रंग बिरंगी तितलियाँफोटो - गूगल

रंग बिरंगी तितलियाँ रोशनी के कारण लुप्त हो रही हैं

शिवचरण चौहान

जीव वैज्ञानिकों ने रंग बिरंगी तितलियों के विलुप्त होने की आशंका जाहिर की है। जीव वैज्ञानिकों का कहना है की शहर से लेकर गांव तक बिजली पहुंचने के कारण रात की जगमग रोशनी रंग बिरंगी तितलियों के लिए खतरनाक साबित हो रही है। रात में लारवा पेड़ पौधों के फूलों और पत्तियों पर रखती हैं किंतु बिजली की तेज चकाचौंध के कारण रंग बिरंगी तितलियां आराम नहीं कर पातीं। इस कारण तितलियों के प्रजनन क्षमता लगभग समाप्त होने को है। लारवा से बच्चे विकसित नहीं होते हैं।रंग बिरंगी तितलियाँ 10 वर्ष में 50 प्रतिशत से भी कम हो गई है। टेलीफोन टावरों के रेडिएशन और उनकी खतरनाक तरंगों से भी तितलियों का वंश लुप्त हो रहा है। 
यह बहुत खतरनाक स्थिति है और फूलों में परागण ना होने से मनुष्य का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। मधुमक्खियों, तितलियों और चिड़ियों के लिए रात की चकाचौंध रोशनी, टेलीफोन टावरों  का रेडिएशन खतरनाक  है। धरती को, प्रकृति को सजाने-संवारने के लिए तितलियों और चिड़ियों की उत्पत्ति हुई थी। प्रकृति के बिखरे हुए रंगों का एक रूप है ‘तितली’ । इन्द्रधनुषी रंगों वाली तितली को पकड़ने की इच्छा बच्चों और बड़ों में समान रूप से होती है।
 युक्त फूल पर या किसी दीवार, पत्थर पर बैठी तितली को पकड़ने का मन किसका नहीं होता। बच्चे जानना चाहते हैं कि  तितली इतनी रंग-बिरंगी और डिजाइनदार बनी कैसे? जो तितली लोगों के लिए इतना कौतूहल का विषय बन चुकी हो, तो लोग उसके बारे में जानना भी चाहेंगे। तितली के संदर्भ में अब तक जो जानकारियां सामने आयी हैं, उसके अनुसार पूरे विश्व में तितली की 1400 प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन 200 प्रजातियां ऐसी हैं, जो ज्यादा प्रसिद्ध हैं।
भारत में रंग बिरंगी तितलियाँ ज्यादातर अरुणाचल प्रदेश,सिलीगुड़ी, हासिमा (पश्चिमी बंगाल), दक्षिण में मालवाड़, भूटान सीमा के निकट तथा उत्तर प्रदेश में देहरादून व पचमढ़ी में पायी जाती हैं। ये तितलियां चाकलेट, शोल्जर, कामन पेन्ज, ब्लू पेन्जी, पीकाक पेन्जी, ग्रे पेन्जी, कामन राजा, बाटल ब्लू, कामन को, पेन्डेड लेडी आदि नामों से प्रचलित हैं। यद्यपि तितली के जानकार लोगों ने अपने हिसाब से तितलियों को नाम दिया गया है। कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद तितली की सन्तानोत्पत्ति होती है। सबसे पहले अण्डे की उत्पत्ति होती है, फिर अण्डे से लारवा निकलता है। मादा तितली लार्वा के लिए भोजन जुटाती है। लार्वा भोजन के रूप में अलग-अलग  पेड़ों की पत्तियों को खाना पसन्द करता है। 
लार्वा अपने को तितली के रूप में लाने से पूर्व अपने को विकसित करने के लिए एक पतली सी झिल्ली से ढक लेता है। प्यूपा नाम से जानी जाने वाली इस झिल्ली के अन्दर लार्वा 10 से 15 दिनों तक रहता है। इसी प्यूपा के अन्दर लार्वा अपने को स्वरूप देता है, अपने को रंग-बिरंगी सुन्दर-सी तितली का रूप  लेकर घ्यूपा बाहर निकलता है। वैज्ञानिकों ने कहा है एक तितली का ‘जीवनकाल करीब एक साल का होता है। तितली अपने भोजन के लिए फूलों पर बैठकर उसमें से पराग चुनती है।
