प्रदूषण, घटता स्तर और स्थायी समाधान की आवश्यकता
विकास परसराम मेश्राम
भारत में भूजल पीने के लिए, कृषि के लिए और औद्योगिक उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है। देश के अधिकांश हिस्सों में पीने के पानी की जरूरत भूजल से पूरी की जाती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से भूजल स्तर में गिरावट हो रही है और इसकी गुणवत्ता में भी भारी गिरावट देखी गई है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा हाल ही में प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट में भूजल की गुणवत्ता को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है। भूजल प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बड़े पैमाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। खासकर नाइट्रेट, यूरेनियम और फ्लोराइड जैसे हानिकारक तत्व भूजल में पाए गए हैं, जिससे गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
भूजल प्रदूषण की सबसे बड़ी चिंता: नाइट्रेट का बढ़ता स्तर
रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में 359 जिलों में नाइट्रेट का स्तर खतरनाक स्तर पर था, जो 2023 तक 440 जिलों तक पहुंच गया है। भारत के 779 जिलों में से आधे से अधिक जिलों में नाइट्रेट का स्तर सुरक्षित सीमा (45 मिलीग्राम प्रति लीटर) से अधिक पाया गया है। नाइट्रेट मुख्य रूप से रासायनिक उर्वरकों और जैविक कचरे से भूजल में मिल जाता है। गहन खेती और अनियंत्रित उर्वरकों के उपयोग के कारण नाइट्रेट का स्तर तेजी से बढ़ रहा है।
नाइट्रेट प्रदूषण के स्वास्थ्य पर प्रभाव
नाइट्रेट के अधिक स्तर से मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। खासकर छोटे बच्चों में यह “ब्लू बेबी सिंड्रोम” के रूप में प्रकट होता है। इसके अलावा, नाइट्रेट युक्त पानी पीने से रक्त में हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है, जिसे चिकित्सा भाषा में ‘मेटहेमोग्लोबिनेमिया’ कहा जाता है। इस बीमारी के कारण थकान, सांस की तकलीफ और अन्य गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं।
पर्यावरण पर नाइट्रेट का प्रभाव
नाइट्रेट जब सतह पर आता है तो झीलों, तालाबों और नदियों में मिल जाता है। इससे जल स्रोत दूषित हो जाते हैं और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ जाता है। झीलों में शैवाल की अधिक वृद्धि हो जाती है, जिससे पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ जाता है।
भूजल प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित राज्य
पंजाब और राजस्थान भूजल प्रदूषण के लिहाज से सबसे अधिक खतरनाक साबित हुए हैं। पंजाब में भूजल के 30% नमूनों में यूरेनियम का स्तर खतरनाक पाया गया है। भूजल में यूरेनियम की मौजूदगी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करती है। इसके कारण कैंसर, किडनी की बीमारियां और हड्डियों के रोग होते हैं। पंजाब में कैंसर के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई है। यहां तक कि पंजाब से राजस्थान जाने वाली एक ट्रेन को “कैंसर ट्रेन” कहा जाता है।
पंजाब में चावल की खेती के लिए बड़े पैमाने पर भूजल का उपयोग किया जाता है। खासतौर पर धान की खेती के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है। लेकिन स्थानीय आहार में चावल का उपयोग कम है। किसानों को धान के उत्पादन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दिया जाता है, जिससे वे इस फसल की खेती करते हैं। मगर भूजल का अत्यधिक दोहन होने से पानी का स्तर नीचे चला गया है और पानी में खतरनाक तत्व मिल गए हैं।
फ्लोराइड प्रदूषण की समस्या
रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान और गुजरात में भूजल में फ्लोराइड का स्तर निर्धारित सीमा से अधिक पाया गया है। फ्लोराइड के अधिक स्तर से हड्डियों के रोग होते हैं। राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी फ्लोराइड प्रदूषण की समस्या गंभीर है।
भूजल संकट के कारण
भूजल प्रदूषण का मुख्य कारण गहन कृषि के लिए भूजल का अत्यधिक उपयोग और वर्षा के पानी को जमीन में पुनर्भरण में विफलता है। यदि वर्षा के पानी का उचित पुनर्भरण किया जाए तो भूजल स्तर में सुधार हो सकता है और पानी में हानिकारक तत्वों की मात्रा कम हो सकती है। मानसून के बाद भूजल की गुणवत्ता में सुधार देखा गया है। इसलिए वर्षा जल संचयन और पुनर्भरण नीतियों को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है।
ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव
भूजल की गुणवत्ता में लगातार गिरावट ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण और भी गंभीर हो गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में बदलाव आया है। कुछ क्षेत्रों में सूखा तो कुछ क्षेत्रों में बाढ़ आ रही है, जिससे जल संकट और अधिक गहरा रहा है।
सरकारी नीतियों में सुधार की आवश्यकता
सरकार को जल प्रबंधन नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए। किसानों को कम पानी में उगने वाली और अधिक लाभ देने वाली फसलों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ ही, पानी का सोच-समझकर उपयोग करने के लिए किसानों को मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए। फसलों में विविधता लाना और जैविक खेती को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है।
भूजल उपयोग पर नियंत्रण की आवश्यकता
भूजल के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए। मुफ्त सिंचाई सुविधाएं देने की नीति पर भी पुनर्विचार करना चाहिए। मुफ्त सुविधाओं का अत्यधिक उपयोग होता है, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए पानी का उपयोग सोच-समझकर और योजनाबद्ध तरीके से करना आवश्यक है।
जल की गुणवत्ता निगरानी
केंद्रीय भूजल बोर्ड ने देशभर के भूजल निगरानी स्थलों से नमूने लिए। 15,259 नमूनों में से 19.8% नमूने निर्धारित मानकों में फिट नहीं पाए गए। राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु में नाइट्रेट प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक पाया गया।
समस्या का समाधान और जागरूकता की जरूरत
भले ही समस्या गंभीर हो, कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं। देश के 73% भूजल ब्लॉक “सुरक्षित” श्रेणी में हैं, जिसका मतलब है कि इन क्षेत्रों में निकाले गए पानी की भरपाई पुनर्भरण के माध्यम से हो रही है। लेकिन प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
इस संकट से निपटने के लिए उच्च स्तर के नेतृत्व के मार्गदर्शन में व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। लोगों में पानी बचाने और पानी के प्रदूषण को रोकने की जागरूकता पैदा करना आवश्यक है।
संकट पर काबू पाने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक
भविष्य में जल संकट और गहरा होने से पहले सरकार, गैर-सरकारी संगठन (NGO), और समाज को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। भूजल का उपयोग अधिक जिम्मेदारी से और स्थायी तरीके से करना समय की मांग है। भूजल के अत्यधिक उपयोग और प्रदूषण को रोकने के लिए प्रभावी नीतियां लागू करना जरूरी है।