आखिर क्यों नहीं रहा हाथी मेरा साथी ?आखिर क्यों नहीं रहा हाथी मेरा साथी ?

पंकज चतुर्वेदी

दीपवाली के ठीक एक दिन पहले मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में एक साथ दस हाथियों के मारे जाने से दुनिया सन्न  है । इनमें नौ मादा थीं और दो गर्भवती । और इस तरह दो हाथियों की मौत भ्रूण में भी हो गई । इसके ठीक तीन दिन पहले पास के छत्तीसगढ़ में रायगढ़ जिले में तीन हाथी मारे गए – कहा गया कि उन पर 11 के वी ए की बिजली का तार  गिर गया। अभी इस मामले की पड़ताल चल ही रही थी कि अचानकमार  टाइगर रिजर्व के करीब बसे गाँव टिंगीपुर गांव में ठीक दिवाली के दिन एक युवा होता तीन साल का नर हाथी शावक मृत मिला है। तभी खबर आई कि 4 नवंबर को असम के पश्चिम कामरूप वनमंडल के अंतर्गत कुलक्षी रेंज में धागरगांव  में एक जंगली हाथी अवैध बिजली की बाढ़ की चपेट में आ कर मारा गया । अभी इं सभी पर हंगामा तहमा नहीं था कि 10 नवंबर को छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के  मानिकपुर सर्किल के मुरका गांव अंतर्गत पी 3492 जंगल में जंगली हाथियों का दल घूम रहा है. हाथियों की निगरानी लगातार वन विभाग की टीम कर रही है. रविवार रात हाथियों के दल से 1 हाथी के बिछड़ने की जानकारी मिली और सोमवार सुबह जंगल के किनारे स्थित धान के खेत में हाथी का शव मिला. हाथी का शव मिलने के बाद वन विभाग ने जांच शुरू की तो इस बात का खुलासा हुआ कि खेत के चारों तरफ बिजली का तार लगाया गया था. खेत मालिक ने जानबूझकर हाथी को मारने के लिए हाई वोल्टेज बिजली तार में क्लच वायर से जोड़कर करंट लगाया गया था. जिसकी चपेट में आने से नर हाथी की मौत हो गई. इस खुलासे के बाद वन विभाग ने आकोपी खेत मालिक मुरका निवासी रामबक्स को गिरफ्तार कर लिया है। इसी राज्य में 12 नवंबर को बेहद मार्मिक घटना सामेन आई जब रायपुर में सीतानदी-उदंती टाइगर रिजर्व में हाथी का एक बच्चा पोटाश बम से घायल हो गयाउसके मुंह और पैर से खून बह रहा था और वह जलन से बचने को इधर उधर पानी में  शरीर डाल रहा था । यह बम आमतौर पर जंगली सूअरों के शिकार के लिए उपयोग किया जाता है।

दुर्भाग्य है कि बांधवगढ़ में इतनी बड़ी संख्या में हाथी की मौत के बाद भी प्रशसन सतर्क हुआ नहीं और गुस्साये हाथियों ने वहीं गाँव के तीन लोग कुचल कर मार दिए । इस 13 के समूह से शेष बचे तीन हाथियों में से बिछड़ा एक हाथी बांधवगढ टाइगर रिजर्व की सीमा से होते हुए कटनी की सीमा में आ गया। हाथी की मौजूदगी से आसपास के क्षेत्र के किसानों और ग्रामीणों में दहशत का माहौल है।

बीते कुछ सालों में हाथी के पैरों तले  कुचल कर मरने वाले इंसानों की संख्या तो बढ़ी ही पिछले  तीन सालों के दौरान लगभग  300 हाथी मारे गए हैं। सन 2018 -19 में 457 लोगों की मौत हाथी के गुस्से से हुई तो  सन 19-20 में यह आंकडा 586 हो गया ।  वर्ष 2020-21 में मरने वालों की संख्या 464, 21-22 में 545 और बीते साल 22-23 में 605 लोग मारे गए ।  केरल के वायनाड जिले, जहां 36 फ़ीसदी जंगल है , पिछले साल हाथी- इंसान  के टकराव की 4193 घटनाएं हुई और इनमें 27 लोग मारे गए ।   देश में उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, असम , केरल, कर्णाटक सही 16 राज्यों में बिगडैल हाथियों के कारण इन्सान से टकराव बढ़ रहा है।  इस झगड़े में हाथी भी मारे जाते हैं ।  

