पंकज चतुर्वेदी
दिल्ली में पूर्वाञ्चल प्रवासी छठ पर्व की तैयारी के लिए जब यमुना के तट पर गए तो वहाँ नदी को रसायनों से उपजे सफेद झाग से ढंका पाया । अभी-अभी तो बरसात के बादल बिदा हुए हैं और खबर आ रही है कि हथिनीकुंड बैराज पर 16 अक्टूबर 2024, बुधवार को शाम पांच बजे मात्र 3107 क्यूसेक पानी दर्ज किया गया। फिलहाल उप्र की यमुना नहर को पानी भेजा नहीं जा रहा है , वरना पानी की मारा-मारी अभी से शुरू हो जाती । आश्चर्य है कि इस बार दिल्ली और उसके आसपास यमुना नदी के जल-ग्रहण क्षेत्र कहलाने वाले इलाकों में पर्याप्त पानी बरसा , लेकिन अक्तूबर महीने में यहाँ ना नदी में पानी दिख रहा है और न ही पानी से जहर की मुक्ति हुई । इस बार भारी बरसात में जब नदी में पानी लबालब होना था , तब कोई पाँच बार इसमें अमोनिया की मात्रा अधिक हो गई । आज भी नदी में उठ रहे झाग का कारक यही अमोनिया का आधिक्य है । आखिर यह तो होना ही था, क्योंकि इस मौसम में दिल्ली में यमुना में एक भी बार बाढ़ आई नहीं और इसके चलते न तो कचरा-कर्कट बहा, न ही उसके रसायन तरल हुए और न ही तेज जल प्रवाह ने नदी को सम्पूर्ण रूप में सँजोया । बगैर बाढ़ के यमुना की शुद्ध नहीं और आखिर वे कौन हैं जो चाहते हैं कि नदी उफने नहीं, अर्थात इसका अंत हो जाए .
कई हजार करोड़ के खर्च, ढेर सारे वायदों और योजनों के बाद भी लगता नहीं है न कि दिल्ली में यमुना को 2026 तक निर्मल बना देने का लक्ष पूरा होगा । समझना होगा कि यमुना पर लाख एस टी पी लगा कर नालों के पानी को शुद्ध कर लें लेकिन जब तक यमुना में नदी का पानी अविरल नहीं आएगा , तब तक इसके हालात सुधरने से रहे ।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई में यमुना में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य पाई गई है जबकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। यमुना की सफाई के लिए केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को 8500 करोड़ रुपये दिए, लेकिन नतीजा शून्य ही है । असल में दिल्ली में यमुना को साफ सुथरा बनाने की जो भी नीति हैं उनका मूल यह है कि दिल्ली में यमुना, गंगा और भूजल से 1900 क्यूसेक पानी प्रतिदिन प्रयोग में लाया जाता है। इसका 60 फीसद यानी करीब 1100 क्यूसेक सीवरेज का पानी एकत्र होता है। यदि यह पानी शोधित कर यमुना में डाला जाए तो यमुना निर्मल रहेगी और दिल्ली में पेयजल की किल्लत भी दूर होगी। लेकिन यह हर समय नजरंदाज किया जाता है कि नदी में बाकी जल कहाँ से आएगा ?
