दिल्ली में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण यहां बढ़ रहे वाहन
पंकज चतुर्वेदी
दिल्ली के आनंद विहार में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत गंभीर (Severe) श्रेणी में था , वह भी सुबह 4:24 बजे तक की आँकड़े के मुताबिक आनंद विहार का वायु गुणवत्ता सूचकांक AQI (Air Quality Index) 495 दर्ज किया गया था , जो ‘Severe Plus’ या ‘आपातकालीन’ श्रेणी में आता है। यहाँ तो दो साल पहले बड़ा सा स्माग टावर भी लगाया गया था । आखिर वहाँ साल भर हवा दम घोटू क्यों रहती है ? यह जानना कोई रॉकेट साइंस नहीं है । होता यह है कि दिलशाद गार्डन की तरफ से गाजीपुर तक के रास्ते पर लंबा फ्लाई ओवर बन गया है ।
तेज गति से आने वाला यातायात आनद विहार रेलवे-बस स्टेंड के सामने ठिठक जाता है । यहा दोनों तरफ यातायात के लिए आधी लेन रहती है। बाकी अपर बसें, टेक्सी, ऑटो, रेहड़ी बाजार का कब्जा है । यहाँ बहुत सारा यातायात महकमा भी रहता है लेकिन वह “अपने काम” में व्यस्त रहता हैं । सड़क के दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश का बस अड्डा है जहां से सारे दिन कोई डेढ़ हजार बसें चलती है जोकि डीजल से चलने वाली है । उसी से सटे कई कारखाने हैं और वहाँ बड़े हिस्से में कच्ची जमीन है जिससे धूल उड़ती ही है ।
सारे दिन में कोई एक लाख लोगों का आवागमन है सो अलग – अब इस इलाके में 15 साल पुरानी पेट्रोल या दस साल पुरानी डीजल की कार चलाएं या नहीं , हवा का जहर उतना ही रहता है । कड़वा सच तो यह है कि किसी भी सरकार का हवा को शुद्ध रखने का ईमानदारी से कभी कोई इरादा रहा नहीं । जब-तब अदालतें कुछ आदेश देती हैं और सरकार में बैठे लोग अपनी चमड़ी बचाने और चेहरा चमकाने को कभी ईवन- ओड़ , तो कभी स्माग टोवर तो कभी ऐसे ही प्रयोग करते रहते हैं ।
ये सभी मर्ज का इलाज तो है नहीं । ठीक आज पुराने वाहनों को बंद करने के पीछे कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थानों से लेकर वाहन बनाने वालों लाबी तक का दवाब अधिक है । दिल्ली एन सी आर की अनिवार्यता तो वहाँ वाहनों की ही नहीं , बल्कि इंसानों की संख्या कम करने की है जबकि सरकारी नीतियाँ भीड़ बढ़ा कर परिवहन को नियंत्रित करने का छद्म है ।
दिल्ली में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण यहां बढ़ रहे वाहन, ट्राफिक जाम और राजधानी से सटे जिलों में पर्यावरण के प्रति बरती जा रही कोताही है। हर दिन बाहर से आने वाले कोई अस्सी हजार ट्रक या बसें यहां के हालात को और गंभीर बना रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि समस्या बेहद गंभीर है ।
याद करें कुछ साल पहले अदालत ने दिल्ली में आवासीय ईलाकों में दुकानें बंद करने, अवैध कालोनियों में निर्माण रोकने जैसे फैसले दिए थे, लेकिन वोट के लालच में सभी सियासती दल अदालत को जन विरोधी बताते रहे। परिणाम सामने हैं कि सड़कों पर व्यक्ति व वाहन चलने की क्षमता से कई सौ गुणा भीड़ है। सुदूर राज्यों से काम की तलाश में आए लोग सड़कों पर वाहनों की मांग व उसकी पूर्ति के लिए वैध-अवैध साधन बढ़ा रहे हैं। वैसे भी यह महानगर ट्राफिक जाम,भयंकर भीड़ और अल्प जागरूकता के कारण सांस लेने लायक नहीं रह गया है।
