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हमारे अस्तित्व से जुड़ा है जल प्रबंधन

फोटो - गूगल

हमारे अस्तित्व से जुड़ा है जल का प्रबंधन

डॉ. उमर सैफ

आप सभी जानते हैं कि जल ही हर प्रकार के जीवन का आधार है और यदि जल नहीं तो जीवन भी नहीं, भले ही जल केवल नमी के रूप में विद्यमान हो। आज हमारे वैज्ञानिक अच्छे से जानते हैं कि पृथ्वी का जो स्वरूप आज हमें देखने को मिल रहा है, उसे जल ने ही संवारा है। जहां अथाह नमकीन जल है, वहां समुद्री जीव और वनस्पति पनप रहे हैं; जहां भरपूर वर्षा होती है, वहां वर्षा वन आधारित जीवन है; और जहां बेहद कम बारिश होती है, वहां कांटेदार पौधे और कम पानी पीने वाले जीव रह रहे हैं। उनका अपना पारिस्थितिकी तंत्र है, जो करोड़ों साल के संघर्ष और विकास का नतीजा है।
जल की महत्ता बताने का मकसद यह है कि हम यह समझ सकें कि जल का प्रबंधन दरअसल हमारे अस्तित्व और पृथ्वी पर जीवन के प्रबंधन से जुड़ा है। यह इतना नाजुक संतुलन है कि हमने अभी बस प्रकृति के बड़े-बड़े चक्रों को ही समझा है, जबकि हर एक चक्र के अंदर अनंत चक्र हैं, और सभी किसी न किसी रूप में जल से जुड़े हैं।

मौजूदा प्रशासनिक ढांचे के कारण समस्याएं

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की असफलता: देश की आत्मा से जुड़ी जीवनदायिनी गंगा तेजी से मर रही है, इसके इकोसिस्टम तबाह हो रहे हैं, और इसके पानी की अमृतमयी बनाने के गुण विलुप्त हो रहे हैं। इसके लिए मुगल और ब्रिटिश काल से चली आ रही प्रशासनिक व्यवस्था जिम्मेदार है। गंगा की सहायक नदियां हिमालय के अनेक स्थानों से निकलती हैं और हिमाचल और उत्तराखंड राज्य के बाद उत्तर प्रदेश में आ जाती हैं।
आगे चलकर यमुना नदी हरियाणा और दिल्ली का प्रदूषण भार लेकर गंगा में मिल जाती है, फिर बिहार से होते हुए पश्चिम बंगाल में गंगा सागर में समुद्र में चली जाती है। गंगा को नहीं पता कि वह जिन राज्यों से गुजरी है, वे भाषा के आधार पर बने हैं और इन राज्यों को चलाने वाले लोगों की प्राथमिकता में गंगा नहीं है। हर राज्य दूसरे राज्य पर आरोप लगाता है कि वह जिम्मेदार है, इसी तरह हर जिला दूसरे जिले को दोषी ठहरा रहा है। इस हालात में गंगा कभी भी जीवित नहीं होगी क्योंकि वह किसी एक भाषाई राज्य तक सीमित नहीं है।
जब गंगा ही अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही हो, तब गंगा बेसिन के अनंत जीव-जंतुओं और उनके इकोसिस्टम को समझने, संरक्षित करने और पुष्पित करने का किसके पास समय है। इसी कुप्रबंधन के चलते हिमालय कराह रहा है, लाखों तालाब रो रहे हैं और भूगर्भ जल बिना हिसाब-किताब के लूटा जा रहा है। इसे रोकने का एक ही तरीका है कि अब हम जलागम क्षेत्र आधारित एक और प्रशासनिक सुधार की तरफ बढ़ें।

