सुनील कुमार महला
हाल ही में चीन की जिनपिंग सरकार (कम्युनिस्ट सरकार) द्वारा अपनी सेना पीएलए के लिए 10 लाख कामकाजी ड्रोन के महाआर्डर देने के बाद से पूरी दुनिया में इसकी खूब चर्चा हो रही है। इसी बीच कुछ और खबरें भी चीन की तरफ से आ रहीं हैं। एक प्रमुख खबर हाल ही आई है कि चीन ने भारतीय सीमा के करीब तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर 137 अरब डॉलर(यानी कि एक ट्रिलियन युआन) की लागत से दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण को मंजूरी दे दी है। निश्चित ही इससे तटवर्ती देशों- भारत और बांग्लादेश में चिंताएं बढ़ेंगी। चिंताए इसलिए क्यों कि चीन विश्व का एक ऐसा देश रहा है जो पड़ौसी देशों की जमीनों और वहां के संसाधनों को हड़पने व उन पर अवैध कब्जा जमाने को लेकर हमेशा विवादों में रहता आया है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि चीन की सरकार ने यह ऐलान किया है कि वह तिब्बत की सबसे लंबी नदी यारलुंग त्सांगपो (भारत का ब्रह्मपुत्र नद) पर महाशक्तिशाली बांध बनाने जा रही है। यह बांध (डैम) इतना विशालकाय है कि चीन की सरकार ने इसे ‘ग्रह का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट’ तक बताया है। दरअसल, चीन तिब्बत की सबसे लंबी नदी यारलुंग त्सांगपो नदी पर बांध बनाने जा रहा है। यह वही नदी है जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र नद के नाम से जाना जाता है। यह भी उल्लेखनीय है कि यारलुंग सांगपो का स्थान दुनिया के सबसे अधिक जलविद्युत समृद्ध क्षेत्रों में से एक है।
पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि यारलुंग सांपों नदी लगभग 50 किलोमीटर के एक हिस्से में लगभग दो हज़ार मीटर की ऊंचाई से गिरती है और इस ढलान की मदद से जलविद्युत उत्पादन में काफी मदद मिलती है। बताया जा रहा है कि ये बांध तिब्बत में ऐसी जगह बनाया जाएगा, जहां से ब्रह्मपुत्र नद अरुणाचल प्रदेश और फिर बांग्लादेश के लिए यू-टर्न लेती है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इस बांध के बनने का सबसे बड़ा फायदा चीन को होगा, लेकिन भारत के लिए यह किसी खतरे से कम इसलिए नहीं है क्यों कि चीन इस बांध का पानी कभी भी भारत की ओर छोड़ सकता है और इस तरह से चीन भारत पर कभी भी “डैम बम” फोड़ सकता है। निश्चित ही चीन के लिए यह बांध हाइड्रोपावर का एक बड़ा प्रोजेक्ट होगा लेकिन भारत के लिए खतरा क्यों कि चीन कभी भी इस बांध का प्रयोग एक वैपन के रूप में कर सकता है, मसलन वह भारतीय सीमा में भरपूर पानी छोड़कर यहां बाढ़ के गंभीर हालात पैदा कर सकता है। चीन द्वारा कम पानी छोड़ने पर भी भारत को पानी की दिक्कत होगी। न केवल भारत को बल्कि इससे पड़ौसी बांग्लादेश में भी पानी का संकट पैदा हो सकता है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि चीन के ये बांध बम(डैम बम) भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा व गंभीर खतरा है। गौरतलब है कि अभी दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत पॉवर स्टेशन ‘थ्री गॉर्जेस’ डैम भी मध्य चीन के हुबेई प्रांत में यांग्ज़ी नदी पर बना हुआ है और इसकी क्षमता सालाना 88 बिलियन किलोवाट-घंटा है। मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि इस बांध में 40 अरब क्यूबिक मीटर पानी है और ये बांध धरती के घूमने की रफ्तार तक को प्रभावित कर रहा है, तो हम यह अंदाजा सहज ही लगा सकते हैं कि ये कितना पावरफुल है।
दुनियाभर के वैज्ञानिक चीन द्वारा पूर्व में बनाए जा चुके बांध पर भी गंभीर चिंताएं जताई चुके हैं लेकिन बावजूद इसके भी चीन धरती का सबसे बड़ा बांध बनाने का फैसला ले चुका है। पाठकों को बताता चलूं कि चीन ने पहले ही 2015 में तिब्बत में सबसे बड़े 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ज़म हाइड्रोपावर स्टेशन का संचालन शुरू कर दिया है। चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने यह जानकारी दी है कि वर्तमान में जिस बांध के निर्माण को चीनी सरकार द्वारा मंजूरी दी गई है उससे चीन के धरती की स्पीड को प्रभावित करने वाले श्री जॉर्ज बांध से भी 3 गुना ज्यादा बिजली पैदा होगी। सरकारी एजेंसी के अनुसार, चीन की सरकार इसे हिमालय के करीब एक विशाल घाटी में बनाने की योजना पर काम कर रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो इसे तिब्बत पठार के पूर्वी छोर पर बनाया जाएगा। इसी लेख में ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि इसी स्थान से ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश और फिर बांग्लादेश की तरफ मुड़ जाती है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह