(धीरज चतुर्वेदी छतरपुर बुंदेलखंड)(धीरज चतुर्वेदी छतरपुर बुंदेलखंड)

(धीरज चतुर्वेदी छतरपुर बुंदेलखंड)

जब सारे देश में आजादी के 75 साल होने पर 68 हजार अमृत सरोवर बनाने का अभियान चल रहा था, तब बुंदेलखंड की जीवन-रेखा कहलाने वाले तालाब उपेक्षा, अतिक्रमण के बहाल है । छतरपुर के किशोर सागर का मामला तो इतना विचित्र है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एन जी टी) इस तालाब से अवैध कब्जे हटाने का निर्देश सीधे जिला न्यायालय को दे चुका है और छतरपुर के नये अधिकार अपने ही वरिष्ठ अदालत की आदेश का पालन नहीं कर रहे । तीन साल में तीन जज बदल गए 47 पेशी हो गई लेकिन किशोर सागर से अतिक्रमण हटना तो दूर , वह बढ़ और गया ।

छतरपुर में ही जिस तालाब की लहरें कभी आज के छत्रसाल चौराहे से महल के पीछे तक और बसोरयाना से आकाशवाणी तक उछाल मारती थीं, वहां अब गंदगी, कंक्रीट के जंगल और बदबू रह गई है। भले ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में 2013 में दर्ज मामले में कई आदेश हुए लेकिन न जिला प्रशासन और न ही जिला न्यायालय को क्रियान्वयन में कोई रुचि है । सनद रहे पूरे साल पानी के लिए कराहते छतरपुर शहर को अपने सबसे बड़े व जिंदा तालाब की दुर्गति करने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है लेकिन अब शायद जल की कीमत जमीन से बहुत काम हो गई है ।

जानना जरूरी है कि किशोर सागर के बंदोबस्त रिकार्ड के मुताबिक सन 1939-40 से ले कर सन 1951-52 तक खसरा नंबर 3087 पर इसका रकबा 8.20 एकड़ था। सन 1952-53 में इसके कोई चौथाई हिस्से को कुछ लोगों ने अपने नाम करवा लिया। आज पता चल रहा है कि उसकी कोई स्वीकृति थी ही नहीं, वह तो बस रिकार्ड में गड़बड़ कर तालाब को किसी की संपत्ति बना दिया गया था। उन दिनों यह इलाका शहर से बाहर निर्जन था और किसी ने कभी सोचा भी नहीं था कि आने वाले दिनों में यहां की जमीन सोने के भाव होगी। अब तो वहां का कई साल का बंदोबस्त बाबत पटवारी का रिकार्ड उपलब्ध ही नहीं है।

एक लंबी लड़ाई के बाद एन जी टी की भोपाल बेंच ने सितंबर 2021 में जिला न्यायाधीश, छतरपुर को आदेशित किया कि इस तालाब से सम्पूर्ण अवैध निर्माण हटा कर इसे इसके मूल स्वरूप में लाने की कार्यवाही करें । इधर जिला अदालत जिला प्रशासन के साथ कागजी घोड़ों की दौड़ करवाती रही और कभी सर्वे तो कभी झूठी जानकारी दे कर अतिक्रमण को सहेजा जाता रहा । छतरपुर के एक पत्रकार धीरज चतुर्वेदी ने 29.10.2021 को जिला न्यायालय , छतरपुर में एन जी टी की आदेश के संपादन हेतु अर्जी दी । उसके बाद तारीख पर तारीख का खेल चल रहा है । अदालत इस जिम्मेदारी को प्रशासन पर डाल देती है और कागजी खाना पूर्ति करती है जबकि प्रशासन पहले की तरह अतिक्रमणकारियों को बचाने की जुगत लगाता है । हालांकि जिला प्रशासन इतना निरंकुश है कि वह जिला जज स्तर के लोगों की परवाह ही नहीं करता । पूर्व एडीजे डॉ वैभव ने तत्कालीन कलेटर संदीप जी आर को इस अतिक्रमण बाबत तीन पत्र लिखे और कलेक्टर ने तीनों पत्रों का कोई जवाब ही नहीं दिया । अदालत ने कुछ सख्त रुख अपनाया तो छतरपुर की तहसीलदार रंजना यादव ने अदालत को गुमराह कर झूठ प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया। जिला अस्पताल के पिछले हिस्से में जिला अस्पताल के आधिपत्य की भूमि से महावीर धर्मशाला का अतिक्रमण हटाया गया ताकि नये शिशु केयर सेंटर का निर्माण हो सके। कब्जा हटाने की इस कार्यवाही को किशोर सागर तालाब के अतिक्रमण से जोड़ दिया गया। तहसीलदार का यह प्रतिवेदन शुद्ध रूप से अदालत के साथ चीटिंग थी।

आज एक तो इस तालाब का क्षेत्रफल काम हो गया , फिर इसके किनारे ढेर सारी व्यावसायिक गतिविधियों के कारण कई नाबदान उसमें मिल रहे हैं जो तालाब को बदबूदार बना चुके हैं । इस तरह एक तालाब को इंतज़ार है खुद की कायाकल्प का। आज नहीं तो कल सवेरा होगा जो तालाब के अतिक्रमण कोढ़ को मिटाकर नया जीवन देगा।