भू एवं भूउपयोग सर्वे ऑफ इंडिया के काम को आगे बढ़ाना होगा।

मैंने शुरू में कहा था कि जल ही जीवन का आधार है, और यदि माननीय प्रधानमंत्री महोदय मिशन लाईफ को सफल बनाकर दुनिया के सामने उदाहरण पेश करना चाहते हैं, तो हमें भू एवं भूउपयोग सर्वे ऑफ इंडिया के काम को आगे बढ़ाना होगा। उन्होंने भारत को जलागम क्षेत्र के आधार पर चिन्हांकन कर सीमाओं का निर्धारण किया है।
भारत को 6 जलक्षेत्रों (इसे मैं जल राज्य कहूंगा) में विभाजित किया है और सीमाओं का निर्धारण कर डिजिटल मैप विकसित किए हैं। इन 6 जल क्षेत्रों को 37 बेसिन, 117 कैचमेंट एरिया, 588 सबकैचमेंट एरिया, 3854 वाटरशेड, 49618 सब-वाटरशेड और कुल 3 लाख 21 हजार 324 माइक्रोवाटरशेड में बांटकर हर एक का जमीनी चिन्हांकन करके उसका एक यूनिक नेशनल कोड जारी किया है।

सुझाव

इस महान डाटा का इस्तेमाल करके हम भारत ही नहीं, पूरे विश्व के सामने उदाहरण पेश कर सकते हैं, क्योंकि पर्यावरण/हवा/जल/मिट्टी/जैवविविधता की सबसे छोटी इकाई माइक्रो वाटरशेड ही है। हर एक वाटरशेड अपने आप में एक पूरा जैवमंडल रखता है और अनंत काल के विकास का नतीजा है। इसलिए राज्य पुनर्गठन आयोग और केंद्रीय जल आयोग दोनों मिलकर वाटरशेड के आधार पर एक प्रशासनिक व्यवस्था बनाएं, जिसका मुखिया पर्यावरण विज्ञान एवं प्रशासनिक कार्य दोनों जानता हो। बिना इस प्रशासनिक सुधार के हम कोई भी पर्यावरण संरक्षण एवं विकास से जुड़ा कार्य पूरा नहीं कर सकते।
हमें जरूरत है कि हम अब भू एवं भूउपयोग सर्वे ऑफ इंडिया के आधार पर  देश को 6 बड़े जल राज्यों, 36 नदी मंडलों, 117 उपनदी मंडलों, 588 सहायक नदी मंडलों, 3854 जलागम क्षेत्र विकास खंडों, 49618 जल न्याय पंचायतों और 3,21,324 जलग्रामों में विभाजित कर एन्वायरमेंट केंद्रित योजना निर्माण और अनुश्रवण तंत्र का कार्य शुरू करें। तभी हम अपने पर्यावरण को पुष्पित और पल्लवित कर पाएंगे।

सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ तालमेल

जलागम क्षेत्र आधारित प्रशासनिक सुधार सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ भी मेल खाते हैं। विशेष रूप से, ये सुधार निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक हो सकते हैं:
  1. SDG 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता – जलागम क्षेत्र आधारित प्रशासनिक सुधार से जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन और संरक्षण संभव होगा, जिससे स्वच्छ जल की उपलब्धता और गुणवत्ता में सुधार होगा।
  2. SDG 13: जलवायु कार्रवाई – जलागम क्षेत्रों के आधार पर योजनाओं का निर्माण और अनुश्रवण तंत्र से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूलन में मदद मिलेगी।
  3. SDG 15: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र का जीवन – जलागम क्षेत्रों के संरक्षण से स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता की रक्षा होगी।
  4. SDG 11: सतत शहर और समुदाय – जलागम क्षेत्र आधारित विकास से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सतत विकास को बढ़ावा मिलेगा।
इस प्रकार, जलागम क्षेत्र आधारित प्रशासनिक सुधार न केवल गंगा और अन्य नदियों के संरक्षण में सहायक होंगे, बल्कि सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

तस्वीरों से समझें

लेखक के बारे में

निदेशक, हिमालयन पर्यावरण प्रबंधन संस्थान, सहन्सरा वैली, शिवालिक हिल्स, कोठरी बहलोलपुर, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

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