बांध आने वाले समय में बीजिंग के लिए इंजीनियरिंग क्षेत्र में भी एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है, क्यों कि यह कोई आसान काम नहीं है, धरती की पारिस्थितिकी और पर्यावरण निश्चित ही इससे प्रभावित होंगे। हालांकि,यह बात अलग है कि हाल फिलहाल, चीन ने इस बांध परियोजना के ज़रिए पर्यावरण को प्रभावित न होने की बात कही है लेकिन विभिन्न मानवाधिकार समूहों और जानकारों ने इस घटनाक्रम के दुष्परिणामों के बारे में गंभीर चिंताएं जताई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चीन की तरफ से यह कहा गया है कि यह परियोजना चीन के कार्बन पीकिंग, कार्बन न्यूट्रलिटी के विभिन्न लक्ष्यों को पूरा करने और वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रमुख भूमिका निभाएगी। चीन ने यह भी कहा है कि इससे जहां एक ओर चीनी इंजीनियरिंग उधोग प्रोत्साहित होंगे वहीं दूसरी ओर इससे चीन में रोजगारों का भी बड़ी संख्या में सृजन हो सकेगा। हालांकि रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि इस बांध का निर्माण कब से शुरू होगा और निर्माण की सटीक जगह कौनसी व कहां होगी ? यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चीन की तरफ़ से यह भी साफ़ नहीं किया गया है कि इस परियोजना से चीन के कितने लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा और इसका धरती के ईको-सिस्टम पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
हालांकि,भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा है, लेकिन यह उतना बड़ा नहीं है जितना की चीन का। वैसे भी भारत को अपनी साइड में बनाए जा रहे बांध में भी पानी को स्टोर करने के लिए चीन पर ही निर्भर रहना पड़ेगा, क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से ही निकलती है और इसके उद्गम स्थल पर पहला बांध चीन का ही है। हाल फिलहाल, यह कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन का बड़ा डैम बीजिंग को शत्रुता के समय सीमावर्ती क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में पानी छोड़ने में भी सक्षम बना सकता है। हालांकि यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत और चीन ने सीमा पार नदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 2006 में विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ईएलएम) की स्थापना की है, जिसके तहत चीन बाढ़ के मौसम के दौरान भारत को ब्रह्मपुत्र नदी और सतलज नदी पर जल विज्ञान संबंधी जानकारी प्रदान करता है, लेकिन चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि चीन द्वारा यह बांध मुख्य भूमि चीन के सबसे अधिक वर्षा वाले हिस्सों में से एक में बनाया जाएगा, जहां पानी का प्रचुर प्रवाह होगा। 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाइड्रोपावर स्टेशन से हर साल 300 बिलियन केडब्ल्यूएच से अधिक बिजली पैदा होने की उम्मीद है, जो 300 मिलियन से अधिक लोगों की वार्षिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। मतलब यह है कि यह बहुत ही विशालकाय बांध है। गौरतलब है कि यह बांध चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना का हिस्सा है जो कि वर्तमान में चीन की सबसे बड़ी ढांचागत परियोजना है।अंत में, यही कहूंगा कि चीन भारतीय सीमा पर इतना बड़ा बांध बनाकर रणनीतिक रूप से काफी सक्षम हो जाएगा। यह भी कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन ने इस बड़े प्रोजेक्ट के बारे में संपूर्ण विश्व को पारदर्शिता से जानकारी नहीं दी है,मसलन इससे कितने लोग विस्थापित होंगे, इसके धरती के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या प्रभाव होंगे वगैरह वगैरह, जिससे भारत समेत विश्व की चिंताएं बढ़ीं हैं। यह प्रोजेक्ट भारत में बाढ़ की समस्या, भारत में जल आपूर्ति की समस्या दोनों को ही जन्म दे सकता है, इसलिए भारत को चीन से विशेष सतर्कता बरतने और सावधान रहने की जरूरत है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह परियोजना भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा सकती है और दोनों देशों के बीच जल युद्ध की संभावना को जन्म दे सकती है। चीन इस बांध से क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है। गौरतलब है कि चीन द्वारा इस विशालकाय बांध का निर्माण करने से ब्रह्मपुत्र नद के प्रभाव पर चीन की एक तरह से मोनोपोली हो जाएगी। हाल फिलहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि यह बांध वाकई चीन की जरूरत है या वह इसे आने वाले समय में एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।