कंक्रीट के जंगल को ठंढा रखने के लिए गर्म होता भारतकंक्रीट के जंगल को ठंढा रखने के लिए गर्म होता भारत

कंक्रीट के जंगल को ठंढा रखने के लिए गर्म होता भारत

अरुण चन्द्र राय

मार्च का महिना इस साल पिछले दस सालों में सबसे गरम रहा है । भारत के अधिकांश मध्य, पूर्वी और दक्षिणी राज्य लू के चपेट मे थे । भारतीय शहरों का बढ़ता तापमान एक नई चिंता लेकर आ रहा है और नई चुनौतियाँ भी पेश कर रहा है । पिछले साल भी देश के अधिकांश क्षेत्रों में गर्मी की छुट्टियाँ पहले पड़ गई थी क्योंकि गर्मी अप्रैल में अपने चरम पर पहुँच गई थी । कई राज्यों में तापमान चालीस डिग्री से अधिक पहुँच चुका है।

          पाया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में तापमान अधिक तेजी से बढ़ता है । समान्यतया ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में तापमान का अंतर बड़े पैमाने पर अंधाधुंध शहरीकरण के कारण है । शहरी इलाकों में तेजी से बढ़ता कंक्रीट, वनों की कटाई, जलस्रोतों का सूखना, तापमान को बढ़ा रहा है ।

          भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर से जुड़े शोधकर्ताओं का दावा है कि अकेले शहरीकरण ने भारतीय शहरों में गर्मी को 60 फीसदी तक बढ़ा दिया है। उनके शोध के मुताबिक पूर्वी भारत के टियर-2 शहर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। उदाहरण के लिए ओडिशा के भुवनेश्वर में शहरीकरण ने स्थानीय वार्मिंग में 90 फीसदी का योगदान दिया है। यही कारण है कि 2024 में भुवनेश्वर का अधिकतम तापमान 50 डिग्री से अधिक पहुँच गया था ।

          देखा जाए तो जिस तरह से शहरों में पेड़ों, हरित क्षेत्रों, झीलों को पाट कर कंक्रीट का जंगल बढ़ रहा है, उसका खामियाजा शहरों में आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इतना ही नहीं पेड़ों की ठंडी छांव की जगह जिस तरह एयर कंडीशन जैसी मशीनों पर निर्भरता बढ़ रही है, वो भी भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी की वजह बन रही है।

          कुछ शोधकर्ताओं ने पिछले दो दशकों के दौरान भारत के 141 प्रमुख शहरों में बढ़ते तापमान पर शहरीकरण और स्थानीय जलवायु में आते बदलावों के प्रभावों का अध्ययन किया है। इन शहरों में बढ़ते तापमान के रुझानों को जानने के लिए 2003 से 2023 के बीच नासा के मोडिस  उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली गई है। तापमान के यह आंकड़े भूमि की सतह के पास बढ़ते तापमान के रुझानों को दर्शाते हैं। इनकी मदद से शोधकर्ताओं ने शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते तापमान के रुझानों की तुलना की है।

          शोधकर्ताओं का मानना है कि जहां ग्रामीण और गैर-शहरी क्षेत्रों में बढ़ते तापमान के पीछे की वजह क्षेत्रीय तौर पर जलवायु में आता बदलाव है। वहीं शहरों में बढ़ते तापमान के लिए जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण दोनों ही जिम्मेवार हैं। इसका मतलब है कि शहरों में बढ़ता कंक्रीट और भूमि उपयोग में आता बदलाव अतिरिक्त गर्मी पैदा कर रहा है। यह अतिरिक्त गर्मी का बड़ा कारण एयरकंडिशनर का उपयोग है ।

          शहरों में तापमान को नियंत्रित करने के लिए वातानुकूलित यंत्रों यानि एयर कंडेशनर का उपयोग तेजी से बढ़ा है । आज एयर कंडीशनर का उपयोग घरेलू और संस्थागत रूप दोनों से हो रहा है । पिछले दस वर्षों में एयरकंडिशनर की संख्या में दुगुना वृद्धि हुई है । एयरकंडिशनर की संख्या बढ़ने और तापमान में वृद्धि का सीधा और प्रत्यक्ष संबंध है ।