सीआरआरआई की एक रपट के मुताबिक राजधानी के पीरागढी चौक से हर रोज 315554 वाहन गुजरते हैं और यहां जाम में 8260 किग्रा ईंधन की बर्बादी होती है। इससे निकलने वाला कार्बन 24119किग्रा होता है। कनाट प्लेस के कस्तूरबागांधी मार्ग पर प्रत्येक दिन 81042 मोटर वाहन गुजरते हैं व रेंगते हुए चलने के कारण 2226 किग्रा इंधन जाया करते हैं। इससे निकला 6442 किग्रा कार्बन वातावरण को काला करता है। और यह हाल दिल्ली के चप्पे-चप्पे का है।
यानि यहां सडकों पर हर रोज कई चालीस हजार लीटर इंधन महज जाम में फंस कर बर्बाद होता है। कहने को तो पार्टिकुलेट मैटर या पीएम के मानक तय हैं कि पीएम 2.5 की मात्रा हवा में 50पीपीएम और पीएम-10 की मात्रा 100 पीपीएम से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन दिल्ली का कोई भी इलाका ऐसा नहीं है जहां यह मानक से कम से कम चार गुणा ज्यादा ना हो। लेकिन हकीकत यह हैं कि यह प्रदूषण वाहन चलने से नहीं, बल्कि जाम में फँसने, धीमी गति से चलने या ट्रेफिक सिग्नल पर खड़े होने से उपज रहा हैं ।
दिल्ली में पुराने वाहनों को बंद करने का निर्देश एक न्यायिक आदेश और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर आधारित है। यह निर्णय वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए लिया गया था।
यहाँ पूरा घटनाक्रम और प्रकरण का सारांश प्रस्तुत है:
🔹 निर्देश किसका था?
1. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)
- तारीख: 7 अप्रैल 2015
- निर्णय:
- दिल्ली एन सी आर में 10 साल से अधिक पुराने डीज़ल वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध।
- बाद में यह निर्देश 15 साल से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों पर भी लागू हुआ।
एन जी टी ने कहा था कि पुराने वाहन वायु प्रदूषण के बड़े कारक हैं और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि पुराने इंजन अधिक मात्रा में PM और NOx छोड़ते हैं।
2. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
- तारीख: 2018
- निर्णय:
- सुप्रीम कोर्ट ने NGT के आदेश को बरकरार रखा और 15 साल पुराने पेट्रोल व 10 साल पुराने डीज़ल वाहनों को दिल्ली-एनसीआर में सड़कों से हटाने का आदेश दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इन पुराने वाहनों का पंजीकरण स्वतः रद्द माना जाएगा।
🔹 प्रमुख प्रकरण
M.C. Mehta vs Union of India & Others
- पर्यावरण कार्यकर्ता एम.सी. मेहता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट और बाद में NGT में यह मामला लंबा चला।
- याचिका में वायु प्रदूषण के खिलाफ सख्त कदमों की मांग की गई थी, खासकर दिल्ली जैसे महानगर में।
🔹 प्रभाव और कार्यान्वयन
- RTOs (क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों) को पुराने वाहनों का डेटा साझा करने और उनके रजिस्ट्रेशन रद्द करने को कहा गया।
- दिल्ली सरकार ने ‘VAHAN’ पोर्टल से यह डाटा निकाला और सड़कों से ऐसे वाहन हटाने की प्रक्रिया शुरू की।
