समुद्री चक्रवात मेचोंग के चैन्नई से गुजरे हुए एक हफ्ता हो गया है, चार दिन से अच्छी धुप भी है लेकिन शहर के बड़े हिस्से में घुटनों से कमर तक पानी भरा है, बहुमंजिला इमारतों की बेसमेंट पार्किंग हज़ारों कारों का कब्रगाह बन गई हैं । चेन्नई में बरसात कोई नई बात नहीं हैं लेकिन इतनी अधिक बरसात और तेज आंधी ने बिजली, सड़क सभी तो ध्वस्त कर दिया । सन 2015 के बाद यह हर साल की त्रासदी है कि शहर डूबता ही हैं। कहा जाता है कि चक्रवात के कारण इतनी अधिकझमाझम बारिश अप्रत्याशित है लेकिन हकीकत यह है कि एक तरफ जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव सबसे पहले तटीय शहरों में पड़ने की चेतावनी अब सामने दिख रही है ।
इस महानगर के वेट लैंड या जलग्रहण क्षेत्र बीते चार दशक में लगभग 250 वर्ग किलोमीटर घट गए और वहां कंक्रीट का सागर लहरा रहा है, जो बरसात के जलजमाव को सागर की जल निधि में जाने से रोकता है। जान लें यह भी बड़ा सच है कि मद्रास शहर क पारंपरिक बुनावट और बसावट इस तरह की थी कि एक दिन में 15 मिमी तक पानी बरसने पर भी शहर की जल निधियां में ही पानी एकत्र होता और वे उफनते तो पानी समुद्र में चला जाता।
चैन्नई के पश्चिमी हिस्से का कोरात्तुर इलाका जलभराव से बेहाल है यहा की आबादी कोई साथ हजार होगी . वैसे यहाँ ९०० एकड़ में फैली झील भी है लेकिन उसके चरों तरफ इतने निर्माण हुए कि बरसात का जल वहां तक आता नहीं । यदि यहाँ की अम्बातुर झील का जुड़ाव सदियों पहले की तरह फिर से कूवम नाद से कर दिया आजाता तो न तो यहाँ पानी भरता न ही पानी की कमी होती . यह खानी चेन्नई के लगभग सभी नए बसे मध्यवर्गीय मुहल्लों की है – या तो वहां के तलब सुखा दिए गये या फिर उनको नदी से जोड़ने वाले रास्ते बंद कर दिए गए ।
कभी समुद्र के किनारे का छोटा सा गांव मद्रासपट्टनम आज भारत का बड़ा नगर है। अनियोजित विकास, षरणार्थी समस्या औ जल निधियों की उपेक्षा के चलते आज यह महानगर बड़े शहरी-झुग्गी में बदल गया है। यहां की सड़कों की कुल लंबाई 2847 किलोमीटर है और इसका गंदा पानी ढोने के लिए नालियों की लंबाई महज 855 किलोमीटर। लेकिन इस शहर में चाहे जितनी भी बारिश हो उसे सहेजने और सीमा से अधिक जल को समुद्र तक छोड़कर आने के लिए यहां नदियों, झीलों, तालाबों और नहरों की सुगठित व्यवस्था थी। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ डिजास्टर मैनेजमेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस महानगर में 650 से अधिक जल निधियों में कूड़ा भर कर चौरस मैदान बना दिए गए । यही वे पारंपरिक स्थल थे जहां बारिश का पानी टिकता था और जब उनकी जगह समाज ने घेर ली तो पानी समाज में घुस गया।
उल्लेखनीय है कि हर साल जब अधिक बरसात होती है तो सबसे ज्यादा दुर्गति दो पुरानी बस्तियों-वेलाचेरी और तारामणि की होती है । वेलाचेरी यानि वेलाय- ऐरी। सनद रहे तमिल में ऐरी का अर्थ है तालाब व मद्रास की ऐरी व्यवस्था सामुंदायिक जल प्रबंधन का अनूठा उदाहरण हैं। आज वेलाय ऐरी के स्थान पर गगनचुंबी इमारतें हैं। शहर का सबसे बड़ा मॉल ‘‘ फोनिक्स’’ भी इसी की छाती पर खड़ा है। जाहिर है कि ज्यादा बारिश होने पर पानी को तो अपने लिए निर्धारित स्थल ‘ऐरी’ की ही ओर जाना था। शहर के वर्षा जल व निकासी को सुनियोजित बनाने के लिए अंग्रेजों ने 400 किलोमीटर लंबी बर्किंघम नहर बनवाई थी, जो आज पूरी तरह प्लास्टिक, कूड़े से पटी है कीचड़ के कारण इसकी गहराई एक चौथाई रह गई है। जब तेज बारिश हुई तो पलक झपकते ही इसका पानी उछल कर इसके दोनो तरफ बसी बस्तियों में घुस गया।
