भारत में छह “बड़ी बिल्लियां” पाई जाती थीं। सच में–शेर हो या बाघ या तेंदुआ – ये सभी बिल्ली परिवार के ही कहलाते हैं। सारी दुनिया में हमारा भारत ही ऐसा देश है जहां दोनों बड़े बिल्ले-शेर और बाघ पाए जाते हैं।
हमारे देश में एक समय ऐसा था जब समुद्र किनारे या ऊँचे पहाड़ और उत्तर पूर्वी राज्यों को छोड़ दें तो सभी जगह चीतों की आवाज सुनाई देती थी। इसकी निगाह तेज है लेकिन सुनने और सूंघने की शक्ति कम होती है। यह दुनिया में सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर है।
चीता रहता तो जंगल में है लेकिन इसकी इन्सान से दोस्ती जल्दी हो जाती है। सीधा-साधा होता है। यह अपना नाम याद रखता है। अपने मालिक का नाम याद कर लेता है। यह घने जंगल की जगह बस्ती के पास अधिक रहता है। ऐसी घटनाए बहुत कम हैं जब चीते ने इन्सान को मारा हो। लेकिन इन्सान ने चीते को मार कर उसे ख़त्म ही कर दिया।
आज़ादी के बाद शिकार पर रोक लगी, राजशाही खत्म हुई तो चीतों को पालना बंद कर दिया गया। उनकी रही बची संख्या का जम कर अवैध शिकार हुआ और यह भारत में लुप्त हो गए।
इसी लिए हमारी सरकार देश में चीते को फिर बसाने के लिए कोशिश कर रही है। 17 सितंबर, 2022 को नामीबिया से आठ चीतों को भारत लाया गया। इनका नया घर बना मध्य प्रदेश में शिवपुरी का कुनो के जंगल। इसके बाद 18 फरवरी, 2023 को दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों को भी कूनो में छोड़ा गया।
27 मार्च 23 को ज्वाला ने चार शावकों को जन्म दिया।
दुखद है कि पिछले पांच महीनों में कुनो में नो चीतों की मौत हो चुकी है। जिनमें से तीन शावक हैं। वैसे दुनिया में सभी जगह दूसरी जगह से ला कर बसाये गए चीतों में बहुत कम जिन्दा बचे।
है न ! चीता भी बिल्ली मौसी के परिवार का ही है। भरोसा न हो तो कभी उसकी आवाज़ सुनना- म्याऊं !!
कम होती संख्या
चीता शावकों के मौत की बात करें तो पूरे विश्व में चीता शावकों के जंगल में जिंदा रहने की संभावना केवल 10 से 20 प्रतिशत होती है। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, 54 प्रतिशत चीतों की मौत का कारण आपसी लड़ाई या शिकार होता है जबकि 7.5 प्रतिशत चीते रिलोकेशन के कारण मर जाते हैं। बाड़े में बंद करने से 6.5 प्रतिशत चीतों की मौत होती है वहीं एक प्रतिशत से कम चीते ट्रैकिंग डिवाइस यानि कॉलर रेडियो के कारण मर जाते हैं। कूनो में मारे गए अधिकांश चीतों में ये समानताएं मिली हैं।
पालतू चीते कभी जयपुर के राजा चीतों को कुत्तों की तरह पालते थे . इसका लायसेंस होता था . मेहमान को ये करतबबाज अपने चीतों से भागते जानवरों का शिकार करवाते. आज भी जयपुर के रामगंज बाजार के नजदीक “मौहल्ला चीतावालान” है.
पंकज चतुर्वेदी