कृषि श्रमिकऔर कृत्रिम बुद्धिमत्ता का कृषि में समावेशकृषि श्रमिकऔर कृत्रिम बुद्धिमत्ता का कृषि में समावेश

कृषि श्रमिकऔर कृत्रिम बुद्धिमत्ता का कृषि में समावेश

डॉ. मौहम्मद अवैस एवं अरुण कुमार

मज़दूरों को उनके अधिकार मिलें इसलिए विश्व भर में कामगारो के अधिकारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक  दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1 मई 1886 को अमेरिका से हुई थी जहां उस दिन मज़दूरों  के अधिकारों के लेकर भीषण प्रदर्शन हुए थे। किसी भी देश के कामगारो की मेहनत उस देश के विकास को सीधे तौर पर प्रभावित करती है, इसलिए यह आवश्यक है कि उनके अधिकारों की रक्षा हो और उन्हें भी समाज में बराबर का सम्मान मिले। भारत में श्रमिक दिवस शुभारम्भ मद्रास  में 1 मई 1923  को लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान के द्वारा किया गया। तब से अब तक हर साल हम श्रमिक  दिवस मनाते हैं।

कृषि में श्रम का बहुत महत्व है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है और लाखों कृषि एवं कृषि सम्बद्ध क्षेत्र से जुडे हुए श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है।  एनएसएसओ के अनुसार, 2023-24 में भारत के कुल श्रमबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगा हुआ था जिसमें आंकड़े दर्शाते हैं कि 46.1% कुल श्रमबल कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों में संलग्न था। यह आंकड़ा पिछले वर्षों 2022-23 की तुलना में मामूली वृद्धि दिखाता है, जोकि  45.8% और 2021-22 में 45.5% था। हालाँकि कृषि क्षेत्र में प्रतिशत हाल के वर्षों में बढ़ा है परंतु समग्र प्रवृत्ति कृषि से अन्य क्षेत्रों जैसे विनिर्माण और सेवाओं की ओर स्थानांतरण को दर्शाती है।

पिछले कुछ वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के क्षेत्र में बहुत तेज़ी से विकास हुआ है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकों में विभिन्न उद्योगों  विशेष रूप से कृषि और सार्वजनिक क्षेत्र के कामकाज को पूरी तरह से बदलने की क्षमता है। इन तकनीकों को “गेम-चेंजर”कहा जा सकता है क्योंकि यह न केवल मौजूदा व्यापार मॉडल और प्रक्रियाओं को बेहतर बनाती हैं बल्कि यह  आम तौर पर प्रचलित व्यापार नियमों और मॉडल्स में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं। 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता ग्रामीण जीवन में तेजी से अपनी भूमिका बढ़ा रही है और गाँवों की शिक्षा, कृषि, बुनियादी ढांचे और समग्र विकास में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकें किसानों को कम संसाधनों में अधिक उत्पादन करने, फसल की गुणवत्ता सुधारने और लागत घटाने में मदद करती हैं। इससे कृषि अधिक लाभकारी और टिकाऊ बनती है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, भंडारण, पैकेजिंग और लॉजिस्टिक्स को बेहतर बनाकर ताजा  उत्पाद उपभोक्ताओं तक जल्दी और कुशलता से पहुँचाए जा सकते हैं जलवायु परिवर्तन, कीट-रोग और खाद्य असुरक्षा जैसी चुनौतियों का समाधान संभव है। यह तकनीक कृषि को अधिक अनुकूल और लचीला बनाती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित स्टार्टअप्स और तकनीकी विकास से कृषि क्षेत्र में नए अवसर और रोजगार सृजित हो रहे हैं जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का कृषि में समावेश करने से फसल स्वास्थ्य निगरानी और उपज का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है जिसमें भारत सरकार द्वारा औद्योगिक क्षेत्र के सहयोग से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-संचालित फसल उपज पूर्वानुमान मॉडल’ विकसित किया गया है। इसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन के रिमोट सेंसिंग डेटा, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, और मौसम विभाग के आंकड़ों का उपयोग होता है। यह मॉडल असम, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 10 जिलों में लागू किया गया है। इससे किसानों को फसल की उत्पादकता बढ़ाने, मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने, और कीट/बीमारी के प्रकोप की भविष्यवाणी करने में मदद मिलती है।

 फारमोनौट  जैसी कंपनियां सैटेलाइट इमेजरी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके फसल स्वास्थ्य की निगरानी करती हैं। इनके “जीवन” आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म से किसान अपने खेत की स्थिति, मिट्टी की नमी, कीट या रोग की पहचान, और उपज का अनुमान रीयल-टाइम डेटा के आधार पर प्राप्त कर सकते हैं। इससे छोटे किसान भी कम लागत में उच्च तकनीक का लाभ उठा सकते हैं।

बारामती, महाराष्ट्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक से गन्ना, भिंडी, टमाटर, मिर्च, तरबूज आदि फसलें उगाई गई हैं। जिसमें सेंसर से मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, तापमान, हवा की नमी, मिट्टी की लवणता, और जल की मात्रा की निगरानी होती है। यह डेटा हर आधे घंटे में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम तक पहुंचता है जिससे किसान को सही मात्रा में पानी, उर्वरक और अन्य संसाधनों के उपयोग की जानकारी मिलती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित डिजिटल कृषि सलाहकार जैसे “जीवन” आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मोबाइल ऐप्स के माध्यम से किसानों को व्यक्तिगत सलाह देते हैं-जैसे कब सिंचाई करनी है कौन-सी फसल उगानी है या किस बीमारी से बचाव करना है।

फार्म वाइब्स जैसे प्लेटफॉर्म मृदा की नमी, तापमान, आर्द्रता और का विश्लेषण कर सटीक कृषि अनुशंसाएँ प्रदान करते हैं  जिससे किसान बेहतर निर्णय ले सकते हैं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब सिर्फ किसानों के लिए नहीं बल्कि कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लाखों मजदूरों के  भी भविष्य को बदलने जा रही है। जैसे-जैसे तकनीक ने खेती को आसान और अधिक उत्पादक बनाया है वैसे ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता मजदूरों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल रहा है। जिसमें कौशल विकास कार्यों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ऑटोमेशन से भारी और दोहराव वाले काम कम होंगे जिससे मजदूर तकनीकी, सुपरवाइजरी और निर्णयात्मक क्षेत्रों  में जा सकेंगे। इससे उनकी योग्यता और आय दोनों बढ़ेगी। नवीन कौशल विकास एवं बेहतर आय के क्षेत्रों का सृजन होने से स्मार्ट उपकरण और डेटा-आधारित सिस्टम चलाने की ट्रेनिंग से मजदूरों को बेहतर वेतन और स्थायी करियर के अवसर मिलेंगे।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता से खेती में उत्पादकता बढ़ेगी जिससे मजदूरों को बोनस या प्रोत्साहन मिल सकते हैं। लागत कम और उत्पादन ज्यादा होने से मजदूरी भी बेहतर हो सकती है। कीटनाशक छिड़काव का ऑटोमेशन मजदूरों के लिए सुरक्षा और स्वास्थ्य में सुधार लाएगा। ड्रोन ऑपरेटर, रोबोटिक्स तकनीशियन,आँकड़ों का विश्लेषण जैसी नई भूमिकाएं मजदूरों के लिए डिजिटल कृषि में अवसर खोलेंगी। कृत्रिम बुद्धिमत्ता सक्षम टिकाऊ खेती (जैसे सिंचाई, पोषक तत्व प्रबंधन) में मजदूरों की भागीदारी से उन्हें पहचान, कौशल विकास और जिम्मेदारी की अनुभूति होगी। 

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