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मौसम की भविष्यवाणी और लोक अनुमान

मौसम का पूर्वानुमान

मौसम का पूर्वानुमान

शिवचरण चौहान

आज मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम विज्ञान केंद्र खुल गए हैं। भारत सहित अनेक देशों ने अंतरिक्ष में उपग्रह भेज रखे हैं जो मौसम की जानकारी देते रहते हैं। इतना सब होते हुए भी मौसम धोखा दे जाता है। मौसम विभाग के पूर्वानुमान झूठे साबित होते है। मौसम की गति मौसम विभाग के पूर्वानुमान के विपरीत चलती दिखाई देती है। सदियों से लोकमानस मानसून के बारे में भविष्यवाणी करता रहा है। कहते हैं मौसम का पूर्वानुमान लगाना बड़ा मुश्किल होता है।__

 भाव, मीच औ पानी ब्रह्मा न जानी

   वस्तुओं की कीमतों का घटना बढ़ना,, आदमी की मृत्यु की तिथि और मौसम का पूर्वानुमान सृष्टि निर्माता ब्रह्मा जी भी नहीं लगा पाते हैं तो मनुष्य की क्या  गणना।

भारतीय कृषि मौसम का जुआ है। यदि बादल ठीक से बरसे तो फसल अच्छी होती है बाढ़ आई तो फसल बाहर ले जाती है। कभी सूखा और कभी बाढ़ सदियों से किसानों का पीछा ही नहीं छोड़ रहे हैं। गांव के ज्योतिषियों ने किसानों ने अपने दीर्घ अनुभव के अनुसार मौसम के बारे में कुछ कहावतें बनाई हैं जो सत्य साबित होती हैं। जब से जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ा है मौसम विभाग के पूर्वानुमान और लोक कहावतें झूठी साबित होने लगे फिर भी लोग इन पर विश्वास करते हैं।

मौसम को लेकर कुछ लोक कहावतें प्रस्तुत है। लोकोक्तियां प्रस्तुत हैं।

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 ग्रामीण मौसम वैज्ञानिक प्रकृति को देखकर अनुमान लगाता है। हवा किस दिशा की बह रही है। बादल किस प्रकार है। इसकी दशा-दिशा

कैसी है। कौन सा नक्षत्र  चल रहा है है।  पशु-पक्षी किस प्रकार का व्यवहार

कर रहे है। वनस्पतियों की गतिविधियों कैसी है। इस प्रकार की और भी कई बातें हैं, जो मौसम को प्रभावित करती हैं। हमारे पूर्वजों ने समस्त गतिविधियों का अध्ययन, मनन और चिंतन किया। जाँचा-परखा और जन संसार के लिए लोकोक्तियों का निर्माण किया। लोक कहावतें अनुभव

पर आधारित हैं।

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सर्व तपे जो रोहिणी, सर्व तपे जो मूर।

परिवा तपे जो जेठ  की, उपजे सातो तूर ।।

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यदि रोहिणी  नक्षत्र में सूरज खूब तपे जेठ की प्रतिपदा को खूब गर्मी पड़े तो सातों प्रकार के अन्न की अच्छी पैदावार होगी। 

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शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।

 कहे जोतिसी  भड्डरी, बिन बरसे न जाय ॥

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अगर शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएँ। तो भड्डरी

कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।

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सावन पहिले  पाख में दसमी रोहणी होय।

महंगा नाज अरु स्वत्य जल बिरला बिलसे कोय॥

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 अगर सावन महीने के कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र हो तो

समझ लेना चाहिए कि अनाज महँगा होगा और वर्षा बहुत कम होगी। बिरले

लोग ही सुखी रह पाएंगे।

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सावन शुक्ला सप्तमी, जो गरजे अधरात।

 तुम बरसो प्रिय मालवा, हम जावे गुजरात ॥

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यदि सावन शुक्ल पक्ष सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजें और

पानी बरसे तो अकाल पड़ने की चेतावनी है।  और अगर ना बरसे न बरसे तो बरसात होगी और फसल ठीक रहेगी!

