मौसमः- पराशर, घाघ से लेकर आज तकफोटो - इंडियाक्लाइमेटचेंज

मौसम की जानकारी के लिए मौसम विज्ञान केंद्र

 शिवचरण चौहान

आज किसानों को खेती की जानकारी और सलाह देने के लिए दिल्ली से लेकर देश के हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र खुल गए हैं। जिलों में जिला कृषि अधिकारी बैठा दिए गए हैं। मौसम की जानकारी के लिए मौसम विज्ञान केंद्र देश की राजधानी दिल्ली से लेकर सभी प्रदेशों की राजधानियों में बने हैं। फिर भी कोई मौसम की सही-सही भविष्यवाणी नहीं कर पाता। जब कहते हैं इस वर्ष खूब अच्छी बरसात होगी उसी वर्ष सूखा पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण सारे पूर्वानुमान ध्वस्त हो गए हैं।
एक समय था जब गांव का किसान घाघ की कहावतों के ऊपर निर्भर करता था। घाघ की कहावतें मौसम, खेती, किसानी रीति-नीति के लिए एकदम खरी उतरती थीं। मौसम विज्ञान की जानकारी सदियों से हमारे पूर्वजों को थी। पराशर ऋषि और वराह मिहिर के ग्रंथों में मौसम के बारे में/  कृषि के बारे में सटीक जानकारियां मिलती हैं। कहते हैं घाघ ने पराशर ऋषि के होरा शास्त्र का अध्ययन किया था और उसी के आधार पर अपनी कहावतें कही थीं। पराशर ऋषि के समय से घाघ के समय तक मौसम में बहुत परिवर्तन हुए थे और घाघ ने उसके अनुसार अपनी कहावतों की रचना की थी।
महर्षि पराशर ने अपने ज्योतिष ग्रंथ होरा शास्त्र में उस समय की कृषि व्यवस्था का चित्रण किया है। वैदिक काल में भारत में इतना अन्न , दूध, घी होता था कि कोई भूखा नहीं सोता था। घर-घर में अतिथि सत्कार की परंपरा थी। उस समय चोर और भिखारी नहीं होते थे। वृक्षों में खूब फल आते थे, खूब धन धान्य उपजता था।

महर्षि पराशर का एक श्लोकः-

अवस्त्रत्वं निरन्नत्वं कृषि तो नैव जायते
अनातिथ्यंच दुःखित्वं दुर्मनो न कदाचन
खेती करने वाले व्यक्ति को अन्न और वस्त्र की कमी नहीं होती।अतिथि सेवा में असमर्थता तथा अन्य दुखों से उसके मन में कभी खेद नहीं पहुंचता।
खेती किसानी के लिए खेत जोतने के लिए हल कैसा होना चाहिए किन-किन चीजों के मेल से एक सम्पूर्ण हल बनता है। अपने वाचस्पति कोश में पराशर ने लिखा है-
ईषा युगो हलस्थानु निर्योलिस्तस्या पाक्षिका
अड्डचल्लश्च शैलश्च पद्यनी चहलाष्टकम्

अर्थात, बैल के कंधों में रखा जाने वाला जुवा, हरीस, कुढ़, फार, दावी, पाचर ,शइला और पंचनी माची इन आठ चीजों से सम्पूर्ण हल बनता है।
प्रांजला सप्त हस्ता हलीशा विदुषांगता।
स्या वेधस्य वर्णाया कार्यों नववितस्तिमि ।।

हल की हरीश सात हाथ की होनी चाहिए ऐसा विद्वानों की सम्मति है। उसका छेद नौ बित्ते पर करना चाहिए।
पराशर से प्रभावित होने के बावजूद घाघ ने पराशर के समय से उनके (घाघ के) समय में मौसम चक्र में जो परिवर्तन हुआ उसका उल्लेख यह कहकर किया है कि-
एक मास ऋतु आगे धावै।
आधा जेठ असाढ़ कहावै ।।

अर्थात् मौसम एक माह आगे चलता है आधे जेठ से ही आषाढ़ समझना चाहिए।

पराशर का एक मत है कि –

मृत्सुवर्ण समामाघे पौधे रजत सन्निभा,
चैत्रे ताम्र समाख्याता धान्य तुल्याच माधवे।।

अर्थात, माघ महीने खेत में  हल से जोतने से भूमि सोने के बराबर, पौष में खेत जोतने से चांदी के बराबर, चैत्र में ताबा और वैशाख में खेत  जोतने से अन्न के बराबर फलप्रद है। इससे स्पष्ट है कि पराशर के समय में माघ के महीने यानी जनवरी-फरवरी में  रबी की फसल काट ली जाती थी। अर्थात आजकल के चैत का मौसम पराशर के समय में माघ महीने में आ जाता था। हमारे ज्योतिषाचार्यों का मानना  है कि पृथ्वी की गति के कारण मौसम चक्र आगे सरकता जा रहा है, क्योंकि एक समय ऐसा भी था जब अगहन में वसन्त आ जाता था। तभी तो गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है-
मासानां मार्गशीर्षोहं ऋतुनांकुसुमाकर
अर्थात महीनों में  मैं अगहन हूं और ऋतुओं में वसन्त ।

पराशर ने एक अन्य श्लोक में कहा हैः-

बैशाखे वपनं श्रेष्ठं ज्येष्ठे तुमध्यमं स्मृतम
बैशाख में बीज बोना उत्तम है और जेठ में मध्यम है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पाराशर के समय का बैशाख आजकल का आषाढ़ है।
पराशर और घाघ के दृष्टिकोण की समीक्षा करने पर इतना स्पष्ट होता है कि घाघ ने पराशर का अनुसरण करने के साथ साथ अपने जीवन काल के व्यापक अनुभव की कसौटी पर कसकर अपनी’कहावतों में तथ्य रखे, यही कारण है कि शताब्दियों के बाद भी आज घाघ की कहावतें कभी कुछ प्रासंगिक प्रतीत होती हैं।
आज मनुष्य की भोग वादी संस्कृत के चलते जलवायु परिवर्तन का संकट सामने खड़ा है। दुनिया भर का मौसम बदल रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। उत्तरी दक्षिणी ध्रुव की बर्फ गल रही है। जल और पानी प्रदूषित हो रहा है। हिमालय दरक  रहा है। यूरोप में गर्मी और दक्षिण एशिया सूखे की चपेट में है। फिर भी घाघ की कहावतें और महर्षि पराशर , वराह मिहिर की भविष्यवाणियां सही साबित हो रही हैं। 

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