यह बात तो स्पष्ट हो गई है कि बांधवगढ़ में इतनी बड़ी संख्या में हाथियों  की  मौत  कुछ विषाक्त खाने से हुई है । शक इस बात से खड़ा होता है कि राज्य सरकार के कुछ अफसर इसे तुरत-फुरत जहरीली कुटकी खाने से मौत निरूपित कर रहे थे लेकिन जब मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस बात से असहमति जताई कि जंगल का जानवर किसी वन-उत्पाद  खाने से मरेगा तो हड़बड़ाहट हुई । वन महकमे के अफसर सस्पेंड हुए । इस बीच भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), बरेली की ओर से मप्र वन विभाग को सौंपी गई रिपोर्ट में हाथियों के विसरा में माइक्रो टॉक्सिन साइक्लोपियाजोनिक एसिड मिलने की पुष्टि हुई है। हालांकि, हाथियों की मौत इसी से हुई नहीं- इसका रिपोर्ट में स्पष्ट जिक्र नहीं है। एपीसीसीएफ और मप्र वन विभाग की ओर से गठित एसआईटी के प्रमुख एल।  कृष्ण मूर्ति के मुताबिक, आईवीआरआई ने विसरा सैंपल की विषाक्तता रिपोर्ट से पता चलता है कि हाथियों ने बड़ी मात्रा में खराब कोदो पौधे/अनाज खाए थे। हालांकि, विसरा सैंपल में मिला साइक्लोपियाजोनिक एसिड कितना जहरीला था और कितनी मात्रा में था, क्या यही मौत का कारण हो सकता है- इसकी आगे जांच अभी जारी है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मध्य प्रदेश में जंगल और वनोपज आय के बड़े माध्यम हैं लेकिन  बाघ के लिए जाम कर खर्च करने वाली सरकार हाथी के लिए लापरवाह रही है । प्रदेश में वन विभाग की राज्य की विभिन्न योजनाओं के लिए 2665 करोड़ से ज्यादा बजट है। इमरती लकड़ियों के उत्पादन के लिए तक 159 करोड़ का बजट है, लेकिन हाथियों के प्रबंधन के लिए सिर्फ एक  करोड़ सालाना का बजट वन विभाग के पास है। प्रोजेक्ट टाइगर पर प्रदेश का बजट 200 से 300 करोड़ के बीच रहता है, लेकिन हाथियों के प्रबंधन पर प्रोजेक्ट एलिफेंट के लिए वन विभाग ने इस साल सिर्फ 66 लाख रुपए रखे । प्रोजेक्ट एलिफेंट की शुरुआत साल 1992 में भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी जो अभी देश के 16 राज्यों में चल रहा है। हाथियों की संख्या में बढोतरी और इनके शिकार को रोकने के लिए शुरू की गई योजना में प्राकृतिक आवासों को सुधारना, हाथी-मानव संघर्ष को नियंत्रित करना सहित कई काम किए जाते हैं लेकिन  वन विभाग के पास  बजट होता नहीं हैं । 

वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को सहेज कर रखने में गजराज की  महत्वपूर्ण भूमिका हैं।  पयार्वरण-मित्र पर्यटन और और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान में भी हाथी बेजोड़ हैं। अधिकांश संरक्षित क्षेत्रों में, आबादी हाथियों के आवास के पास रहते हैं और वन संसाधनों पर निर्भर हैं। तभी जंगल में मानव अतिक्रमण और खेतों में हाथियों की आवाजाही ने संघर्ष की स्थिति बनाई और तभी यह विशाल जानवर  खतरे है। जंगली हाथियों के बस्तियों में घुसने को किसी राज्य की सीमा  से बांधा जा नहीं सकता ।

यदि आंकड़ों पर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि करीबी राज्य ओडिसा के हालात  हाथियों को ले कर इतने खराब है कि दंतैल और गुस्सैल हो गए जंगली हाथी  छत्तीसगढ़ और झारखंड में अपनी खीज मिटा रहे हैं । इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलुरु के एक अध्ययन में बताया गया था कि ओडिसा में उपलब्ध जंग और संसाधन में अधिकतम 1700 हाथी बहाली प्रकार जी सकते हैं जबकि आज यहाँ गजराज की संख्या 2100 से अधिक है । इस तरह 400 से अधिक हाथियों के लिए भोजन, पानी और आने पर्यावासीय संकट सामने दिख रहा है । यह सरकारी रिकार्ड में है कि 2017-18 और 4 नवंबर, 2024-25, ओडिशा में 634 मारे गए , जिनमें 22 का शिकार हुआ, एक को जहर दिया गया 91 जानबूझकर बिजली के झटके से, 32 आकस्मिक बिजली करंट से मारे गए , जबकि 28 हाथी रेल से टकरा कर  काल के गाल में गए । इसी साल 58 हाथियों  की संदिग्ध मौत हुई, जिसकी जांच के लिए सरकार ने आदेश दिए हैं ।

जानना जरूरी है कि हाथियों केा 100 लीटर पानी और 200 किलो पत्ते, पेड़ की छाल आदि।  की खुराक जुटाने के लिए हर रोज 18 घंटेां तक भटकना पड़ता है ।  हाथी दिखने में भले ही भारीभरकम हैं, लेकिन उसका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है ।  थेाड़ी थकान या भूख उसे तोड़ कर रख देती है ।  ऐसे में थके जानवर के प्राकृतिक घर यानि जंगल को जब नुकसान पहुँचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिडंत  होती है ।  साल 2018 में पेरियार टाइगर कन्जर्वेशन फाउंडेशन  ने केरल में हाथियों के हिंसक होने पर एक अध्ययन किया था ।  रिपोर्ट में  पता चला कि जंगल में पारंपरिक पेड़ों को काट  कर उनकी जगह नीलगिरी और बबूल  बोने से हाथियों का भोजन समाप्त हुआ और यही उनके गुस्से का कारण बना ।  पेड़ों की ये किस्म जमीन का पानी भी सोखती हैं सो हाथी के लिए पानी की कमी भी हुई । 

वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को सहेज कर रखने में गजराज की  महत्वपूर्ण भूमिका हैं।   पयार्वरण-मित्र पर्यटन और और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान में भी हाथी बेजोड़ हैं।  अधिकांश संरक्षित क्षेत्रों में, आबादी हाथियों के आवास के पास रहते हैं और वन संसाधनों पर निर्भर हैं।  तभी जंगल में मानव अतिक्रमण और खेतों में हाथियों की आवाजाही ने संघर्ष की स्थिति बनाई और तभी यह विशाल जानवर  खतरे है।  हाथी कि उपस्थति स्वस्थ जंगल की निशानी है, अच्छा जंगल धरती पर इंसान के लिए अनिवार्य है । अब सरकार और सामज दोनों को हाथी की समस्याओं के प्रति संवेदनशेल बनना होगा ।