पंकज चतुर्वेदी
वहां कम बारिश होती है, इलाके की जमीन के भीतर के पानी में नमक ज्यादा है, यह बात वहां का समाज सदियों पहले जानता था और तभी बारिश की हर बूंद को सहेज कर सालभर खेती व अन्य कार्य के लिए जमा रखने की उनकी तकनीक विशुद्ध रूप से स्थानीय देश -काल-परिस्थिति के अनुसार रही है। यही नहीं उन जल निधियों का प्रबंधन भी जरूरत के मुताबिक समाज ही करता है। तमिलनाडु के कई हिस्सों में परंपरागत ‘एरी’ ने ना केवल सिंचाई बल्कि पारिस्थितिक तंत्र को स्वस्थ रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । आज भी सिंचाई की एक तिहाई जरूरत एरी से पूरी होती है । ‘हरित क्रांति’ के बाद आधुनिक कृषि सिंचाई के लिए ज्यादा पानी, खाद और कीटनाश कों पर निर्भर हो गई और ऐसे में पानी की जरूरत भी बढ़ गई। धान दक्षिण भारत की प्रमुख फसल है । 18 वीं सदी के बाद के और 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक आंकड़े बताते हैं कि उस काल में एरी के अंतर्गत धान की उत्पादकता 1960 की पैदावार की तुलना में बहुत ज्यादा थी ।
तालाब यानी सामान्य रूप से खोदे हुए या फिर प्राकृतिक रूप से निर्मित जलाशय होते हैं, जिसमें पानी तक जाने के लिए सभी ओर सीढ़ियां होती हैं या ढलाव होता है। जबकि एरी, बांध या तटबंध के पीछे बनाया गया पानी का एक जलाशय है । इसमें बांध के तीन ओर पानी होता है, चौथी दिशा खुले जलग्रहण की होती है जिससे जल एरी में नीचे की ओर बहकर एकत्र होता है और जैसे ही बांध के मध्य से दूसरी ओर या बांध के पार्श्व में जाते हैं गहराई कम होती जाती है ।
एरी का मुख्य कार्य कृषि भूमि की सिंचाई करना है । प्रत्येक एरी निश्चित भूमि की सिंचाई के लिए बनाई जाती है इसे एरी का ’अयाकट‘ कहा जाता है । यहां एकत्र पानी गुरुत्वाकर्षण के जरिये खेतों की ओर स्लूस/ नहर (तमिल में माडूगू) के माध्यम से सफर करता है। एक बार नहर खुल जाने पर जल छोटी- छोटी नहरों में बहता है और पूरे ’अयाकट‘ में वितरित हो जाता है । एरी के आकार पर नहरें आधारित होती हैं । ज्यादा पानी आने पर उसका सरलता से बहाव की व्यवस्था होना, एरी का महत्वपूर्ण गुण रहा है। एक एरी पर एक या अधिक कालागल्स या ओवर फ्लो बनाए जाते थे। कुछ एरी एक दूसरे से जुडे़ हुए भी हुआ करते थे कि एक का पानी पूरा होने पर अगला एरी भरेगा।
तमिलनाडु के चप्पे चप्पे पर फैले 39202 एरी राज्य के समाज, संस्कृति, अर्थ तंत्र की धुरी हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार ईस्वी 600-630 में पल्लव वंश के महेंद्रवर्मन प्रथम के कार्यकाल में महेंद्रवडी एरी बनवाया गया था। उत्तीरामेरू एरी की खुदाई का काल दंतीवर्मन पल्लव का शासन यानी 796-847 ईस्वी कहा गया है। उत्तरी तमिलनाडु का सबसे विशाल तालाब कावेरीपक्कम का निर्माण नंदीवर्मन पल्लव तृतीय के सन में (846-869) हुआ था।
