एपीईसी क्लाइमेट सेंटर (एपीसीसी) का दावा है कि सितंबर 2024 से फरवरी 2025 के दौरान ला नीना मौसम आने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि इन हालातो को एशिया खासकर भारत में अधिक बरसात लाने वाला माना जाता है। यदि यह अनुमान सही हुआ तो आने वाले दिनों में भारत में भारी बरसात हो सकती है ।
ला नीना और मॉनसून का सम्बन्ध वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। वैसे तो हर दो से सात साल में अल नीनो और ला नीना की परिस्थितियां बनती है और इसका सर बरसात के रूप में दीखता है । भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक सन 1953 से 2023 के बीच कुल 22 ला नीना साल दर्ज किए गए हैं, जिसमें से सिर्फ दो बार यानी साल 1974 और 2000 के मॉनसून सीजन में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है, जबकि बाकी सालों के मॉनसून में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है।
इससे पहले जून-जुलाई में इस साल भयंकर गर्मी ने अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, खराब मौसम के लिए अल-नीनो को जिम्मेदार माना जा रहा है। बीते कई हफ़्तों से पूरा कश्मीर भीषण गर्मी का शिकार है । लेह हो या हिमाचल के उपरी हिस्से सभी जगह जम कर गर्मी हुई और इसका मूल कारक अल-नीनो को माना जा रहा है ।
यह तय है कि जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव के चलते मौसम अनियमित या चरम होते रहते हैं लेकिन असल में हमारे देश में मौसम की गति सात समुंदर पार निर्धारित होती है। मौसम में बदलाव की पहेली अभी भी अबुझ है और हमारे यहां कैसा मौसम होगा उसका निर्णय ‘अल नीनो’ अथवा ‘ला नीना’ प्रभाव पर निर्भर होता है।
प्रकृति रहस्यों से भरी है और इसके कई ऐसे पहलु हैं जो समूची सृष्टि को प्रभावित तो करते हैं लेकिन उनके पीछे के कारको की खोज अभी अधूरी ही है और वे अभी भी किवदंतियों और तथ्यों के बीच त्रिशंकु हैं। ऐसी ही एक घटना सन 1600 में पश्चिमी पेरू के समुद्र तट पर मछुआरों ने दर्ज की , जब क्रिसमस के आसपास सागर का जल स्तर असामान्य रूप से बढ़ता दिखा । इसी मौसमी बदलाव को स्पेनिश शब्द ‘अल नीनो’ परिभाशित किया गया, जिसका अर्थ होता है- छोटा बच्चा या ‘बाल-यीशु’।
अल नीनो असल में मध्य और पूर्व-मध्य भूमध्यरेखीय समुद्री सतह के तापमान में नियमित अंतराल के बाद होने वाली वृद्धि है जबकि ‘ला नीना’ इसके विपरीत अर्थात तापमान कम होने की मौसमी घटना को कहा जाता है। अल नीना भी स्पेनिश भाशा का शब्द है जिसका अर्थ होता है छोटी बच्ची।
दक्षिणी अमेरिका से भारत तक के मौसम में बदलाव के सबसे बड़े कारण अल नीनो और अल नीना प्रभाव ही होते हैं। अल नीनो का संबंध भारत व आस्ट्रेलिया में गरमी और सूखे से है, वहीं अल नीना के कारण अच्छे मानसून का वाहक है और इसे भारत के लिए वरदान कहा जा सकता है। भले ही भारत में इसका असर हो लेकिन अल नीनो और अल नीना घटनाएं पेरू के तट (पूर्वी प्रशांत) और आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट(पश्चिमी प्रशांत) पर घटित होती हैं।