ईमानदारी की बात तो यह है कि यमुनोत्री से निकलने वाली जल-धारा, पहाड़ से उतरने के पहले ही लुप्त हो जाती है । दिल्ली तक जो भी जल आता है वह अधिकांश हरियाणा कि छोटी नदियों और कारखानों के गंदे उत्सर्जन का हिस्सा होता है । पूरी बरसात बीत गई लेकिन दिल्ली में एक भी बार बाढ़ नहीं आई । हो सकता है कि बाढ़ से नदी किनारे अवैध तरीके से हुए निर्माण को यह त्रासदी लगती लेकिन महानगर में नदी की गुणवत्ता सुधारने का नैसर्गिक तरीका तो यही है ।
कोई भी बाढ़ नदी में जीवन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पहाड़ों से बह कर आया पानी अपने साथ कई उपयोगी लवण लेकर आता है। वहीं नदी की रह में जहां जल-मार्ग में कूड़े –मलवे के कारण धारा अवरुद्ध होती है , बढ़ उसे स्वतः साफ कर देता है । इस तरह नदी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है जो कि मछलियों और जीवों की प्रजातियों को अनुकूल परिवेश प्रदान करती है। दिल्ली में यमुना की शुद्धि के मशीनी उपायों से कहीं अधिक जरूरी है कि यहाँ तसल्ली से बाढ़ आती ।
आखिर में दिल्ली में बाढ़ क्यों नहीं आई ? यदि इस कारण को खोज लें तो यह भी समझ आ जाता कि कार्तिक में दिल्ली में यमुना नाबदान क्यों बनी है । यमुना की आत्मा सभी नदियों के मानिंद उसके फ्लड प्लेन अर्थात कछार में है । जब नदी यौवन पर हो तो जमीन पर जहां तक उसका विस्तार होता है वह उसका कछार या फ्लड प्लेन है । अब दिल्ली में तो नदी को फैलने की जगह ही नहीं छोड़ी , हजारों निजी और सरकारी निर्माण, नदी को बीचों बीच सूखा कर खड़े किए गए खंभे , यमुना को दिली से बहने ही नहीं देते। और फिर जिन लोगों ने नदी के नैसर्गिक मार्ग पर कब्जा कर लिया है या करना चाहते हैं , वे कभी नहीं चाहते कि दिल्ली में यमुना का जल स्तर बढ़े । यह जान लें कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि नदी के फ्लड प्लेन को पूरी तरह से खाली रखा जाए। नदियों में आने वाली बाढ़ एक नए जीवन का निर्माण करती है और एक तरह से जरूरी भी है। बाढ़ से नदी का जलीय जीवन भी बेहतर होता है।
अब दिल्ली तक यमुना का अवरोध चाहने वाले दिल्ली से हरियाणा और फिर उससे ऊपर पहाड़ तक भी हैं, जिन लोगों ने अवैध बालू खनन के लिए कई – कई जगह नदी के रास्ते रोके हुए हैं या फिर अनैतिक तरीके से धारा का मार्ग ही बदल दिया । ऐसे लोगों की मंशा की पूर्ति के लिए पहाड़ पर ही नदी को बांधने के सरकारी प्रयास काम नहीं हैं ।
देहरादून के कालसी विकासखण्ड में यमुना नदी पर 204 मीटर ऊंचा बांध की लखवार व्यासी परियोजना 1972 में शुरू हुई । फिर इस पर काम बंद हो गया । सन 2013 में यहाँ काम फिर शुरू हुआ और अब यमुना पहाड़ से नीचे उतरने से पहले यही घेर ली जाती है । जाहीर है कि जब पहाड़ से ही यमुना का भाव नहीं है तो हथिनी कुंड से वजीराबाद तक यह एक बरसाती नदी ही है । समझना होगा कि लगभग 52 साल पहले जिस परियोजना की परिकल्पना की गई, वह आज हिमालय के भारी पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन के दौर कैसे प्रासंगिक हो सकती है ?