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पुरवा, पियो मोड़ का कुरवा।

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जब पूरब की वायु  पुरवाई चलेगी तो जानों की माड़ का कुरवा खूब

पिओगे, अर्थात् धान की फसल अच्छी होगी। और चावल का मांड निकलेगा।

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‘ आंभा झोर चले पुरवाई, तब जानो वर्षा ऋतु आई।’

यदि लगातार पूर्वी हवा चले तो समझेव  बरखा व ऋतु आई।।

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अगर पुरवाई हवा बहुत तेज चले तो समझना चाहिए कि बरसात होगी।

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‘उलटे गिरगिट ऊँचे चढ़े।’

बरखा होइ भूई जल बढ़े ॥

जब गिरगिट उलटा होकर ऊपर की ओर  पेड़ में चढ़े तो समझो कि बरसात

होगी और पृथ्वी जल से तृप्त होगी।

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उत्तर मलके करे दक्षिण निशान।

कह दो किसान से ऊपर करे बंधान ।।

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जब बादल उत्तर दिशा की ओर घुमड़कर चलें और यदि बिजली

चमके तो किसान से कह दो कि अपनी गायों को ऊँचे या  ओसारे  में बांध

दे, क्योंकि वर्षा अधिक होगी।

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ढेले ऊपर  चील जो बोले।

गली-गली में पानी डोले।

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जब देखें कि कहीं खेत में  ढेले के ऊपर बैठी हुई चील बोल रही है

तो समझो कि वर्षा अच्छी होगी और गली-गली में पानी भर जाएगा।

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दिन को बादर रात को तारे।

चलो कंत जहाँ जीवे बारे॥

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यदि दिन में बादल छाए रहते  हों और रात को तारे दिखाई दें तो ऐसी हालत

देखकर किसान की स्त्री कहती है–समय अच्छा नहीं होगा अर्थात बुरे दिन के लक्षण हैं। इसलिए कंत (स्वामी) यहाँ से छोड़कर किसी

ऐसी जगह चलो जहाँ ये छोटे-छोटे बच्चे जी सकें अर्थात् इनके खाने-

पीने का निर्वाह हो।

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दिन सात जो चले बांडा।

सूखे जल सातों खांडा।

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जब दक्षिण हवा कुछ पश्चिम से मिलकर निरंतर सात दिन तक

 चलती रहे तो समझो कि पृथ्वी के सातों खंड का पानी सूख गया है।

अर्थात् बरसात नहीं होगी।

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लाल पियर जो होय अकास।

तब नहीं बरखा की आस ।।

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आकाश जब लाल-पीला होने लगे  तू समझ लेना चाहिए कि अब बरसात नहीं होगी ।

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दिन में गरमी रात में ओस।

कहै घाघ बरसा सौ कोस ।।

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   लोक कवि घाघ कहते हैंयदि दिन में गरमी पड़ती है और रात में ओस पड़े  तो समझ लेना चाहिए की वर्षा सैकड़ों कोस दूर है।

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सावन मास सूखी क्यारी।

भादो सूखा इन्हारी॥

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श्रावण मास  यानी सावन की सूखी क्यारी अर्थात् खरीफ और भादों का सूखा रबी की फसल को बर्बाद कर देता है।  

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रात को करें दौड़-धूप, दिन करे छाया!