हवा की गति इन प्रभावों को दूर तक ले जाती हे। यहां जानना जरूरी है कि भूमध्य रेखा पर समुद्र की यीधी किरणें पड़ती हैं। इस इलाके में पूरे 12 घंटे निर्बाध सूर्य के दर्शन होते हैं और इस तरह से सूर्य की ऊष्मा अधिक समय तक धरती की सतह पर रहती है। तभी भूमध्य क्षेत्र या मध्य प्रशांत इलाके में अधिक गर्मी पड़ती है व इससे समुद्र की सतह का तापमान प्रभावित रहता है। आम तौर पर सामान्य परिस्थिति में भूमध्यीय हवाएं पूर्व से पश्चिम (पछुआ) की ओर बहती हैं और गर्म हो चुके समुद्री जल को आस्ट्रेलिया के पूर्वी समुद्री तट की ओर बहा ले जाती हैं।
गर्म पानी से भाप बनती है और उससे बादल बनते हैं व परिणामस्वरूप पूर्वी तट के आसपास अच्छी बरसात होती है। नमी से लछी गर्म हवांए जब उपर उठती हैं तो उनकी नमी निकल जाती है और वे ठंडी हो जाती हैं। तब क्षोभ मडल की पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली ठंडी हवाएं पेरू के समुद्री तट व उसके आसपास नीचे की ओर आती हैं । तभी आस्ट्रेलिया के समु्ंदर से उपर उठती गर्म हवाएं इससे टकराती हैं। इससे निर्मित चक्रवात को ‘वॉकर चक्रवात’ कहते हैं। असल में इसकी खोज सर गिल्बर्ट वॉकर ने की थी।
अल नीनो परिस्थिति में पछुआ हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं व समुद्र का गर्म पानी लौट कर पेरू के तटो पर एकत्र हो जाता है। इस तरह समुद्र का जल स्तर 90 सेंटीमीटर तक ऊंचा हो जाता है व इसके परिणामस्वरूप वाश्पीकरण होता है व इससे बरसात वाले बादल निर्मित होते हैं। इससे पेरू में तो भारी बरसात होती है लेकिन मानसूनी हवाओं पर इसके विपरीत प्रभाव के चलते आस्ट्रेलिया से भारत तक सूखा हो जाता है।
ला नीनो प्रभाव के दौरान भूमध्य क्षेत्र में सामान्यतया पूर्व से पश्चिम की तरफ चलने वाली अंधड़ हवाएं पेरू के समुद्री तट के गर्म पानी को आस्ट्रेलिया की तरफ ढकेलती है। इससे पेरू के समुद्री तट पर पानी का स्तर बहुत नीचे आ जाता है, जिससे समुद्र की गहराई का ठंडा पानी थोड़े से गर्म पानी को प्रतिस्थापित कर देता है। यह वह काल होता है जब पेरू के मछुआरे खूब कमाते हैं।
भारतीय मौसम विभाग के यह वह काल होता है जब पेरू के मछुआरे खूब कमाते हैं। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक कोविड काल भारत के मौसम के लिहाज से बहुत अच्छा रहा और यह ‘ला नीना’ का दौर था। लेकिन अभी तक यह रहस्य नहीं सुलझाया जा सका है कि आने वाले दिन हमारे लिए ‘बाल-यीशु’ वाले हैं या ‘छोटी बच्ची’ वाले।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश के बेहतर जीडीपी वाला भविष्य असल में पेरू के समुद्र तट पर तय होता है। जाहिर है कि हमें इस दिशा में शोध को बढ़ावा देना ही होगा। आज जरूरत है कि भारत का मौसम विज्ञानं विभाग अल नीनो पर और गंभीरता से काम करे क्योंकि यह केवल मौसम ही नहीं स्वास्थ्य को भी प्रभावित करेगा। स्पेन के बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन पीएलओएस नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है जिसके मुताबिक अल नीनो की वजह से भारत में फिर हैजा फैल सकता है।
इस घटना की वजह से असामान्य तापमान और वर्षा जैसी जलवायु में बदलाव हुआ, जो सीधे तौर पर हैजा बीमारी के प्रसार के लिए सबसे अनुकूल वातावरण है।हमारे मौसम विभाग के अधिकांश पूर्वानुमान गलत साबित होने का कारण भी यही है कि हम अभी अल नीनो असर पर गंभीरता से काम नहीं कर रहे हैं ।