पहाड़ पर बन रहे इतने बड़े बांध और कई सुरंगों के जरिए पानी के मार्ग को बदलने से महज जल-प्रवाह ही काम नहीं हो रहा है, इतने निर्माण का मलवा बह आकर नीचे आ रहा है जो नदी को उथला बना रहा है । दिसंबर 21 के आखिरी हफ्ते में जब व्यासी जलविद्युत परियोजना की एक टर्बाइन को प्रयोग के तौर पर खोला गया तो यमुना नदी की धारा लगभग लुप्त हो गई थी । इससे स्पष्ट हो गया था कि यह परियोजना के कारण दिल्ली तक यमुना का रास्ता अब बंद हो गया है । जब व्यापक निर्माण के कारण पहाड़ों पर जम कर जंगल काटे गए और इस तरह हुए पारिस्थिकी हानि के कुप्रभाव से नदी भी नहीं बच सकती । महज सिंचाई और बिजली के सपने में यमुना हरियाणा में आने से पहले ही हार जाती है ।
इधर दिल्ली जिस नदी को निर्मल करने के लिए बजट बढ़ाती है, वास्तव में वह नदी का अस्तित्व है ही नहीं । दिल्ली में यमुना पानी की नहीं जमीन का जरिया है . वजीराबाद और ओखला के बीच यमुना पर कुल 22 पुल बन चुके हैं और चार निर्माणधीन हैं और इन सभी ने यमुना के नैसर्गिक प्रवाह , गहराई और चौड़ाई को नुकसान किया है । रही बची कसर अवैध आवासीय निर्माणों ने कर दी । इस तरह देखते ही देखते यमुना का कछार , अर्थात जहां तक नदी अपने पूरे यौवन में लहरा सके , को ही हड़प गए । कछार में अतिक्रमण ने नदी के फैलाव को ही रोक दिया और इससे जल-ग्रहण क्षमता कम हो गई । तभी इसमें पानी आते ही , कुछ ही दिनों में बह जाता है और फिर से कालिंदी उदास सी दिखती है ।
यह बात सरकारी बस्तों में दर्ज है कि यमुना के दिल्ली प्रवेश वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला बैराज तक के 22 किलोमीटर में 9700 हेक्टेयर की कछार भूमि पर अब पक्के निर्माण हो चुके हैं और इसमें से 3638 हैक्टेयर को दिल्ली विकास प्राधिकरण खुद नियमित अर्थात वैध बना चुका है । कहना न होगा यहाँ पूरी तरह सरकारी अतिक्रमण हुआ- जैसे 100 हेक्टेयर में अक्षरधाम मंदिर, खेल गांव का 63.5 हेक्टेयर, यमुना बैंक मेट्रो डिपो 40 हैक्टेयर और शास्त्री पार्क मेट्रो डिपो 70 हेक्टेयर। इसके अलावा आईटी पार्क, दिल्ली सचिवालय, मजनू का टीला और अबु फजल एनक्लेव जैसे बड़े वैध- अवैध अतिक्रमण अभी भी हर साल बढ़ रहे हैं ।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक शीध के मुताबिक यमुना के बाढ़ क्षेत्र में 600 से अधिक आर्द्रभूमि और जल निकाय थे, लेकिन “उनमें से 60% से अधिक अब सूखे हैं। यह बरसात के पानी को सारे साल सहेज कर रखते लेकिन अब इससे शहर में बाढ़ आने का खतरा है।” रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “यमुना बाढ़ क्षेत्र में यमुना से जुड़ी कई जल- तिजोरियों का संपर्क तटबंधों के कारण नदी से टूट गया ।” यमुना खुल कर बहे तो अरबों-खरबों के धरती पर कब्जे खुल जाते हैं , नुक्सान भी उठाते हैं , सो यह लॉबी पहाड़ पर नदी को बाँधने, रास्ते में बालू खनन के नाम पर नदी का रास्ता रोकने के बड़े नेक्सस का हिस्सा है .
जब तक हरियाणा की सीमा तक यमुनोत्री से निकलने वाली नदी की धारा अविरल नहीं आती, तब तक दिल्ली में बरसात के तीन महीनों में कम से कम 25 दिन बाढ़ के हालात नहीं रहेंगे और ऐसा हुए बगैर दुनिया की कोई भी तकनीकी दिल्ली में यमुना को जिला नहीं सकती । एसटीपी ,रिवर फ्रंट बनाने की योजनाएं आदि कभी यमुना को बचा नहीं सकते । केवल नदी को बगैर रोके-टोके बहने दिया जाए तो दिल्ली कितना भी कूड़ा डाले , यमुना आधे से अधिक खुद ब खुद साफ हो जाएगी ।