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गंगा सागर द्वीप के गुम होने का खतरा

पंकज चतुर्वेदी

 

इस वर्ष गंगासागर मेला आठ जनवरी से 17 जनवरी के बीच आयोजित हो रहा है। अनुमान है कि इस साल मेले में कम से कम 40 लाख लोग जुटेंगे लेकिन इनमें से बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस जमीन पर वे इस साल पवित्र स्नान के लिए आये हैं, अगले साल यह शायद ही यहाँ मिले ? यह किसी से छिपा नहीं है कि जलवायु परिवर्तन की सबसे तगड़ी मार हिन्द महासागर के बंगाल की खाड़ी क्षेत्र पर पड़ रही है और इसी के चलते यहाँ उस द्वीप के गुम होने की सम्भावना बढ़ गई है जिसे गंगा सागर कहते हैं ।

कोल्कता से कोई 100 किलोमीटर दूर स्थित पानी की बूँद की आकृति का गंगा सागर, सुंदरवन द्वीपसमूह का सबसे बड़ा द्वीप है।  इस द्वीप की आबादी सवा दो लाख है  लेकिन एक तरफ यहाँ की  आबादी बढ़ रही है, दूसरी तरफ इसका क्षेत्रफल घट रहा है । हर साल मकर संक्रांति पर यहाँ लगने वाले मेले को कुम्भ के बाद सबसे बड़ा समागम कहा जाता है । इस सबका असर इस समूचे इलाके पर बहुत भयानक है । यह बात सरकारी रिकार्ड में दर्ज है कि गंगा सागर द्वीप का क्षेत्रफल सन 1969 में 255 वर्ग किलोमीटर था । दस साल बाद यह 246.79 वर्ग किमी हो गया । सन 2009 में यह और घट कर  242.98 रह गया । इसके अगले दस साल बाद यह और तेजी से कम हुआ और 230. 98 वर्ग किमी हो गया । सन 2022 में इसकी माप 224.30 वर्ग किमी मापी गई । इस तरह बीती 52 वर्षों में यहाँ 31 वर्ग किलीमीटर धरती समुद्र में समा चुकी है ।

विदित हो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाले  चेन्नई स्थित नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट के आंकड़े बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में समुद्र सीमा 534.45किमी है और इसमें से 60.5 फ़ीसदी अर्थात 323.07 किमी हिस्से में समुद्र ने गहरे कटाव दर्ज किये हैं । इन्हीं कटाव के चलते समूचे सुंदरबन पर स्थित कोई 102 द्वीप खतरे में हैं ।

घोरमारा द्वीप पर जब कटाव बढ़ा तो आबादी गंगा सागर की तरफ  पलायन करने लगी गोसाबा द्वीप पर रहने वाले  रोयल बंगाल टाइगर को शिकार की कमी हुई और वह जब गाँवों में घुस कर नरभक्षी बन रहे हैं तो इस भी से भाग रहे लोगों का आसरा भी सागर द्वीप ही है ।  उधर गंगा सागर द्वीप  धार्मिक अनुष्ठान के कारण सरकार और समाज सभी की निगाह में है । सो लोगों को लगता है कि यहाँ बसने से जिंदगी तो बचेगी। हालाँकि  इस द्वीप पर भी कटाव का प्रकोप अब बढ़ता जा रहा है । बानगी के तौर पर  कपिल मुनि का मन्दिर ही लें. यहाँ तीन मंदिर पहले ही पानी में समा चुके हैं । सन 1437 में स्वामी रामनाद द्वारा स्थापित  कपिल मुनि मंदिर दशकों पहले समुद्र में भा गया
था ।

फिर सत्तर के दशक में समुद्र से 20 किलोमीटर दूर दूसरा मंदिर बनाया गया, वह भी जमीन के कटाव के साथ  जल-समाधि ले चूका है । वहां की प्रतिमा को एक नए मंदिर में स्थापित किया गया । समुद्र तट से इस मंदिर का फासला अब महज 300-350 मीटर रह गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां हर साल समुद्र का पानी 100-200 फुट के क्षेत्रों को अपनी आगोश में लेता जा रहा है।

जैसे जैसे धरती का तापमान  बढ़ रहा है और ग्लेशियर पिघलने से  समुद्र का जल स्तर ऊँचा हो रहा है,
गंगा सागर की जमीन खिसकती जा रही है ।  यहाँ औसतन हर साल 2.6 मिलीमीटर  जल स्तर वृध्दि दर्ज की गई है, जबकि सुंदरबन में यह आठ मिमी तक है । जल स्तर के बढ़ने के साथ साथ  यहाँ समुद्र में ज्वर का तीखापन भी बढ़ रहा है. कई बार छ मीटर ऊँची लहरे आती हैं और इसी से  भूमि कटाव बढ़ता है ।