सत्तर के दशक में तमिलनाडु राज्य में तालाबों से सिंचाई का रकबा घटना शुरू हो गया और यही समय था जब तालाबों की अधोगति की शुरूआत हुई। सन 1970 में राज्य के कोई नौ लाख हैक्टर खेत तालाबों से सींचे जाते थे तो सन 2005 आते-आते यह रकबा घट कर पौने छह लाख हैक्टर रह गया। बीच में सन 2003 में अल्प वर्षा के दौर में यह आंकड़ा और नीचे गिर कर 3,85,000 हेक्टर रह गया था। जहां राज्य का समाज तालाबों से सिंचाई कम कर रहा था तो उसकी भूजल पर निर्भरता बढ़ती जा ही थी। वह इस बात से बेखबर था कि भूजल का अस्तित्व इन्ही तालाबों पर निर्भर था। सन 70 में जहां राज्य के 39 प्रतिशत खेत तालाबों से सींचे जाते थे और भूजल पर निर्भर खेत महज 25 प्रतिशत थे। सन 2005 में तालाब से सींचे जाने वाले खेत 19 फीसदी और नलकूपों से सिंचाई 52 प्रतिशत हो गया था। यह भी कहा जाता है कि गांवों की सामाजिक व्यवस्था चौपट होने यानी नीरघंटी समाज की उपेक्षा से भी तालाब निराश्रित हुए।
तमिल में ‘‘मेरामथ’’ शब्द उर्दू के ‘‘मरम्मत’’ से ही आया । मेरामथ के तहत समाज खुद ही श्रम दान कर तालाबों का रखरखाव करता था, लेकिन जब अंग्रेजी शासन के दौरान तालाबों पर सरकार ने कब्जा कर लिया तो समाज ने मरामथ को बंधुआ या जबरिया मजदूरी की तरह मान लिया। वास्तविकता ये थी कि ग्रामीण समुदायों के सहयोग के बिना पीडब्लयूडी का एरी का रखरखाव कर पाना असंभव था । एरी व्यवस्था जब ठप हो गई, राजस्व घटने लगा तब एरी के रखरखाव की जरूरत महसूस हुई । एरी या कुडी मैरामथ को कानूनी रूप देने के लिए एक बिल जून, 1883 में मद्रास कानून परिषद ने बनाया, जिसमें समाज ही उनकी देखभाल करता व उपयोग करता था।
वर्तमान में किसी भी सरकारी महकमें के अधिकार वाले 40 हेक्टेयर से कम गैर एरी व्यवस्था के लिए पंचायत संघ के साथ जिम्मेवारियां साझा करती है । एरी के लिए पंचायत संघ बनता है। यहां से मिली मछली और पेड़ों से होने वाली आय संघ के खाते में जाती है। वहां का रखरखाव व जल नियंत्रण भी पंचायत के हाथें में होता है। हालांकि एरी से जल विनियमन आमतौर पर किसानों पर छोड़ दिया जाता है बिना किसी आधिकारिक हस्तक्षेप के । विभिन्न प्रकार के संगठनों द्वारा सिंचाई का सामुदायिक प्रबंधन होता है । 1. कुलाम या जाति पंचायत 2. गांव के आधार पर संगठन जैसे ऊर और पंचायत 3. परा स्थानीय स्तर प्रबंधन के रखरखाव के लिए दीर्घ स्तर संगठन प्रयास होता है कि इस कार्य में धर्मो और जातियों का व्यापक प्रतिनिधित्व है । सिंचाई कर्मचारी जल उपभोक्ता संगठन के कर्मचारी होते हैं और ये कर्मचारी समाज द्वारा संतुष्ट न होने पर हटाए भी जा सकते हैं । सिंचाई कर्मचारी ज्यादातर हरिजन समुदाय से लिया जाता है । सिंचाई और जल वितरण से संबंधित मामलों में समुदाय कंबूकट्टी का आदर करते हैं और सभी किसान उसकी बात मानते हैं । सिंचाई के लिए एरी की नहरों को खोलने व बंद करने की अगली जिम्मेदारी नीरघंटी या कंबूकट्टी की है ।
एरी प्रणाली अकेले सिंचाई या जल का सामूदायिक साधन मात्र नहीं, है, यह जमीन की नमी बनाए रखने, पेड़ों के संरक्षण, इस पर्यावास में जीवित रहने वाले जीव-जंतुओं की देखभाल और सबसे बड़ी बात , समाज को एकजुट रखने का सशक्त उदाहरण है। जरूरत है कि देश भर में अधोगति को प्राप्त हो रहे तालाबों के संरक्षण हेतु एरी जैसी सामुदायिक प्रणाली विकसित की जाए, जिसमें सभी निर्णय समाज के हाथो में हों व सरकारी कर्मचारी उसके अधीनस्थ ।