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दुनिया-देश की ऐसे समाचार जी आपको चेतावनी देते हैं

ग्लोबल ट्री असेसमेंट रिपोर्ट

चिंताजनक ग्लोबल ट्री असेसमेंट रिपोर्ट ने चेताया, हालात ऐसे ही रहे, तो संकट में आ सकता है मानव जीवन धरती पर पेड़ों की हर तीन में से एक प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर नई दिल्ली। धरती पर मौजूद पेड़ों की हर तीन में से एक प्रजाति वलुप्त होने के कगार पर है। इससे पृथ्वी पर जीवन संकट में पड़ सकता है। ‘ग्लोबल ट्री असेसमेंट’ म अपनी हालिया रिपोर्ट में यह घेतावनी दी है। ‘इंटरनेशनल युनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ आईयूसीएन) की ‘रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज’ के तहत जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के कॉप- 16 शिखर सम्मेलन (कोलंबिया के काली शहर) के दौरान जारी रिपोर्ट में यह बात कही गई। रिपोर्ट के मुताबिक, पेड़ों की 6,000 से अधिक प्रजातियों के वलुप्त होने का खतरा है। अध्ययन के लिए 47,000 से अधिक प्रजातियों खत्म होते जंगलों से जलवायु परिवर्तन और सूखे का संकट रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगल तेजी से 47,000 से अधिक पेड़ों की प्रजातियों पर किया गया अध्ययन का आकलन किया गया। इस अध्ययन में 1,000 से ज्यादा विशेषज्ञ शामिल थे। अनुमान है कि दुनियाभर में पेड़ों की 58,000 प्रजातियां हैं। रिपोर्ट में पेड़ लगाने के माध्यम से 16,000 से अधिक प्रजातियों पर मंडरा रहा विलुप्ति का खतरा जंगल संरक्षण और पुनर्स्थापना का आह्वान किया गया है, साथ ही प्रजातियों को बचाने के लिए बीज बैंकों और वनस्पति उद्यानों में उनके संरक्षण पर जोर दिया गया है। एजेंसी घट रहे हैं, पेड़ों को लकड़ी के लिए काटा जा रहा है। इसके चलते खेती और मानव विस्तार के लिए जमीन खाली की जा रही है। वहीं, जलवायु परिवर्तन भी सूखा और जंगल की आग जैसी समस्याओं के कारण एक अतिरिक्त खतरे को बढ़ा रहा है। विशेषज्ञ एमिली बीच ने कहा कि लोग खाने, लकड़ी, ईंधन और दवाओं के लिए पेड़ों की अलग-अलग प्रजातियों पर निर्भर करते हैं। पेड़ ऑक्सीजन बनाते हैं। साथ ही वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ताप रोकने वाली गैसों को सोखते हैं। आईयूसीएन की महानिदेशक ग्रेथल एगुइलर ने कहा, पेड़ पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए जरूरी हैं और लाखों लोग अपने जीवन और आजीविका के लिए उन पर निर्भर हैं। अरबों की संख्या में खत्म हो रहे पेड़… 2015 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में लगभग 300 अरब पेड़ हैं। विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि हर साल 15 अरब से अधिक पेड़ काटे जाते हैं और मानव सभ्यता की शुरुआत से पेड़ों की वैश्विक संख्या लगभग आधी हो चुकी है। द्वीपों पर सबसे अधिक खतरा… पेड़ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा द्वीपों पर सबसे अधिक है, जहां तेजी से शहरी विकास, कृषि का विस्तार और अन्य स्थानों से लाई गई प्रजातियां, कीट और बीमारियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। दक्षिण अमेरिका में, जहां दुनिया में सबसे अधिक पेड़ों की विविधता है, 13,668 आकलित प्रजातियों में से 3,356 विलुप्त होने की कगार पर है।

अकतूबर की गर्मी

त में अक्टूबर 2024 पिछले 124 वर्षों (1914 से) का सबसे गर्म अक्टूबर रहा, जिसमें औसत तापमान 26.92 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। यह सामान्य से 1.23 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अक्टूबर के न्यूनतम तापमान भी रिकॉर्ड स्तर पर थे, जो 1901 के बाद सबसे ऊंचे थे।

दिल्ली में इस साल अक्टूबर का महीना पिछले 73 सालों में सबसे गर्म रहा। सफदरजंग में अक्टूबर के दौरान औसत अधिकतम तापमान 35.1 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 21.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। यह अक्टूबर में दर्ज चौथा सबसे अधिक दिन का तापमान और छठा सबसे अधिक रात का तापमान है, जो 1901 के बाद रिकॉर्ड हुआ है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के रिकॉर्ड के अनुसार, अक्टूबर का सबसे ज्यादा औसत दिन का तापमान 1951 में 36.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। वहीं, सबसे ज्यादा औसत रात का तापमान 22.3 डिग्री सेल्सियस 1915 और 1951 में रिकॉर्ड किया गया था।

मध्य गंगनहर में शिकारियों ने डाली जहरीली दवा,

 बिजनौर बैराज से गढ़मुक्तेश्वर तक वन आरक्षित क्षेत्र से होकर गुजरने वाली मध्य गंग नहर का रविवार को जैसे ही जलस्तर कम हुआ तो शिकारी ने इसमें जहरीली दवाई डाल दी। इसमें मौजूद मछलियां काफी संख्या में मर गईं।
वन्य अभ्यारण्य क्षेत्र में जंगली जीवों के शिकार पर अंकुश लगाने के लिए वन विभाग की टीम पूरी तरह सतर्क है, फिर भी शिकारी नए-नए तरीके खोज रहे हैं। वन अभ्यारण्य क्षेत्र के बड़े भूभाग से मध्य गंग नहर होकर गुजरती है। इसमें जंगली जीव अपनी प्यास बुझाते हैं। वहीं इसी पानी में मछलियों का भी रहवास है।
रविवार की सुबह बिजनौर बैराज से मध्य गंग नहर का जलस्तर कम हो गया। जलस्तर कम होते ही शिकारी ने रामराज के समीप मध्य गंग नहर में जहरीली दवाई डाल दी। जहां तक जहरीली दवाई का असर हुआ वहां तक मध्य गंग नहर की मछलियां मर गईं। कुछ मछली दवाई के सेवन के कारण ऊपर आ गई, जिनका शिकार करने के लिए सैकड़ों लोग मध्य गंग नहर के आसपास घूमते नजर आए। मामले की सूचना वन विभाग की टीम को मिली तो नहर में दवाई डालने वाले असामाजिक तत्वों का पता लगाया गया, परंतु कोई सुराग नहीं मिला।

दवाई डालते ही नशे में होती हैं मछलियां
मछली पकड़ रहे एक व्यक्ति ने बताया कि मध्य गंग नहर का पानी कम होते ही कुछ लोग मछलियों के शिकार के लिए जहरीली दवाई डालते हैं, जहां तक दवाई का असर होता है वहां तक पानी में मौजूद मछलियां बेहोश हो जाती हैं और ऊपर आ जाती हैं। इससे उन्हें शिकार करने में आसानी होती है, जबकि दवाई के सेवन से शिकारी को ज्यादा हानि नहीं होती।