कहे घाघ अब बरखा  जाया।।

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यदि रात्रि में बादल दीड़ इधर उधर जाए और दिन में स्थिर होकर छाया करें तो समझ लेना चाहिए कि बरसात बहुत कमजोर होगी।

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सावन केरे प्रथम दिन

 उगत न दिखे भान।

चार महीना बरसे पानी,

बरखा का फरमान।।

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सावन कृष्ण पक्ष परेवा, प्रतिपदा को यदि सूर्य उगता न दिखाई पड़े तो पानी चार महीने तक खूब बरसेगा। अच्छी होगी।

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भोग समै डर डंबरा, रात उजेली होय।

दुपहरिया सूरज तपे,  यह अकाल का जोय॥

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सवेरे आकाश में बादल छाए हो, रात में आकाश साफ हो. दोपहर

को आकाश में सूर्य तपे तो निश्चय ही अकाल पड़ेगा।

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सावन वदी एकादशी जेतो रोहिणी होय।

तेतो समया उपजे, चिंता करो न कोय॥

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 सावन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को जितने समय रोहिणी नक्षत्र होगा उस समय अच्छी उपज होगी। व्यर्थ चिंता मत करो। बरसात होगी और फसल अच्छी होगी।

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सावन कृष्णा  परवा को देखी,

तुल पर मंगल होय बिशेखी।

कर्क राशि पर गुरु जो जावे।

सिंह राशि पर शुक्र सुहावे।।

ताल सो सोखे बरसे धूर.

कहूँ न उपजें सातों तूर।।

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     अगर सावन के कृष्ण पक्ष में यदि तुला पर मंगल हो या कर्क राशि पर

बृहस्पति हो या सिंह राशि पर शुक्र हो, तो तालाब सूख जाएंगे। आँधी

चलेगी और अन्न कहीं नहीं उपजेगा।

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सावन पहली पंचमी,  चले  जोर बयार।

तुम जाना पिय मालवा, हम जावे पितु सार ।।

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सावन कृष्णा पंचमी को यदि तेज हवा चले तो अवश्य अकाल पड़ेगा। हे प्रिय! तुम मालवा कमाने जाओ और में पिता के घर  चली जाऊँगी।

    इन्हीं लोकोक्तियां और लोक।कहावतों  के आधार पर किसान मौसम का पूर्वानुमान लगाकर खेती किसानी का कार्य करते थे।

 पंडित राम नरेश त्रिपाठी ने गांव-गांव घूमकर लोक कवि घाघ और भद्दरी की लोकोक्तियां एकत्र की थी और उन्हें पुस्तक आकार रूप में प्रकाशित करवाया था जो आज भी हमारी धरोहर है। हमारे आधुनिक किसान इन्हें भूल गए हैं किंतु यह है बड़े काम की चीज।

   आज जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम विभाग कि पूर्वानुमान भी गलत साबित हो रहे हैं तो सदियों पहले पैदा हुए महाकवि घाघ की कहावतें यदि धोखा दे जाए तू आश्चर्य नहीं माना जाना चाहिए। इन लोकोक्तियों और लोक कहावतों पर शोध होना चाहिए। दिल्ली स्थित मौसम विज्ञान केंद्र और राज्य की राजधानियों में मौसम विज्ञान केंद्रों पर इन कहावतों पर शोध कार्य किया जाना चाहिए।

 सकते  तकनीक

का विज्ञान और अभी के विज्ञान का

समन्वय कर देखें तो मौसम कलोक कहावतों पर शोध भी होना चाहिए। आज के समय में ये कहावतें कितनी  प्रासंगिक हैं, यह शोध से पता चल जाएगा।

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जेटको दोपहर में, भादों  की अंधकार की रात में , पूस की भोर में मौसम में क्या क्या परिवर्तन होते हैं गौर किया जाना चाहिए।

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आइल आषाढ़ ता भूमि भई वरी।

सैया तह जातला बीघा चार अउरी!!