इन्हीं फूलों के परागों को अपने पैरों में फंसाकर दूसरे फूल तक ले जाती है, जिससे और फूलों की उत्पत्ति होती है। इस तरह तितलियां और फूल एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर तितलियां न हों तो फूल भी नहीं होंगे। इस तरह से प्रकृति में भारी असमानता आ सकती है या यूं कहें कि अगर तितलियां समाप्त हो जाएं तो पर्यावरण सन्तुलन भी प्रभावित होगा। पिछले कुछ सालों से तितलियों की व्यावसायिक उपयोगिता पहचानी गयी है।
यह तितलियों की विभिन्न प्रजातियों के लिए एक अशुभ संकेत है। विदेशों मेंवतितलियों को काफी बड़ी कीमत पर बेचा जाता है। अभी कुछ समय पहले जर्मन के एक नागरिक से कस्टम अधिकारियों ने तितलियों की 400 प्रजातियां पकड़ी थीं। इन तितलियों को तस्करी करके बाहर ले जाया जा रहा था। बताया जाता है कि तस्करी करने का प्रमुख कारण तितलियों के बारे में शोध करना है। विदेशों में ही कई स्थानों पर महिलायें आभूषण के रूप में तितलियों को अपने शरीर को अलंकृत करती है। मोरक्को में स्त्रियां तितलियों को लाकेट के रूप में पहनती हैं। इन्हीं सब कारणों से तितलियों की कई प्रजातियां या तो समाप्त हो चुकी हैं या फिर समाप्त होने की दिशा में अग्रसर हैं।
भूटान में ही ग्लोरी प्रजाति की तितली समाप्त होने के कगार पर है, क्योंकि वहां के लोग ग्लोरी तितली को काफी बड़ी मात्रा में इकट्ठा करके उनको अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच है देते हैं। तितलियों के जीवन को नष्ट करने में शहरों में बढ़ते प्रदूषण का भी बहुत बड़ा हाथ है।  तितली एक संवेदनशील जीव है, इस कारण वायुमण्डल में फैले प्रदूषण में सांस लेना इसके लिए जानलेवा बन जाता है। यही कारण है कि तितलियां गांवों और पहाड़ी इलाकों में ज्यादा पायी जाती हैं।
तितलियों की विभिन्न प्रजातियों एवं उनके जीने रहने के ढंग पर देश-विदेश के तमाम जीव विशेषज्ञों ने अध्ययन किया है। विदेशों में मूरे, स्वेन हो, मार्शल, बटलर,वाटरन, मैकूड़, ओरमिस्टन, बैगम,वप्रिबिगेडियर इवेन्स, बेल, लेफ्टिनेन्ट कर्नल ‘पेले’ ने काफी जानकारियां तितलियों के बारे में हासिल की हैं। इवेन्स और पेले ने तो तितली विज्ञान पर पुस्तक भी लिखी है। 
 तितली विज्ञान के बारे में लुईस की पुस्तक ‘बटरफ्लाई ऑफ द वर्ल्ड’ काफी लोकप्रिय है। भारत में ‘बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी’ के क्यूरेटर के पद पर आसीन पी.एन. चतुर्वेदी तथा मेजर विमल सरकार ने तितलियों का काफी अध्ययन किया था। मेजर सरकार ने देहरादून, पचमढ़ी, हासिमा (पश्चिमी बंगाल) में पायी जाने वाली तकरीबन 200 प्रजातियों का अध्ययन किया है।अपने ताजा शोध में जीव वैज्ञानिकों ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन प्रदूषण और रात की चकाचौंध रोशनी तितलियों के लिए जानलेवा है।

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