- कुछ वाहनों को ई-स्क्रैपिंग पॉलिसी के तहत स्क्रैपिंग की अनुमति दी गई।
🔹 सम्बंधित नीतियाँ
✅ वाहन स्क्रैपेज पॉलिसी (2021)
- केंद्र सरकार की यह नीति 15 साल से पुराने निजी वाहन और 10 साल से पुराने व्यावसायिक वाहनों के लिए बनाई गई।
- इसके तहत वाहन मालिकों को स्क्रैप सर्टिफिकेट देकर नए वाहन खरीदने में रियायत दी जाती है।
पुराने वाहनों को दोष देने से पहले सरकार को विचार करना था कि आखिर दिल्ली एनसीआर में साँसों में जहर घुलने की कारण क्या हैं और इनके दीर्घकालिक उपाय क्या हों । सच यह है कि दिल्ली की वायु प्रदूषण की त्रासदी कहीं अधिक जटिल, बहुआयामी और नीतिगत चूक से जुड़ी हुई है। यदि हम केवल वाहनों पर दोष डालते हैं, तो हम असली अपराधियों को अनदेखा कर देते हैं।
1. ठंड में पराली , गर्मी में रेतीली हवाएं और परागण
अक्टूबर-नवंबर आते ही पंजाब और हरियाणा में खेतों में पराली जलाने की घटनाएँ बढ़ जाती हैं। इन महीनों में दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान 30% से अधिक हो सकता है। यह समस्या दिल्ली की नहीं, बल्कि कृषि नीति और मशीनरी वितरण की विफलता की देन है।
वहीं गरमी के दिनों में हवा एक से डेढ़ किलोमीटर ऊपर तक तेज गति से बहती है। इसी लिए मिट्टी के कण और राजस्थान -पाकिस्तान के रास्ते आई रेत लोगों को सांस लेने में बाधक बनती है। दिनों पेड़ों का परागण भी सांस का दुश्मन बनता है । परागणों के उपजने का महीना मार्च से मई मध्य तक है लेकिन जैसे ही जून-जुलाई में हवा में नमी का स्तर बढ़ता है। तो पराग और जहरीले हो जाते हैं।
2. निर्माण कार्यों से उड़ती धूल
दिल्ली एन सी आर में चल रहे अनियंत्रित निर्माण कार्य वायु में PM10 और PM2.5 कणों की भारी मात्रा को घोल देते हैं। खुले में पड़ी रेत-बजरी, बिना ढके ट्रक, और सड़क की खुदाई — ये सभी धूल को हवा में उड़ने देते हैं। निर्माण स्थलों से असीमित धूल तो उड़ ही रही है , यातायात जाम के दिक्कत भी उपज रही है। सरकार के पास निर्माण रोकने का आदेश देना एक अस्थायी उपाय है, पर स्थायी समाधान की इच्छा दुर्लभ है।
3. उद्योगों से निकलता ज़हर
दिल्ली के चारों ओर बसे औद्योगिक शहर – गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा, झज्जर – ऐसे उद्योगों से भरे हैं जो आज भी कोयला, डीज़ल, और रबड़ जैसे घटिया ईंधनों का प्रयोग करते हैं। इनके धुएं में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड सांस की बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं।
इनपर नियंत्रण की जिम्मेदारी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की है, जहां या तो कर्मचारी नहीं हैं या फिर राजनीतिक दवाब में ऐसे प्रदूषण को नजर अंदाज किया जाता है ।
4. कचरे का जलाया जाना: अदृश्य ज़हर
भलस्वा, गाजीपुर और ओखला के लैंडफिल में हर दिन सैकड़ों टन कचरा जलाया जाता है। इससे निकलने वाला धुआँ डायॉक्सिन्स, फ्यूरांस और भारी धातुएँ लिए होता है जो कैंसर तक को जन्म दे सकते हैं।
इस समस्या पर स्थानीय निकायों की चुप्पी चिंताजनक है
5. कोयला आधारित पावर प्लांट्स
