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मौ. वाजिद अली

हिमाचल प्रदेश में प्लास्टिक कचरे की समस्या नासूर बन गई है। हाल ही में शिमला हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को एक एस टी एफ (स्पेशल टास्क फोर्स) का गठन करने को कहा है। शिमला हाई कोर्ट ने प्राथमिकता के आधार पर हिमाचल प्रदेश सरकार से  खीरगंगा, हामटा, बिजली महादेव, साच पास, ब्यास कुंड, श्रीखंड महादेव, मणिमहेश यात्रा, चूड़धार, त्रियुंड और चांसल को प्लास्टिक कचरा मुक्त करने का अभियान छेडऩे को कहा है। लेकिन, क्या यह प्लास्टिक कचरा मुक्त अभियान कारगर साबित होगा?
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साल 1995 कानून बनाया गया था। हिमाचल प्रदेश रंगीन पॉलिथीन रिसाइकिल्ड बैग पर प्रतिबंध लगाने वाला देश का पहला राज्य बना था। 2009 में प्लास्टि और पॉलिथीन कैरी बैग पर बैन लगाने वाला भी पहला राज्य हिमाचल ही था। प्लास्टिक कटलरी पर प्रतिबंध 2011 में हिमाचल प्रदेश ने ही लगाया। 2013 में एक समिति ने हाई कोर्ट से सिफारिश की और सिंगल यूज रैपर, प्लास्टिक कप, गिलास, प्लेट और चिप्स पैकेट के साथ-साथ अन्य पैकेजिंग सामग्री पर रोर लगा दी गई। राज्य सरकार ने 2018 में थर्मोकोल कटलरी पर भी रोक लगा दी थी। इतना सब करने के बाद भी प्लास्टकि कचरा प्रदेश को प्रदूषित कर रहा है।
ई टी वी हिमाचल प्रदेश की एक रिपोर्ट बताती है कि – पिछले साल हिमाचल प्रदेश से 45000 किलो प्लास्टिक कचरा एकत्रित किया गया था। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी प्रदेश में पूर्ण रूप से प्लास्टिक को बैन करने का निर्देश दिया था। पर्यावरणविद् सुरेश सी अत्री ने कहा था कि प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमाचल प्रदेश के हालात ऐसे हो चुके हैं की प्रदेश दो-तीन घंटे की बारिश भी बरदाश्त नहीं कर सकता। प्लास्टिक कचरा नालियों में फंसने के कारण प्रदेश की राजधानी शिमला को बाढ़ का सामना करना पड़ा।
प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाने के लिए क्षेत्रीय स्कूल के छात्र और गैर-सरकारी संगठन भी मदद के लिए आगे आए। प्रदेश में बढ़ती प्लास्टिक कचरे की समस्या को देखते हुए शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंदर सिंह पंवर ने भी प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए कहा। प्रदेश की राजधानी शिमला में प्लास्टिक के साथ अन्य सामग्री का ठोस कचरा हर माह 2800 टन पैदा होता है। मनाली में 1100 टन और पर्यटन सीजन के समय यह बढ़कर 9000 टन तक पहुँच जाता है।
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