पंकज चतुर्वेदी
25 नवंबर से पुडुचेरी- तमिलनाडु में अरबी भाषा में कॉफी का कप अर्थात फेंगल की ऐसे मार पड़ी कि स्कूल – कालेज – बाजार – हवाई अड्डा बंद करना पड़ा । दिसंबर के पहले हफ्ते तक गोवा से ले कर कर्नाटक तक में धुआंधार बरसात हुई । शहर पानी में डूब गए । कोई 19 लोग मारे गए , ध्यान रहे यह भयावह चक्रवात महज एक प्राकृतिक आपदा नहीं है , असल में तेजी से बदल रहे दुनिया के प्राकृतिक मिजाज ने इस तरह के तूफानों की संख्या में इजाफ किया है और इंसान ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ को नियंत्रित नहीं किया तो साईक्लोन या बवंडर के चलते भारत के सागर किनारे वालें शहरों में आम लोगों का जीना दूभर हो जाएगा ।
इस साल हमारे देश में चक्रवात की शुरुआत गर्मी के दिनों में ही हो गई थी । 21 मई से 28 मई तक “रेमल” साल का सबसे भयावह बवंडर था जिसकी गति थी 110 कीकिलोमीटर प्रति घंटा । उसके बाद 24 अगस्त से 03 सितंबर तक बंगाल की खाड़ी में “आसना” ने कोहराम काटा था । 22 से 26 अक्टूबर तक “दाना” ने तबाही मचाई । वैसे इस साल 11 बार डिप्रेशन और 07 बार डीप डिप्रेशन के हालात भी बने । भारतीय मौसम विज्ञान विभाग हवा की गति के पैमाने पर चक्रवातों का वर्गीकरण किया जाता है। जब हवा की गति 31-50 किमी प्रति घंटा के आसपास होती है, तो इसे डिप्रेशन कहा जाता है । जब हवा की गति 51-62 किमी प्रति घंटा के बीच होती है, तो इसे डीप डिप्रेशन कहा जाता है । इस साल बवंडरों से 278 लोग मारे गए और लगभग 5334 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ । इस तरह के बवंडर अकेले संपत्ति और इंसान को तात्कालिक नुकसान ही नहीं पहुंचाते , बल्कि इनका दीर्घकालीक प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है । भीषण बरसात के कारण बन गए दलदली क्षेत्र, तेज आंधी से उजड़ गए प्राकृतिक वन और हरियाली, जानवरों का नैसर्गिक पर्यावास समूची प्रकृति के संतुलन को उजाड़ देता है । जिन वनों या पेड़ों को संपूर्ण स्वरूप पाने में दशकों लगे वे पलक झपकते नेस्तनाबूद हो जाते हैं । तेज हवा के कारण तटीय क्षेत्रों में मीठे पानी मे खारे पानी और खेती वाली जमीन पर मिट्टी व दलदल बनने से हुए क्षति को पूरा करना मुश्किल होता है ।
जलवायु परिवर्तन पर 2019 में जारी इंटर गवमेंट समूह (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट ओशन एंड क्रायोस्फीयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट के अनुसार, सारी दुनिया के महासागर 1970 से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से उत्पन्न 90 फीसदी अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर चुके है । इसके कारण महासागर गर्म हो रहे हैं और इसी से चक्रवात का जल्दी-जल्दी और खतरनाक चेहरा सामने आ रहा है । निवार तूफान के पहले बंगाल की खाड़ी में जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र जल सामान्य से अधिक गर्म हो गया था । उस समय समुद्र की सतह का तापमान औसत से लगभग 0.5-1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था, कुछ क्षेत्रों में यह सामान्य से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया था। जान लें समुद्र का 0.1 डिग्री तापमान बढ़ने का अर्थ है चक्रवात को अतिरिक्त ऊर्जा मिलना । हवा की विशाल मात्रा के तेजी से गोल-गोल घूमने पर उत्पन्न तूफान उष्णकटिबंधीय चक्रीय बवंडर कहलाता है । पृथ्वी भौगोलिक रूप से दो गोलार्धां में विभाजित है । ठंडे या बर्फ वाले उत्तरी गोलार्द्ध में उत्पन्न इस तरह के तूफानों को हरिकेन या टाइफून कहते हैं । इनमें हवा का घूर्णन घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में