दिल्ली से 50-100 किमी के दायरे में कई कोयला आधारित बिजली संयंत्र हैं। उनकी चिमनियाँ जब प्रदूषक छोड़ती हैं, तो हवा की दिशा के अनुसार वे दिल्ली तक पहुँचते हैं। बदरपुर प्लांट को तो बंद किया गया, लेकिन झज्जर, पानीपत, यमुनानगर जैसे प्लांट अभी भी दिल्ली की हवा को गंदा कर रहे हैं।
6. भूगोल और मौसम की भूमिका
दिल्ली एक अवसाद (basin) जैसी संरचना में बसी है। सर्दियों में जब हवा की गति कम होती है और तापमान नीचे गिरता है, तब टेम्परेचर इनवर्जन होता है — प्रदूषक ऊपर उठने की बजाय जमीन पर जम जाते हैं। यही कारण है कि नवंबर-दिसंबर में स्थिति सबसे भयावह हो जाती है।
सन 2010 से 2020 के दशक के दौरान केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन सफर इंडिया (वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान प्रणाली) का एक शोध तो दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारणों के बढ़ते दायरे पैर आंखे खोलने वाला दस्तावेज है । गौर तलब हैं कि दिल्ली में पुराने वाहन बंद करना का फैसला 2015 का है और जाहीर है कि उसके लिए इस्तेमाल आँकड़े 2010 के पहले के होंगे । “सफर” ने उन 26 कारणों का पता किया जो बदलते दिल्ली एन सी आर में भीड़ बढ़ा रहा हैँ और उससे उपजने वाले वायु प्रदूषण भी । इनमें से प्रमुख हैं –
परिवहनः सड़कों पर अतिक्रमण और घंटों लंबा यातायात जाम
गंदी बस्ती: खाना पकाने के लिए प्रयुक्त ईंधन और उसकी मात्रा
ईंट भट्ठे: चलाने की प्रौद्योगिकी और प्रयुक्त ईंधन की मात्रा
रेहड़ी-खोमचेः प्रदूषित ईंधन, तंदूर के लिए कोयला जलानाहोटल (ढाबा): ईंधन का प्रकार और उसकी खाना पकाने के लिए उपयोग की जाने वाली मात्रा, स्पीड ब्रेकर : ब्रेकरों के चलते वाहनों की धीमी होती गतिप्रमुख अस्पतालः बाहरी रोगियों की बढ़ती संख्या, वाहन लोड और डीजल जनरेटर सेटपर्यटक स्थल : पर्यटक भार- वाहनों की बढ़ती संख्य बैटरी रिक्शे मेट्रो स्टेशन के आसपास जाम और उससे उपजे प्रदूषण का बड़ा कारण हैं ।
दिल्ली एन सी आर में बड़ी संख्या में वे लोग है जो मजबूरी में निजी वाहनों का इस्तेमाल अकरते हैं । लाखों लोग ऐसे हैं जिनके वाहन अक्सर चलते नहीं । दोनों हालात में वाहन-बंदी से मध्य और निम्न मध्य वर्ग की जेब में छेद हो रहा है । जब आम लोगों में गुसस बढ़ा तो सरकार ने वाहनों को ईंधन देने के आदेश में ढील दे दी , लेकिन यह भी तो अदालत की अवमानना ही है ।
आखिर समय रहते सरकार ने अदालत में सही स्थित की जानकारी और पुराने वाहनों को ले कर अपनी स्थिति स्पष्ट क्यों नहीं की ? असलियत यह है कि कोई भी नहीं कहता कि दिल्ली की हवा साफ हो क्योंकि इससे अस्पताल – पैथ लेब – दवा के नेक्सस को नुकसान होगा , वहीं नए वाहन खरीद से देश की आर्थिक प्रगति के आँकड़े दिखा कर दंभ करने का अवसर मिलेगा ।
दिल्ली से गैर जरूरी सरकारी दफ्तरों और संस्थानों को 200 किलोमीटर दूर भेजा जाए , सड़क पर वाहनों की पार्किंग , रेहड़ी-पटरी पर पाबंदी लगे । दिल्ली एनसीआर में डीजल के वाहों पर पूरी तरह पाबंदी लगे – इससे ही आधे प्रदूषण से निबटा जा सकता है , जबकि सरकार अभी तक प्रदूषण बाढ़ाने वाले कारकों को पोषित करने और प्रदूषण से निबटने के कागजी उपायों पर ही काम कर रही हैं ।