जायलेन, इथिलेन ऑक्साइड और बैंजेन जैसे केमिकल्स का इस्तेमाल होता है जिससे इंसान, जानवरों, पौधों और अन्य जीवित चीजों को नुकसान पहुंचता है। प्लास्टिक प्रदूषण के चलते जल, जमीन और आकाश तीनों बुरी तरह प्रभावित है। लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान समुद्र को पहुंच रहा है तथा समुद्री जीवन पर संकट मंडरा रहा है।
समुद्र में हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा फेंका जा रहा है। समुद्र में फेंका गया सिगरेट का एक ठूंठ 10 साल में जाकर डिकंपोज यानि पूरी तरह खत्म हो पाता है जबकि एक कप को खत्म होने में 50 साल लगते है। समुद्र में मौजूद कचरे पर नजर डाले तो इसमें 192 अरब से ज्यादा प्लास्टिक पीस मौजूद है। उसके बाद प्लास्टिक बैग, बोतले और दूसरे प्लास्टिक से बनी चीजे मौजूद है। प्लास्टिक के उत्पादन में पूरे विश्व के कुल तेल का 8 प्रतिशत तेल खर्च हो जाता है। दुनिया में प्लास्टिक के चलते सबसे ज्यादा प्रभावित नदियों की बात करे तो इसमें चीन की यांगत्से नदी पहले स्थान पर है जबकि दूसरे स्थान पर भारत की गंगा नदी है। एक अनुमान के अनुसार 1950 से 2016 के बीच जितना प्लास्टिक समुद्र में जमा हुआ है यदि जागरूकता नही आई तो आगामी सिर्फ एक दशक मे ही इतना प्लास्टिक और समुद्र में जमा हो जायेगा।
वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के अनुसार भारत में सालाना 56 लाख टन प्लास्टिक कूडा बनता है। भारतीय रोजाना 15 हजार टन से ज्यादा का प्लास्टिक हम कचरे में फेंक देते है। पूरे विश्व में प्लास्टिक का उपयोग इस कदर बढ़ चुका है और इतना फेंका जाता है कि इससे पूरी पृथ्वी के चार घेरे बनाये जा सकते है। प्लास्टिक को फेंकना और जलाना दोनों ही समान रूप से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते है।
पुरानी भारतीय पद्धति में कपड़ों के थैले लेकर ही बाजार में कदम रखा जाता था। आज वापस समय के चक्र ने हमें कपड़ों एवं जूट के थैलों की महत्ता के बारें में सोचने पर विवश कर दिया है। भारतीय रेलवे देश को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने की दिशा में पहले ही बड़े पैमाने पर अभियान शुरु कर चुका है। देश में सड़के एवं दीवारे बनाने में प्लास्टिक का इस्तेमाल शुरु हो चुका है। प्लास्टिक को इसी तरह अन्य जगह इस्तेमाल करके इसके कचरे से निपटने के लिए जनमानस की जागरूकता और सतर्कता जरूरी है जिससे पर्यावरण को होने वाली हानि को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। री-यूज, री-साइकिल और रीड्यूज तरीकों को अपनाकर प्लास्टिक प्रदूषण में भारी कमी लाई जा सकती है।

विवेक वैष्णव

(अधिस्वीकृत पत्रकार)

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