वेटलैंड और मियावाकी जैव विविधता
अजय सहाय
वर्तमान जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौती के संदर्भ में जब पृथ्वी का औसत तापमान 1.5°C से ऊपर जाने के कगार पर है, वर्षा चक्र असामान्य होता जा रहा है, और कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है, तब पारिस्थितिकी के दो प्रमुख जैविक स्तंभ – वेटलैंड जैव विविधता और मियावाकी जैव विविधता – मिलकर एक संतुलित समाधान प्रस्तुत करते हैं। भारत में लगभग 7.75 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले वेटलैंड्स 4.6% भूमि को कवर करते हैं, जो करीब 45,000 से अधिक वनस्पति और जीव प्रजातियों का घर हैं।
इनमें हाइड्रिला, टाइफा, वलिसनेरिया, जलकुंभी, कमल, सरकंडा जैसी जल वनस्पतियाँ प्रमुख हैं जो जल शुद्धिकरण, बाढ़ नियंत्रण, जैव विविधता पोषण और कार्बन अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, एक हेक्टेयर वेटलैंड प्रतिवर्ष औसतन 6.1 टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है, 2 टन ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है और 10 लाख लीटर वर्षा जल का संचयन करता है। वहीं, वेटलैंड से जुड़ी जैव विविधता जैसे प्रवासी पक्षी (साइबेरियन क्रेन, ब्राह्मणी डक), दुर्लभ कछुए, मछलियाँ, मेंढक, कीट-पतंगे आदि वैश्विक पारिस्थितिकी श्रृंखला के आधार हैं ।
इसके विपरीत, मियावाकी जैव विविधता तकनीक – जिसे जापानी वैज्ञानिक डॉ. अकीरा मियावाकी ने विकसित किया – पारंपरिक वनों की तुलना में 10 गुना तेजी से बढ़ने वाले घने, बहुस्तरीय वृक्षों की संरचना है, जो शहरों, वेटलैंड किनारों, और जल निकायों के आस-पास जलवायु स्थिरता, ऑक्सीजन उत्पादन और कार्बन अवशोषण का नया मॉडल बनाते हैं।
वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार, 1 हेक्टेयर मियावाकी वन प्रतिवर्ष 8–10 टन CO₂ अवशोषित करता है, 2.5–3 टन ऑक्सीजन उत्पन्न करता है, 15 लाख लीटर वर्षा जल को भूमि में समाहित करता है और जैव विविधता सूचकांक (Biodiversity Index) में 30% से अधिक वृद्धि लाता है। नीम, पीपल, बड़, अर्जुन, गुलमोहर, करंज, कचनार, मलशियन साल, जरुल जैसी देशज प्रजातियाँ तितलियों, मधुमक्खियों, पक्षियों, छिपकलियों और छोटे स्तनधारियों के लिए उत्कृष्ट आवास प्रदान करती हैं।
जब वेटलैंड जैव विविधता और मियावाकी जैव विविधता को वैज्ञानिक रूप से एकीकृत किया जाता है – जैसे कि किनारे पर 5 से 10 मीटर चौड़ाई का मियावाकी कॉरिडोर विकसित कर – तब यह “Bio-Hydro Buffer Zone” बनता है, जो जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच बन जाता है।
इस मिश्रित प्रणाली में वेटलैंड की जल वनस्पतियाँ जल शुद्ध करती हैं, जल को संग्रहीत करती हैं, जबकि मियावाकी वनस्पतियाँ जलवाष्प को नियंत्रित करती हैं, तापमान को घटाती हैं और वर्षा जल का भूमि में अवशोषण कराकर भूजल स्तर को संतुलित करती हैं। बिहार के मणिकामौन वेटलैंड (51 हेक्टेयर) में 2 किमी लंबा मियावाकी कॉरिडोर बनाकर 2 लाख पौधे लगाए गए, जिससे वहाँ का स्थानीय तापमान 3°C तक घटा, जल वाष्पन दर में 25% कमी आई और प्रवासी पक्षियों की संख्या में 40% वृद्धि दर्ज की गई।
इसी प्रकार पश्चिम बंगाल के East Kolkata Wetlands, ओडिशा के Chilika, असम के Deepor Beel और यूपी के Sarsai Nawar में भी मियावाकी परियोजनाएँ जैव विविधता में तीव्र वृद्धि का कारण बनीं।
जलवायु वैज्ञानिकों की दृष्टि से वेटलैंड और मियावाकी जैव विविधता मिलकर 5 प्रमुख जलवायु सेवाएँ प्रदान करते हैं – (1) ग्रीनहाउस गैसों का अवशोषण (Carbon Sink), (2) वर्षा जल संग्रहण, (3) बाढ़ और सूखे की तीव्रता में कमी, (4) स्थानीय तापमान में गिरावट, और (5) जैव विविधता संरक्षण। IPCC की AR6 रिपोर्ट (2023) में यह स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कि यदि भारत जैसे देश अपने सभी वेटलैंड्स के किनारे मियावाकी वृक्षारोपण करें, तो देश प्रति वर्ष 4 करोड़ टन CO₂ सोख सकता है, 3500 करोड़ लीटर वर्षा जल संरक्षित कर सकता है और 10,000 से अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों को नया जीवन दे सकता है।
बिहार सरकार का जल-जीवन-हरियाली अभियान (2019–2025) इस दिशा में एक प्रेरणादायक उदाहरण है, जहाँ 17.8 करोड़ पौधे लगाए गए हैं, जिनमें से 25% वेटलैंड्स और नहरों के किनारे हैं। MGNREGA और ग्रामीण वन विभाग के सहयोग से बनाए गए मियावाकी-जैवविविधता बफर जोन न केवल पारिस्थितिकीय बहाली में सहायक हो रहे हैं, बल्कि ग्रामीण रोजगार, कृषि उत्पादन, जल संकट समाधान और पारिस्थितिकी शिक्षा का भी केंद्र बनते जा रहे हैं।
इस संतुलन की एक विशेष वैज्ञानिक उपलब्धि यह है कि जब वेटलैंड में जलकुंभी, टाइफा जैसे पौधों का संतुलन बना रहता है और मियावाकी वृक्षों की छाया तथा जड़ें अत्यधिक वाष्पन को रोकती हैं, तब जल स्तर स्थिर रहता है और वेटलैंड का सूखना रुकता है। इसके अलावा, मियावाकी पौधों की गहराई तक फैली जड़ें वेटलैंड में होने वाले वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल फ्रैक्चर को भरने में सहायक होती हैं, जिससे जल का रिसाव कम होता है। यही कारण है कि वेटलैंड के आसपास विकसित मियावाकी क्षेत्र जल संरक्षण की दीर्घकालिक प्राकृतिक तकनीक के रूप में कार्य कर रहे हैं।
अतः यह वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट है कि वेटलैंड जैव विविधता (जल-आधारित) और मियावाकी जैव विविधता (भूमि-आधारित) का संतुलन न केवल एक-दूसरे के पूरक हैं, बल्कि संयुक्त रूप से जलवायु संकट के समाधान के सबसे प्रभावशाली Nature Based Solutions में से एक हैं। भारत को जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए इन दोनों जैविक संसाधनों का एकीकृत उपयोग बड़े पैमाने पर करना होगा, जिससे जल आत्मनिर्भर भारत 2047 के सपने को वैज्ञानिक और पारिस्थितिकीय आधार मिल सके।