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सर्दियों में सूखते जलस्रोत

सर्दियों में सूखते जलस्रोत: जलवायु परिवर्तन, वाष्पीकरण और भूगर्भीय फ्रैक्चर का वैज्ञानिक सत्य

सर्दियों में सूखते जलस्रोत: जलवायु परिवर्तन, वाष्पीकरण और भूगर्भीय फ्रैक्चर का वैज्ञानिक सत्य

जलवायु परिवर्तन, वाष्पीकरण और भूगर्भीय फ्रैक्चर का वैज्ञानिक सत्य

अजय सहाय

आज के समय में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण सर्दियों के मौसम (Winter Season) में भी देश-दुनिया के तालाबों (Ponds), नदियों (Rivers), झीलों (Lakes) तथा नहरों (Canals) का जल स्तर तेजी से घट रहा है तथा ये जल स्रोत सूखते जा रहे हैं, जो पहले केवल गर्मियों (Summer) में ही देखा जाता था, इसका प्रमुख कारण वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Temperature Rise), वायुमंडलीय असंतुलन (Atmospheric Instability), भूमि की जल धारण क्षमता में कमी (Decreased Water Holding Capacity of Soil), वाष्पीकरण दर में असमान वृद्धि (Abnormal Rise in Evaporation Rate) तथा जलवायु परिवर्तन से जुड़े कई कारक हैं।

वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार 1880 से अब तक पृथ्वी का औसत तापमान 1.2°C से अधिक बढ़ चुका है, IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार 1901-2020 के बीच भारत में औसत सतही तापमान में 0.7°C की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे सर्दियों में भी वाष्पीकरण (Evaporation) की दर तेज़ हो गई है, सामान्यतः वाष्पीकरण की प्रक्रिया सूर्य के ताप, वायु की गति, वायुमंडलीय दबाव और आर्द्रता पर निर्भर करती है, परंतु अब सर्दियों में भी जब न्यूनतम तापमान अधिक (High Minimum Temperature) होने लगा है ।

तब वाष्पीकरण की प्रक्रिया पहले से कई गुना तेज हो गई है, भारत में CSIR-NGRI (National Geophysical Research Institute) तथा IITs द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार, अब सर्दियों में भी नदियों, तालाबों, झीलों तथा नहरों में जल स्तर 15% से 28% तक कम होने लगा है, इसके अलावा भूमि के भीतर भूगर्भीय संरचना (Subsurface Geological Structure) का भी बड़ा योगदान है, विशेषकर वर्टिकल फ्रैक्चर (Vertical Fractures) तथा हॉरिजॉन्टल फ्रैक्चर (Horizontal Fractures) के कारण, जब किसी जलस्रोत के नीचे वर्टिकल फ्रैक्चर होते हैं, तो जल सीधा गहराई की ओर रिसने लगता है, जिससे सतह पर जल स्तर घट जाता है ।

वहीं हॉरिजॉन्टल फ्रैक्चर भूमि की परतों के बीच जल के क्षैतिज प्रवाह को बढ़ाते हैं जिससे जल भौगोलिक रूप से अन्य स्थानों पर रिसकर चला जाता है, ISRO के SAC (Space Applications Centre) तथा NIH (National Institute of Hydrology) की रिपोर्टों के अनुसार उत्तर भारत के जलाशयों में ऐसे फ्रैक्चर नेटवर्क के कारण प्रतिवर्ष औसतन 22-35% जल हानि हो रही है, जबकि पूर्वोत्तर भारत में यह प्रतिशत 12-18% के बीच है, भारत में वर्तमान में लगभग 7.75 लाख हेक्टेयर वेटलैंड्स हैं, जिनमें से 32% वेटलैंड्स गंभीर जल हानि से जूझ रहे हैं, यही नहीं, जलवायु परिवर्तन के कारण हवा की आर्द्रता (Relative Humidity) में कमी तथा भूमि पर तापीय प्रभाव (Thermal Impact on Land Surface) के कारण भी जल वाष्पित हो रहा है ।

 NASA तथा NOAA के अनुसार वर्तमान में वैश्विक वाष्पीकरण दर प्रतिवर्ष 1.2 मिलीमीटर बढ़ रही है, जिससे भारत जैसे उपोष्ण (Subtropical) देशों में सर्दियों में भी जल स्रोतों का सूखना बढ़ गया है, इसके अलावा, कृषि उपयोग में वृद्धि, जल के अत्यधिक दोहन (Over-Extraction of Groundwater), औद्योगिक गतिविधियां तथा अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट (Urban Heat Island Effect) भी सर्दियों में जल स्तर घटने के बड़े कारण बन गए हैं ।

 वर्ष 2024 के ISRO के अध्ययन के अनुसार भारत के 60% शहरी जलाशयों में सर्दियों में औसतन 19-25% जल स्तर कम हो जाता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 12-18% है, साथ ही, वर्ष 2023 में Central Ground Water Board (CGWB) की रिपोर्ट बताती है कि भारत के 16% ब्लॉक अति गहन जल संकट की स्थिति में हैं, जहां सर्दियों में भी जल स्तर तेजी से गिर रहा है, जलवायु परिवर्तन के कारण अब वाष्पीकरण केवल तापमान पर निर्भर नहीं रहा, बल्कि वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) जैसे CO₂, CH₄, N₂O के उच्च स्तर, हवाओं की असामान्य गति (Wind Speed) तथा भूमिगत जल प्रवाह (Subsurface Flow) भी वाष्पीकरण में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं ।

