मृदा स्वास्थ्य की देखभाल और प्रबंधन
डॉ. मौहम्मद अवैस
मृदा या मिटटी पर्यावरण का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। मानव जीवन के लिए इसका विशेष महत्त्व है क्यूँकि इसकी तीन मूल आवश्यकताएं-भोजन, कपड़ा और मकान मृदा से ही पूरी होती हैं। कृषि, पशुपालन एवं वन आधारित उद्योग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मृदा पर ही निर्भर करते हैं। विविध उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थों का उत्पादन 80 प्रतिशत मृदा से ही है। अतः मृदा का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। पौधे सीधे तौर पर मृदा से खनिज तत्व व जल प्राप्त करके अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। यदि मृदा में आवश्यक खनिज तत्वों की कमी है तो यह कमी पौधों और उनके उत्पाद में भी आती है। जब यह पौधे और उनके उत्पाद मानव या पशुओं द्वारा उपयोग में लाये जाते हैं तो यह कमी उनके शरीर में भी हो जाती है। इसके कारण विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं जिससे शारीरिक व मानसिक कार्यक्षमता प्रभावित होती है। कुल मिलाकर यदि मृदा में खनिज तत्वों की कमी या खनिज तत्वों की निर्धारित मात्राओं में असंतुलन है तो इसका विपरीत प्रभाव उपभोक्ता के शरीर पर पड़ता है।
मृदा संघठन में कार्बनिक पदार्थ 5-10 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 40 प्रतिशत, मृदा जल 25 प्रतिशत, मृदा वायु 25 प्रतिशत सहित मृदा जीव व मृदा अभिक्रियाएं होती हैं। यह सभी प्रकार की मृदाओं में कम या अधिक मात्रा में प्रायः कणिकीय पदार्थ या पार्टिकुलेट मैटर के रूप में पाए जाते हैं जो मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं। मृदा में अनेक आवश्यक खनिज और पोषक तत्व अधिक या कम मात्रा में पाए जाते हैं। प्रत्येक पौधे को अपना जीवनकाल पूरा करने के लिए 16 मुख्य तत्वों की आवश्यकता होती है जिनमें 3 गैसीय, 3 प्राथमिक, 3 द्वितीयक और 7 सूक्ष्म पोषक तत्व हैं। आमतौर पर मृदा में नाइट्रोजन, पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, कार्बन, ऑक्सीजन, और हाइड्रोजन अधिक मात्रा में तथा लौह, गंधक, सिलिका, क्लोरीन, मैंगनीज़, जस्ता, निकेल, कोबाल्ट, मॉलिब्डेनम, ताम्बा, बोरान व सेलिनियम अल्प मात्रा में प्राप्त पोषक तत्व हैं जो अंततः मृदा का निर्माण करते हैं। इस प्रकार किसी क्षेत्र की मृदा में इन पोषकों की उपलब्धता से उस क्षेत्र में खेती का स्वरुप, फसल चक्र और उत्पादकता निर्धारित होती है।
मृदा स्वास्थ्य और इसकी स्थिरता को बनाए रखना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इसे ध्यान में रखते हुए, हर साल 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य मृदा के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना और इसे बचाने के लिए वैश्विक प्रयासों को बढ़ाना है। इस वर्ष विश्व मृदा दिवस 2024 का विषय “मृदा की देखभाल: मापन, निगरानी, प्रबंधन” रखा गया है यह विषय मृदा स्वास्थ्य का आकलन करने और प्रभावी निर्णय लेने में सटीक मृदा आंकड़ों और सूचना की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देता है। मृदा के मापन, निगरानी और प्रबंधन को प्राथमिकता देकर, हम टिकाऊ पद्धतियों को लागू कर सकते हैं जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक है।
अब यदि विश्व मृदा दिवस के इतिहास को देखें तो इसकी शुरुआत वर्ष 2002 में अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ द्वारा पारित एक प्रस्ताव के बाद की गई थी, जिसमें 5 दिसंबर को मृदा दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव रखा गया था जोकि थाईलैंड के महामहिम राजा भूमिबोल अदुल्यादेज के जन्म का दिन था जिन्होंने मृदा संरक्षण पहल में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। खाद्य एवं कृषि संगठन ने इस पहल का समर्थन किया और दिसंबर 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 68 वीं सामान्य सभा की बैठक में औपचारिक रूप से इसे अपना लिया और अंततः 5 दिसंबर 2014 को पहला आधिकारिक विश्व मृदा दिवस मनाया गया।
मृदा स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों में दिन प्रतिदिन बढ़ता औद्योगीकरण एवं शहरीकरण, कृषि रसायनों का अनियंत्रित उपयोग, सिंचाई के संसाधनों का अवैज्ञानिक प्रयोग, सघन कृषि, उर्वरकों एवं कीटनाशिओं का असंतुलित मात्रा में प्रयोग तथा नैसर्गिक कार्बनिक खाद का न्यूनतम अथवा न के बराबर उपयोग करना आदि ऐसे कारक हैं जो मृदा के जैविक गुणों में कमी तथा उपजाऊ क्षमता में गिरावट ला रहे हैं। मृदा स्वास्थ्य में क्षरण से होने वाले दुष्प्रभावों की बात करें तो मनुष्य एवं पशुओं में कुपोषण की समस्या, पेयजल की गुणवत्ता में गिरावट, खाद्य श्रंखला में विषाक्त तत्वों का प्रवेश, फसल उत्पादन एवं उत्पादकता में कमी तथा मृदा जैव विविधता में कमी आदि ऐसी समस्याएं हैं जो मृदा स्वास्थ्य के ज़िम्मेदार हैं।
मृदा के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2015 में “मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना” की शुरुआत की थी ताकि एक किसान को इस बात की जानकारी हो कि वह जिस भूमि पर खेती करना चाहता है उसकी सेहत कैसी है। इस कार्ड में मृदा कि उर्वरा शक्ति के साथ किसानों के लिए विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के उपयोग की जानकारी भी होती है ताकि किसान उसी के अनुरूप खेती करके फसलों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ा सकें।
मृदा स्वास्थ्य का आदर्श स्तर बनाये रखने के लिए फसलों को फसल चक्र अपनाकर बोने से खरपतवार की वृद्धि कम होती है तथा मृदा अपरदन कम होने से पोषक तत्वों का ह्रास कम होता है और उर्वरता लगभग बनी रहती है। मृदा जीवों के संरक्षण हेतु जैविक क्रियाओं को बढ़ावा दिया जाए। कार्बनिक खादों व जैविक उर्वरकों को पोषक तत्वों की आपूर्ति फसल उत्पादन हेतु सम्मिलित किया जाना चाहिए। मृदा में सतत उर्वरता बनाये रखने के लिए प्राकृतिक खेती के उपायों को अपनाना चाहिए जैसी टिकाऊ मृदा प्रबंधन तकनीकें मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ा सकती हैं।
डॉ. मौहम्मद अवैस
कृषि विज्ञान संकाय
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय,
अलीगढ़drmohdawais@gmail.com