समुद्र के किनारे बस्तियों पर जलवायु परिवर्तन किस तरह प्राणघातक हो गया है, इसके लिए गंगा सागर ज्वलंत उदहारण है । समुद्र और हवा के तापमान में वृद्धि, ज्वारीय लहरों की बढ़ती घटना और तीव्रता, हिंसक तूफानी चक्रवात, गंभीर बाढ़ और अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ इस द्वीप में  बाढ़, जल भराव और तटीय कटाव का स्थाई घर बन गई हैं. जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से गरीबों, विकलांगों, वृद्धों और हाशिए पर रहने वाली आबादी को प्रभावित करता है, जिससे गरीबी और बीमारियाँ बढती हैं । पर्यावरण  पर केन्द्रित अंतर्राष्ट्रीय शोध  जर्नल “ स्प्रिंगर  नेचर “ में सन 2018 में प्रकाशित एक आलेख में बताया गया था कि 19.5% मौजा (द्वीप की प्रशासनिक इकाइयाँ), द्वीप के दक्षिणी भाग में 15.33% आबादी के साथ, यानी, सिबपुर-धबलाट, बंकिमनगर-सुमतिनगर, और बेगुआखाली-महिस्मारी  उच्च जोखिम  वाले इलाके हैं  और यहाँ जबरदस्त भूमि कटाव और मौसम  में बदलाव आ रहा है ।

एक अनुमान के अनुसार, 2050 तक, तीन महत्वपूर्ण डेल्टाओं, अर्थात् मेकांग डेल्टा, नील डेल्टा, गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा में रहने वाले लगभग दस लाख लोगों पर समुद्र के बढ़ते जल स्तर का प्रतिकूल प्रभाव होगा ।

यह किसी से छिपा नहीं है कि बेडफोर्ड, लोहाचारा, खासीमारा और सुपरिवांगा नाम के आसपास के चार द्वीप पिछले कुछ दशकों में तटीय कटाव के कारण नष्ट हो गए थे। सागर द्वीप का बिशालक्खीपुर मौजा जलमग्न हो गया है और अत्यधिक कटाव के कारण सागर मौजा रहने लायक नहीं रह गया है। बढ़ते समुद्र और
तेज़ होते कटाव के कारण घोरमारा द्वीप जल्द ही जलमग्न हो जाएगा ।

गंगा सागर पर एक बड़ी मार है बढ़ते चक्रवाती तूफानों की . जलवायु परिवर्तन पर 2019 में जारी इंटर गवमेंट समूह (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट ओशन एंड क्रायोस्फीयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट के अनुसार,  सारी दुनिया के महासागर 1970 से ग्रीनहाउस गैस  उत्सर्जन से उत्पन्न 90 फीसदी अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर चुके है। इसके कारण महासागर  गर्म हो रहे हैं और इसी से चक्रवात को जल्दी-जल्दी और खतरनाक चेहरा सामने आ रहा है। 

निवार तूफान के पहले बंगाल की खाड़ी में जलवायु परिवर्तन के चलतेे समुद्र जल  सामान्य से अधिक गर्म हो गया था। उस समय समुद्र की सतह का तापमान औसत से लगभग 0.5-1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था, कुछ क्षेत्रों में यह सामान्य से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया था। जान लें समुद्र का 0.1 डिग्री तापमान बढ़ने का अर्थ है चक्रवात को अतिरिक्त ऊर्जा मिलना। बंगाल की खाड़ी में आमतौर पर दुनिया भर में 7% महत्वपूर्ण चक्रवात आते हैं, जबकि पिछले 120 वर्षों में, चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता 20% से 26% के बीच बढ़ गई है । सन 1891-202 2  के दौरान, बंगाल की खाड़ी और आसपास के क्षेत्रों में 250 से अधिक  गंभीर चक्रवाती तूफान और 300 चक्रवाती तूफान देखे गए । आने वाले दिनों में इनकी संख्या और तीव्रता बढ़नी ही है ।

आई आई टी, मद्रास के एक समूह ने सरकार को सुझाब दिया था अकी  गंगा सागर के आसपास सीमेंट का तटबंध बना दिया जाए, इससे आने वाले तीन चार दशक तक भूमि कटाव से  बचा जा सकता है  लेकिन केंद्र सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया , विदित हो तटबंध से कटाव रोकने के बिहार और असम में प्रयोग अलग तरह से तबाही लाये हैं । आज आवश्यकता इस बात की है कि गंगा सागर को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए यहाँ तटीय क्षेत्रों को अतिक्रमण से मुक्त कर मेग्रोव को विस्तार दिया जाए ।

समुद्र में  मिलने जा रही गंगा की धारा के कब्जे और रेत से संकरे हो गए रास्ते को चौड़ा किया जाए । यहाँ की आबादी पर नियन्त्रण हो और धार्मिक अनुष्ठान में  पोलीथिन, साबुन, रासायनिक पदार्थों पर पूरी तरह रोक और कचरे के प्रबंधन को सशक्त किया जाए , इन तरीकों से  गंगा सगर में जलवायु परिवर्तन  के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सकता है । यह भी  जरुरी है कि  आस्था और श्रद्धा से आये लोगों को परयावरण के इस आसन्न संकट के प्रति जागरूक किया जाये. कम से कम इसके सही सूचना जरुर दी जाये । जन सरोकार से ही ऐसे संकटों से निजत मिल सकता है ।