 भारत में औसतन वायुमंडलीय CO₂ का स्तर 430 ppm तक पहुँच गया है, जिससे दीर्घकालिक तापीय प्रभाव बढ़ रहा है, UNEP तथा WMO के अनुसार अब 2020 के बाद से सर्दियों में वाष्पीकरण दर में हर दशक 8-10% की बढ़ोतरी हो रही है, नदियों के प्रवाह में भी कमी आई है, CWC (Central Water Commission) की रिपोर्ट के अनुसार गंगा नदी में औसत वार्षिक प्रवाह 2010 से 2020 के बीच 13% घटा है, वहीं यमुना में 17% कमी आई है  ।

वैज्ञानिकों के अनुसार जब वेटलैंड्स व जलाशय सूखते हैं, तो उनके नीचे के फ्रैक्चर सक्रिय हो जाते हैं, जिससे जल नीचे गहरे भूजल स्तर तक चला जाता है, इससे सतही जल स्तर पुनः ऊपर नहीं आ पाता, भारत में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, राजस्थान तथा अरावली क्षेत्र के जलाशयों में यह समस्या अत्यधिक गंभीर है, जहाँ वर्टिकल फ्रैक्चर 200 मीटर से अधिक गहराई तक सक्रिय हैं, परिणामस्वरूप यहाँ जल पुनर्भरण की प्रक्रिया विफल हो रही है, इसके अलावा, भूमिगत जल प्रवाह की दिशा भी जलाशयों के सूखने में भूमिका निभाती है ।

IIT Roorkee तथा NIH के शोध में यह पाया गया है कि भारत में 47% जलाशयों के नीचे जल प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर है, जिससे जल दूसरे क्षेत्रों में चला जाता है, इसके साथ ही, ग्लेशियरों के पिघलने में कमी, बर्फबारी में गिरावट तथा सर्दियों के मौसम में वर्षा की अस्थिरता भी जलस्रोतों के सूखने के कारण हैं, IMD (India Meteorological Department) के अनुसार 1951-2020 के बीच भारत में सर्दियों में वर्षा में 12% की गिरावट दर्ज हुई है, जिससे जलाशयों में प्राकृतिक जल पूर्ति घट गई है, इसके अतिरिक्त मानवजनित कारक जैसे जलाशयों का अतिक्रमण, जल प्रदूषण, निर्माण कार्यों के कारण जल रिसाव, और वेटलैंड्स के आसपास की वनस्पतियों का विनाश भी जल हानि को बढ़ा रहे हैं ।

 जलवायु परिवर्तन से अब नदियों का इकोलॉजिकल फ्लो (Ecological Flow) भी प्रभावित हो रहा है, WWF की रिपोर्ट के अनुसार भारत की 70% नदियाँ अब न्यूनतम इकोलॉजिकल फ्लो से भी नीचे बह रही हैं, जिससे जल संरक्षण की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है, ISRO के अध्ययन में यह भी पाया गया है कि जब किसी तालाब या झील के आसपास की वनस्पति हटा दी जाती है, तो वहाँ वाष्पीकरण की दर 30-35% तक बढ़ जाती है, साथ ही, जब जमीन के ऊपर का जल सूखता है, तो भूमिगत फ्रैक्चर वाले क्षेत्रों में वहाँ भूमिगत जल भी तेजी से नीचे की ओर बहने लगता है, जिससे जल स्तर नीचे जाने लगता है ।

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस समय सबसे बड़ा खतरा ‘Groundwater Discharge Acceleration’ है, यानी भूजल का तेजी से रिसाव, जिससे न केवल सतही जल स्रोत सूख रहे हैं बल्कि भूमि नीचे धंसने (Land Subsidence) की घटनाएं भी बढ़ रही हैं, चीन, अमेरिका, मैक्सिको तथा भारत में भूमि धंसने की बढ़ती घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं, UNEP के अनुसार हर वर्ष लगभग 10 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में सर्दियों के दौरान वेटलैंड्स व जलाशयों का जल स्तर 20-40% तक कम हो जाता है ।

 इसके साथ ही, भारत में CSIR-NEERI तथा NIH के अनुसार जलवायु परिवर्तन से अब रात के तापमान (Night-Time Temperature) में वृद्धि हो रही है, जिससे सर्दियों में भी जलवाष्पीकरण की प्रक्रिया अब 24 घंटे सक्रिय रहती है, पहले सर्दियों में रात के समय वाष्पीकरण रुक जाता था परंतु अब यह निरंतर हो रहा है, भारत के कई राज्यों जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार तथा झारखंड के तालाबों में यह प्रवृत्ति अत्यधिक देखी गई है, जल विशेषज्ञों के अनुसार जब सर्दियों में तालाब, झीलें, नदियाँ तथा नहरें सूखती हैं, तो इसका सीधा प्रभाव स्थानीय जलवायु, कृषि, मछली पालन, जैव विविधता तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, साथ ही, भूमिगत जल संकट भी गहराता है ।

 वर्ष 2025 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि जलवायु परिवर्तन की वर्तमान प्रवृत्ति बनी रही, तो 2050 तक विश्व के लगभग 55% जलाशय सर्दियों में सूख सकते हैं, भारत के संदर्भ में यह आंकड़ा 48% तक हो सकता है, अतः यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन, भूमिगत फ्रैक्चर, असमान वाष्पीकरण, भूजल का अत्यधिक दोहन, प्राकृतिक पूर्ति में कमी तथा मानवजनित कारक मिलकर सर्दियों में भी जलस्रोतों के सूखने के मुख्य कारण बन रहे हैं, जिससे जल संकट और अधिक गंभीर होता जा रहा है, इसके समाधान हेतु वैज्ञानिक रणनीतियाँ, जल पुनर्भरण के विशेष मॉडल, वेटलैंड संरक्षण नीति तथा प्राकृतिक जलचक्र को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि जल आत्मनिर्भरता संभव हो सके।

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