एक वृत्ताकार रूप में होता है। जब बहुत तेज हवाओं वाले उग्र आंधी तूफान अपने साथ मूसलाधार वर्षा लाते हैं तो उन्हें हरिकेन कहते हैं । जबकि भारत के हिस्से दक्षिणी अर्द्धगोलार्ध में इन्हें चक्रवात या साइक्लोन कहा जाता है । इस तरफ हवा का घुमाव घड़ी की सुइयों की दिशा में वृत्ताकार होता हैं । किसी भी उष्णकटिबंधीय अंधड़ को चक्रवाती तूफान की श्रेणी में तब गिना जाने लगता है जब उसकी गति कम से कम 74 मील प्रति घंटे हो जाती है । ये बवंडर कई परमाणु बमों के बराबर ऊर्जा पैदा करने की क्षमता वाले होते है ।
धरती के अपने अक्ष पर घूमने से सीधा जुड़ा है चक्रवती तूफानों का उठना । भूमध्य रेखा के नजदीकी जिन समुद्रों में पानी का तापमान 26 डिग्री सेल्सियस या अधिक होता है, वहां इस तरह के चक्रवातों के उभरने की संभावना होती है । तेज धूप में जब समुद्र के उपर की हवा गर्म होती है तो वह तेजी से ऊपर की ओर उठती है । बहुत तेज गति से हवा के उठने से नीचे कम दवाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। कम दवाब के क्षेत्र के कारण वहाँ एक शून्य या खालीपन पैदा हो जाता है । इस खालीपन को भरने के लिए आसपास की ठंडी हवा तेजी से झपटती है । चूंकि पृथ्वी भी अपनी धुरी पर एक लट्टू की तरह गोल घूम रही है सो हवा का रुख पहले तो अंदर की ओर ही मुड़ जाता है और फिर हवा तेजी से खुद घूर्णन करती हुई तेजी से ऊपर की ओर उठने लगती है। इस तरह हवा की गति तेज होने पर नीचे से उपर बहुत तेज गति में हवा भी घूमती हुई एक बड़ा घेरा बना लेती है। यह घेरा कई बार दो हजार किलोमीटर के दायरे तक विस्तार पा जाता है। सनद रहे भूमध्य रेखा पर पृथ्वी की घूर्णन गति लगभग 1038 मील प्रति घंटा है जबकि ध्रुवों पर यह शून्य रहती है ।
भारत उपमहाद्वीप में बार-बार और हर बार पहले से घातक तूफान आने का असल कारण इंसान द्वारा किये जा रहे प्रकृति के अंधाधुध शोषण से उपजी पर्यावरणीय त्रासदी ‘जलवायु परिवर्तन’ भी है । इस साल के प्रारंभ में ही अमेरिका की अंतरिक्ष शोध संस्था नेशनल एयरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ‘नासा ने चेता दिया था कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रकोप से चक्रवाती तूफान और खूंखार होते जाएंगे । जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय महासागरों का तापमान बढ़ने से सदी के अंत में बारिश के साथ भयंकर बारिश और तूफान आने की दर बढ़ सकती है । यह बात नासा के एक अध्ययन में सामने आई है। अमेरिका में नासा के ‘‘जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी’’ (जेपीएल) के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। इसमें औसत समुद्री सतह के तापमान और गंभीर तूफानों की शुरुआत के बीच संबंधों को निर्धारित करने के लिए उष्णकटिबंधीय महासागरों के ऊपर अंतरिक्ष एजेंसी के वायुमंडलीय इन्फ्रारेड साउंडर (एआईआरएस) उपकरणों द्वारा 15 सालों तक एकत्र आकंड़ों के आकलन से यह बात सामने आई । अध्ययन में पाया गया कि समुद्र की सतह का तापमान लगभग 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर गंभीर तूफान आते हैं । ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’(फरवरी 2019) में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के कारण हर एक डिग्री सेल्सियस पर 21 प्रतिशत अधिक तूफान आते हैं। ‘जेपीएल’ के हार्टमुट औमन के मुताबिक गर्म वातावरण में गंभीर तूफान बढ़ जाते हैं। भारी बारिश के साथ तूफान आमतौर पर साल के सबसे गर्म मौसम में ही आते हैं। लेकिन जिस तरह इस साल बरसात और जाड़े के दिनों में भारत में ऐसे तूफान के हमले बढे, यह हमारे लिए गंभीर चेतावनी है।