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जुलाई यानी आषाढ़ महीने के आने पर

धरती शस्यश्यामला हो गई। हे प्रियतम क्यों और चार बोधे जोत लेते हो। इसी में अपना काम चल जाएगा।

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हरियाणा की लोकोक्तियाँ

जेठ  जीत तपै निरास।

शाढ़ बरसण की आस ॥

यदि जेठ का महीना बिना वर्षा बीत जाए तो आषाढ़ मास में वर्षा की संभावना होती है।

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पौने चले उत्तरा। नाज खा ना इतरा॥

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यदि उत्तर दिशा से चलने वाली हवा यानी पवन चलती रहे तो फसलें इतनी अच्छी होती हैं और शाक सब्जी इतनी अधिक मात्रा में होती है कि कुत्ते भी खाकर छक जाएं।

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साम्मण में चाल्ले पिरवा, भादवे में पिछवा।

कंथा डाँगरा नै बेचकै, छोरा लिये जिवा॥

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 अगर सावन में पूर्वी और भादों में पश्चिमी हवा चले तो समझ लें

सूखा व अकाल पड़ेगा, बीमारी फैल जाएगो, इसलिए ढोर डांगर जानवर बेचकर घर का खर्च चलाना चाहिए और बच्चों को भी जीवित रखना चाहिए।

साढ़ साम्मण में चाल्लै पिरवा।

दल दल खावै बीज लुगाई ।।

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    आषाढ़ और सावन में निरंतर पूर्वी  हवा यानी पुरवइया हवा चले तोअकाल का लक्षण है। महिलाएं बीज के लिए रखे अनाज की दलकर या  पीस कर खा जाती है।

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परिवा चाल्ले मबादली, पिछया चारले निरोला!

सहदेव कहे झाड़ली, बरखा गई कित ओडा।।

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पूर्वी हवा बादलों सहित और पश्चिमी बादल-रहित चले तो निकट

भविष्य में वर्षा की कोई आशा नहीं है।

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दिन चाल्ले जेट में पिरवा।

उतने दिन रहे साम्मण सूक्का ।।

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जेठ मास में जितने दिन  पुरवा हवा चलती है उतने ही दिन सावन में

वर्षा नहीं होती है।

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माह में जो चाल्ल पिरवा।

खेल्लै पूत बुला ले माँ॥

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माघ में पूर्वी हवा चले तो इतनी खुशहाली आ जाती है कि बच्चे खेलते रहते हैं और उनकी माताएँ झुलाती रहती हैं।

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साम्मण पहली पंचमी, जै धड़कै बाल।

तूं जाइए कंत मालवा, मैं जागी प्यौसाल ॥

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  आगर सावन की पहली पंचमी को यदि हवा के साथ गरज भी हो तो

 अकाल पड़ता है। किसान की स्त्री कहती है कि आप मालवा देश जाएँ

और मैं पिता के घर जाऊँगी, क्योंकि यहाँ तो कुछ भी खाने को नहीं

मिलेगा।

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अनर सच्चा अर मोहँ मच्या।

सूर्यास्त के समय बादलों का रक्त वर्षा होना वर्षा का लक्षण है।

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तीत्तर बरणी बादली विधवा काजल रेख।

या बरसै वा घर करै, इनमें मीन ना मेख ॥!

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यदि आकाश में तीतर के रंग जैसे बादल छाए हों और विधवा स्त्री

आँखों में सुंदर ढंग से काजल लगाए हो तो यह निश्चित है कि बादल

बरसेंगे और विधवा स्त्री किसी पुरुष से संबंध स्थापित करके घर बसाएगी।

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साइद की खेती तीना की।

आँधी मी अर डोंगरी की।

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आषाढ़ी फसल तेज हवा, वर्षा तथा पशुओं पर ही निर्भर करती है।

   लोकोक्तियां और मौसम के पूर्वानुमान सभी प्रदेशों में अपनी अपनी भाषा में पाए जाते हैं और किस आने पर विश्वास करते थे। आज जलवायु परिवर्तन के कारण बहुत कुछ बदल गया है इसलिए इन पर पुनर्विचार और शोध करने की आवश्यकता है।

शिवचरण चौहान

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कानपुर

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   प्रस्तुत आलेख रामनरेश त्रिपाठी की पुस्तक और लोक में प्रचलित कहावतों के आधार पर लिखा गया है सर्वथा अप्रकाशित है।

शिव

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