          साल 2021 में दुनियाँ भर के घरों में उपयोग होने वाले एसी उपकरणों की अनुमानित संख्या 2.2 अरब यूनिट ही । पिछले दस वर्षों में एयरकंडिशनर के उपयोग की संख्या में लगभग 40% की वृद्धि हुई है । दुनिया भर में बिजली की खपत की 10% से अधिक हिस्सेदारी केवल एयरकंडिशनर की है । शहरी क्षेत्रों में बिजली की बढ़ती मांग के पीछे एयरकंडिशनर ही हैं । यह खपत नब्बे की दशक की तुलना में दुगुनी हो गई है ।

          भारत में वर्तमान में हर साल 10 से 15 मिलियन एसी लगाए जा रहे हैं, और अगले दशक में 150 मिलियन और अधिक एसी लगाए जाने की संभावना है । बड़े पैमाने पर एसी के उपयोग से बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है जिसका असर पर्यावरण पर भी पड़ता है । हालिया अध्ययन से पता चलता है कि तत्काल नीतिगत कार्रवाई के बिना, अकेले एसी चलाने के लिए 2030 तक बिजली की अधिकतम मांग में 120 गीगावाट और 2035 तक 180 गीगावाट हो जाएगी ।

भारत के कुल बिजली की मांग में लगभग एक तिहाई बिजली की खपत एसी के लिए होगी । इससे बिजली ग्रिडों पर बहुत दवाब पड़ेगा, बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन के क्षेत्र में भारी निवेश की जरूरत होगी और पर्यावरण पर पड़ने वाला असर एक अलग चुनौती पेश करेगा । भारत में एसी के लिए बिजली की मांग जापान जैसे देश की पूरी बिजली मांग से अधिक होगी ।

          स्पेस कूलिंग से होने वाला कार्बनडाईऑक्साइड उत्सर्जन 1990 की तुलन में तीन गुना बढ़ गया है । वैश्विक कार्बनडाईऑक्साइड उत्सर्जन में एसी का सर्वाधिक योगदान है । इससे वैश्विक औसत तापमान वृद्धि करीब 1 से 1.5 गुना तक होने की संभावना है जो संयुक्त राष्ट्र और पेरिस समझौते के मानदंडों से अधिक है ।

          भारत में एसी की बिक्री दर में हर साल 15 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है। ऐसा अनुमान है कि साल  2050 तक स्पेस कूलिंग के लिए ऊर्जा की मांग में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी भारत, चीन और इंडोनेशिया में होगी।

          शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि अब से लेकर 2050 तक केवल रूम एसी ही 130 गीगाटन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार होंगे। यह एक चिंताजनक पहलू है

                   भारतीय शहर भी इन बदलावों से परे नहीं है। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो 2050 तक शहरी आबादी दोगुनी हो सकती है। अनुमान है कि तब भारत में करीब 80 करोड़ लोग शहरों में रह रहे होंगें। नतीजन यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला शहरी क्षेत्र बन जाएगा। अनुमान है कि भारत 2050 तक ऊर्जा मांग में सबसे अधिक वृद्धि के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था भी होगा। किन्तु यदि इतनी ही तेजी से एसी का उपयोग होगा तो यह देश के तापमान को और अधिक बढ़ा देगा, कार्बन उत्सर्जन वृद्धि का एक बड़ा वजह बनेगा।

          कम शब्दों में कहें तो कंक्रीट के जंगल को ठंढा रखने के लिए भारत गर्मी मे झुलसता रहेगा और इससे सबसे अधिक प्रभावित होंगे निम्न-मध्यम वर्ग के लोग । साथ ही  इसका असर भारत के ग्रामीण क्षेत्र पर भी पड़ेगा । एसी के उपयोग के लिए भी देश को नीति बनानी पड़ सकती है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *