शहरी क्षेत्र में जुगनुओं की संख्या वन क्षेत्र के मुकाबले काफी कम
शोधपत्र में पहली बार दिखा जुगनुओं का टिमटिमाता संसार, दूनघाटी में मिली जुगनुओं की छह प्रजातियां, उत्तराखंड समेत 20 राज्यों में भी पाई गई जुगनुओं की उपस्थिति, जुगनू हमारे प्रमुख बायो इंडिकेटर्स (जैव संकेतक) में से एक हैं । रात में इनकी टिमटिमाहट जितनी आकर्षक होती है, ये हमारे फल-सब्जियों को कीटों से मुक्त रखने में उतने ही मददगार साबित होते हैं। इसके बाद भी जुगनुओं के टिमटिमाते संसार को लेकर पर्याप्त अध्ययन का अभाव रहा। अब भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) ने न सिर्फ इस दिशा में अध्ययन को आगे बढ़ाया है, बल्कि संस्थान के विज्ञानियों ने एसजीआरआर विश्वविद्यालय के साथ मिलकर पहला शोधपत्र भी प्रकाशित किया है। दूनघाटी में किए शोध में पाया गया कि शहरी क्षेत्र में जुगनुओं की संख्या वन क्षेत्र के मुकाबले काफी कम है। बढ़ता प्रदूषण व कम हरियाली भी जुगनुओं के लिए खतरा है । यह शोधपत्र रिसर्च स्कालर (शोधार्थी) निधि राणा ने भारतीय वन्यजीव संस्थान के तत्कालीन वरिष्ठ विज्ञानी डा वीपी उनियाल और एसजीआरआर विवि के जंतु विज्ञान के विभागाध्यक्ष डा राजेश रयाल के मार्गदर्शन में किया। शोध को देश के प्रतिष्ठित इंडियन फारेस्टर जर्नल में प्रकाशित किया गया है। शोधार्थी निधि राणा के अनुसार, दूनघाटी में जुगनुओं की छह प्रजातियां पाई गई हैं । जुगनू स्वच्छ वातावरण के प्रमुख जैव संकेतक के रूप में काम करते हैं। दूनघाटी में जुगनू विशेष रूप से शहर से दूर वन क्षेत्रों में अधिक पाए गए हैं। शहरी क्षेत्र में जुगनुओं की संख्या वन क्षेत्रों के मुकाबले न के बराबर पाई गई है। इससे यह पता चलता है कि बढ़ते प्रदूषण और घटती हरियाली के कारण जुगनुओं के अस्तित्व पर खतरा बढ़ रहा है । यदि यही स्थिति रहती है तो आने वाले पीढ़ी जुगनू देखने को भी तरस जाएगी, जो हमारे फल-सब्जियों के पौधों की सेहत के लिए भी सही स्थिति नहीं होगी । हालांकि, यह पहला शोध है और इसी के आधार पर अब हम भविष्य जुगनुओं की स्थिति में होने वाले बदलाव को समझ पाएंगे । शोध के परिणाम को बेसलाइन डाटा के रूप में भी प्रयोग किया जा सकेगा । भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व विज्ञानी डा वीपी उनियाल के अनुसार, उत्तराखंड समेत देश के 20 राज्यों में भी जुगनुओं की उपस्थिति दर्ज की गई है । इन राज्यों के लिए भी यह शोध बेहद अहम है ।