सखी नदियों में पानी कम होगा तो बड़ी नदी भी सूखेगी

पर्यावरण लेखक प्रवीण पांडेय ने अपनी किताब ‘यमुना की सहेलियों की पीड़ा’ में यमुना और उसकी सहायक नदियों की खस्ताहाली को साफगोई से बयां किया है। प्रवासी प्रेम पब्लिशिंग प्रकाशन से छपकर आई इस किताब के अध्याय ‘सहेलियों से बिगड़ती यमुना की सेहत’ से एक अंश-

नदी का हाल उसकी सखी-सहेलियों की स्थिति से पता चलता है। जब तक सखी प्रदूषित हैं, तब तक नदी के प्रदूषण मुक्त होने का स्वप्न देखना बेमानी है।

यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए इस बात पर ध्यान देने और प्रयास करने की बहुत जरूरत है कि इसकी सहायक नदियों की हालत भी ठीक हो। सखी-सहेलियों में पानी कम होगा तो बड़ी नदी भी सूखी रहेगी। यदि सखी प्रदूषित होगी तो बड़ी नदी भी प्रभावित होगी। छोटी नदियों में पानी कम होगा तो बड़ी नदी भी सूखी रहेगी। नदियां बड़ी बनती हैं, क्योंकि इनमें बहुत-सी छोटी नदियां आकर मिलती हैं। छोटी नदी में गंदगी या प्रदूषण होगा तो वह बड़ी नदी को प्रभावित करेगा। प्रत्येक नदी में पानी की गुणवत्ता उसकी सखी-सहेलियों, सहायक नदी पर निर्भर करती है।

प्रत्येक बड़ी नदी की कई सखी-सहेलियां, सहायक नदियां होती हैं। बरसाती नदी अचानक आई बारिश की असीम जलनिधि को अपने में समेट समाज को डूबने से बचाती है। छोटी नदियां बहुत कम दूरी में बहती हैं। कई बार एक ही नदी के अलग-अलग नाम होते हैं। बहुत नदियों का तो रिकॉर्ड भी नहीं है। नदियों और जल को लेकर हमारे लोक समाज की प्राचीन मान्यता बहुत अलग थी। बड़ी नदियों से दूर-घर-बस्ती हो, उसे अविरल बहने दिया जाए, बड़ा पर्व-त्योहार हो तो उसके किनारे एकत्र हों, स्नान करें और पूजा करें। वहीं बस्ती सहायक नदी या तालाब या झील के आस-पास हो,

ताकि स्नान, कपड़े धोने, मवेशी आदि की दैनिक जरूरतें पूरी हो सकें। वहीं घर-आंगन-मोहल्ले में कुआं था, उससे जितना जल चाहिए, श्रम करिए और खींच कर निकाल लीजिए। अब यदि बड़ी नदी बहती रहेगी तो सहायक नदी या तालाब में जल बना रहेगा। यदि तालाब और सहायक नदी में पर्याप्त जल है तो घर के कुएं में जल की कमी नहीं होगी।

विडंबना है कि छोटी नदियां विलुप्त होती जा रही हैं। पहले नदी में कारखानों और शहरों की गंदगी गिराई जाती है, फिर धीरे-धीरे नदी को नाला बना दिया जाता है। उसके बाद उस नाले के हालात इतने खराब हो जाते हैं कि लोग उसे नदी के रूप में भूल ही जाते हैं। फिर उसकी जमीनों पर कब्जे, अवैध रेत निकासी और वह सब कुछ होता है, जिससे उसका अस्तित्व लुप्त हो जाए। यह जो नाला बनाने की प्रक्रिया है, यही बड़ी नदियों की सबसे बड़ी दुश्मन है।

छोटी नदियां बाढ़ से बचाव के साथ-साथ धरती के तापमान को नियंत्रित रखने, मिट्टी की नमी बनाए रखने और हरियाली के संरक्षण के लिए अनिवार्य हैं। नदी तट से अतिक्रमण हटाने, उसमें से बालू- रेत उत्खनन को नियंत्रित करने, नदी की समय-समय पर सफाई से इन नदियों को बचाया जा सकता है। समाज यदि इन नदियों को अपना मानकर सहेजने लगे तो इससे समाज का ही भविष्य उज्ज्वल होगा ।

नदी का पुनरुद्धार कैसे किया जाए, इसके लिए जरूरी है कि मुक्त प्रवाह के रास्ते में आए किसी नए तरह के अवरोध, मसलन- बांध, बैराज और तटबंधों को न बनाया जाए। नदी के कायाकल्प का सबसे सटीक और तेज रास्ता नदी प्रणाली का सुचारु होना है। इसका मतलब ऐसी परिस्थितियों से है, जहां एक नदी, उसकी सहायक नदियों का प्रवाह और सैलाब, स्वतंत्र एवं स्वाभाविक तरीके से हो। लेकिन तब प्रवाह को बाधित करने वाले मौजूदा कारण, जैसे- बांध, बैराज और तटबंधों को हटाना होगा, जो किसी नदी को एक निश्चित दायरे के भीतर कैद कर लेते हैं। यह हमारी नदियों के लिए एक आदर्श स्थिति है, लेकिन तीव्र विकास के पथ्थर इस स्थिति को निरर्थक मानते हैं। नदियां एक प्राकृतिक प्रणाली की तरह हैं।

ये पृथ्वी के लिए मानव की नसों और धमनियों की तरह काम करती हैं। जिस तरह एक नष्ट धमनी की वजह से स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या हो सकती है, उसी तरह नष्ट हो चुकी नदी प्रणाली के चलते किसी राष्ट्र का इस पृथ्वी पर गंभीर संकट आ सकता है। इस तरह यह एक मरीचिका से ज्यादा कुछ नहीं है। जब मुख्य नदी धाराओं की तरह ही उनकी सहायक नदियों पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाएगा, जब यमुना का पुनरुद्धार, केवल सरकार की तरफ से नदी सफाई अभियान न बने रहकर वास्तव में एक जन आंदोलन बन जाएगा, तभी नदियों को वास्तव में बचाया जा सकेगा। गंगा और यमुना का मिलन प्रयागराज की त्रिवेणी में होता है और इस प्रकार यमुना को गंगा की सबसे संपन्न सहायक नदी भी कहा जा सकता है। यमुना भारत की सबसे लंबी नदी है, जो सीधे समुद्र में नहीं बहती है।

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