चैन्नई शहर की खूबसूरती व जीवन रेखा कहलाने वाल दो नदियों- अडयार और कूवम के साथ समाज ने जो बुरा सलूक किया, प्रकृति ने इस बारिश में इसी का मजा जनता को चखाया। अडयार नदी कांचीपुरम जिले में स्थित विषाल तालाब चेंबरवक्कम के अतिरिक्त पानी के बहाव से पैदा हुई। यह पष्चिम से पूर्व की दिषा में बहते हुए कोई 42 किलोमीटर का सफर तय कर चैन्नई में सांथम व इलियट समुद्र तट के बीच बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह नदी शहर के दक्षिणी इलाके के बीचों बीच से गुजरती हैं और जहां से गुजरती है वहां की बस्तियों का कूड़ा गंदगी अपने साथ ले कर एक बदबूदार नाले में बदल जाती है।
यही नहीं इस नदी के समुद्र के मिलन-स्थल बेहद संकरा हो गया है व वहां रेत का पहाड़ है। हालात यह हैं कि नदी का समुद्र से मिलन हो ही नहीं पाता है और यह एक बंद नाला बन गया है। समुद्र में ज्वार की स्थिति में ऊंची लहरें जब आती हैं तभी इसका मिलन अडयार से होता है। तेज बारिश में जब शहर का पानी अडयार में आया तो उसका दूसरा सिरा रेत के ढेर से बंद था, इसी का परिणाम था कि पीछे ढकेले गए पानी ने शहर में जम कर तबाही मचाई व दो सप्ताह बीत जाने के बाद भी पानी को रास्ता नहीं मिल रहा है। अडयार मे शहर के 700 से ज्यादा नालों का पानी बगैर किसी परिशोधन के तो मिलता ही है, पंपल औद्योगिक क्षेत्र का रासायनिक अपषिश्ट भी इसको और जहरीला बनाता है।
कूवम शब्द ‘कूपम ’ से बना है- जिसका अर्थ होता हैं कुआँ। कूवम नदी 75 से ज्यादा तालाबों के अतिरिक्त जल को अपने में सहजे कर तिरूवल्लूर जिले में कूपम नामक स्थल से उदगमित होती है। दो सदी पहले तक इसका उद्गम धरमपुरा जिले था, भौगोलिक बदलाव के कारण इसका उदगम स्थल बदल गया। कूवम नदी चैन्नई शहर में अरूणाबक्कम नाम स्थान से प्रवेष करती है और फिर 18 किलोमीटर तक शहर के ठीक बीचों बीच से निकल कर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसके तट पर चूलायमेदू, चेरपेट, एग्मोर, चिंतारीपेट जैसी पुरानी बस्तियां हैं और इसका पूरा तट मलिन व झोपड़-झुग्गी बस्तियों से पटा है। इस तरह कोई 30 लाख लोगों का जल-मल सीधे ही इसमें मिलता है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह कहीं से नदी नहीं दिखती। गंदगी, अतिक्रमण ने इसे लंबाई,चौड़ाई और गहराई में बेहद संकरा कर दिया है। अब तो थेाडी सी बारिश में ही यह उफन जाती है।
भीषण चक्रवात और साथ में बारिश चैन्नई शहर के लिए जलवायु परिवर्तन की तगड़ी मार के आगमन की बानगी है। यह संकट समय के साथ और क्रूर होगा और इससे बचने के लिए अनिवार्य है कि शहर के पारंपरिक तालाबों व सरोवरों को अतिक्रमण मुक्त कर उनके जल-आगम के प्राकृतिक मार्गों को मुक्त करवाया जाए। नदियों व नहर के तटों से अवैध बस्तियों को विस्थापित कर महानगर की सीवर व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना होगा।