सुनील कुमार महला
पर्यावरण प्रदूषण आज के समय में एक बहुत ही गंभीर और बड़ी समस्या है। इस समस्या से निजात पाने के लिए या यूं कहें कि पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से सरकार पिछले कुछ समय से देश में इलेक्ट्रोनिक वाहन (ईवी) को लगातार बढ़ावा दे रही है। इसी क्रम में हाल के वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन और बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कई प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माताओं ने ‘ईवी तकनीक’ में भारी निवेश किया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज इलेक्ट्रिक वाहन (ई.वी.) उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, और इसका बहुत बड़ा कारण पेट्रोल की कीमतों की स्थिति, तथा वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की चिंताएं हैं। आज आम व खास दोनों का ही रूझान भी इलेक्ट्रिक वाहन की खरीद की ओर लगातार बढ़ा है, क्यों कि एक तो इन वाहनों पर सब्सिडी मिल जाती है, दूसरे छोटे वाहनों का आरटीओ में रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत भी नहीं पड़ती है या इनका रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य नहीं है। आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2022 में भारत के आधे से अधिक तिपहिया पंजीकरण इलेक्ट्रिक वाहन थे, जो ईवी अपनाने की दिशा में एक उल्लेखनीय बदलाव को दर्शाता है। वर्तमान में हमारी सरकारें देश में बड़े शहरों में ई-चार्जिंग स्टेशनों को भी बढ़ावा देने की ध्यान दे रही है और अनेक शहरों में तो इनकी शुरूआत भी हो चुकी है। बहरहाल, यह ठीक है कि इलैक्ट्रिक वाहनों में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाने और जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला कर सकने की अभूतपूर्व क्षमताएं है और ये तेल आयात को भी कम करने में मदद करते हैं और ऊर्जा विविधता लाने में भी योगदान करते हैं, कांपैक्ट डिजाइन के कारण शहरों में भीड़भाड़ कम करने में भी मदद करते हैं, लेकिन बावजूद इसके इलैक्ट्रिक वाहनों से हमारे पर्यावरण,हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर कहीं न कहीं विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। वास्तव में आज इतनी अधिक संख्या में देश की मांग के अनुरूप ईवी बैटरी उत्पादन से हमारे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।इससे धरती पर जैव-विविधता की हानि, वायु प्रदूषण और मीठे पानी की आपूर्ति में कमी जैसे प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक नई कारों की बिक्री का 52% हिस्सा पूरी तरह से इलेक्ट्रिक होगा। इलैक्ट्रिक वाहन बड़ी बैटरियों से चलते हैं, और मुख्य चिन्ता यह है कि चार्जिंग के अलावा, इलैक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) उत्पादन से भी कार्बन उत्सर्जन होता है। आंकड़े बताते हैं कि 43 किलोवाट-घंटे की औसत क्षमता के साथ, केवल एक ईवी बैटरी का उत्पादन करने से लगभग उतना ही कार्बन उत्सर्जन होता है जितना कि एक गैसोलीन कार को लगभग 50,000 मील चलाने से होता है। बैटरियों में पाये जाने वाले लिथियम और निकल भी कार्बन पदचिह्न में योगदान करते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि बैटरी निर्माण प्रक्रियाओं का पर्यावरण पर काफी प्रभाव पड़ता है। दरअसल, ईवी की लिथियम-आयन बैटरी के घटकों को खनन करना पड़ता है, और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की बैटरियों को आसानी से रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है, जो दुनिया भर में बढ़ती ई-कचरे की समस्या को बढ़ाता है। अतः कहना ग़लत नहीं होगा कि इलैक्ट्रिक वाहनों में भी अपशिष्ट की समस्या एक बड़ी समस्या है, जो मनुष्य के लिए एक चुनौती है। यह ठीक है कि लिथियम-आयन बैटरियां हमारी अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन उनका अपशिष्ट इतना होता है कि जीवाश्म ईंधन पर उनका कोई विशेष फायदा नजर नहीं आता है। एक आंकड़े के अनुसार लिथियम-आयन अपशिष्ट की यह संख्या वर्ष 2030 तक लगभग 3.2 मिलियन टन तक पहुँच जाने की संभावनाएं हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक ई-कचरा मॉनिटर 2020 के अनुसार, भारत, जो पहले से ही एक बड़ी ई-कचरे की समस्या से जूझ रहा है, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कचरा उत्पादक है। सरकार की इलैक्ट्रिक वाहनों की पहल पर्यावरण के लिहाज से ठीक है लेकिन इलैक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों का अनुचित तरीके से निपटान भारत में ई-कचरे की बढ़ती समस्या में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, जिससे ईवी(इलैक्ट्रिक व्हीकल) क्रांति के साथ-साथ पर्यावरणीय चिंताएँ भी बढ़ सकती हैं। हमें जरूरत इस बात की है कि हम ई-कचरे के निपटान की दिशा में भी उचित एवं सकारात्मक कदम उठायें।
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड ।