मानव का जंगल-जीवन, प्रकृति में हस्तक्षेप।मानव का जंगल-जीवन, प्रकृति में हस्तक्षेप।

सुनील कुमार महला

हाल ही में राजस्थान की शिक्षा नगरी कहलाने वाले सीकर जिले के आबादी इलाके में घुसे एक तेंदुए ने पांच घंटों तक शहर की सांसें थाम कर रखी। पिछले कुछ समय से जयपुर, सीकर से तेंदुए(जंगली जानवर) से दहशत की खबरें लगातार सोशल मीडिया पर देखने-सुनने को मिल रही हैं। ये जंगली पशु कभी गाय-भैंस, बछड़ों, भेड़-बकरियों, हिरन आदि पर हमला करते हैं तो कभी गांव-शहर में महिलाओं, बच्चों और पुरूषों को अपना शिकार बनाने की कोशिश करते हैं। यहां तक कि जंगली जानवरों से कुछ हृदय विदारक घटनाएं भी मीडिया की सुर्खियों में पिछले कुछ समय से आतीं रहीं हैं। सीकर का अजीतगढ़ और गणेश्वर क्षेत्र भी जंगली जानवरों के साये से अछूता नहीं रहा है। ये क्षेत्र अरावली पहाड़ियों की तलहटी में बसे क्षेत्र हैं और यहां आबादी क्षेत्र में दो से तीन बार पेंथर्स के घुसने की खबरें मीडिया की सुर्खियों में आ चुकीं हैं। इतना ही नहीं,यहां पौंख की ढ़ाणी दहलाड़ा में भी पेंथर के घुसने की खबरें आईं थीं। बहरहाल, राजस्थान ही नहीं कुछ समय पहले इसी साल अगस्त में उत्तर प्रदेश के बहराइच में आदमखोर भेड़िए के आतंक की खबरें काफी चर्चा में रहीं थीं। उत्तर प्रदेश में आदमखोर भेड़िए ने की लोगों की जानें लें लीं और अनेक को घायल कर दिया था। यहां तक कि आदमखोर भेड़िए की ड्रोन कैमरों से निगरानी तक की गई और भेड़िए को गोली तक मारने के आदेश भी जारी किए गए। आखिर इन सबके पीछे कारण क्या हैं ? दरअसल कारण मानव स्वयं ही है, क्यों कि आज बढ़ते शहरीकरण, औधोगिकीकरण के कारण मनुष्य इन जंगली जानवरों/पशुओं से लगातार जंगल के जंगल छीनता चला जा रहा है। आज जंगली जानवरों के अधिवासों में पहले की तुलना में एक अभूतपूर्व कमी आई है।

वन क्षेत्र, चरागाह भूमि भी कम हुई है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और प्रकृति का लगातार शोषण जारी है। खनन कार्य, पुल निर्माण, सड़क निर्माण, रेलवे प्लेटफार्म निर्माण व विभिन्न निर्माण कार्य जोरों पर है। आज जगह-जगह कंक्रीट की बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी हो चुकीं हैं। गांव भी धीरे-धीरे आज शहरों में ढ़लने लगें हैं। कृषि भूमि भी कम हुई है। क्या यह कहना सच नहीं है कि आज सीकर के नीम का थाना क्षेत्र, हर्ष की पहाड़ियों वाले क्षेत्र वनस्पति को पहले की तुलना में नुकसान पहुंचा है। नीमकाथाना क्षेत्र में तो अनेक स्थानों पर खनन गतिविधियों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है और वन्य क्षेत्र को नुक्सान पहुंचा है। उदयपुरवाटी ,कोटपुतली में भी ऐसा ही कुछ हाल है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज भोजन और पानी की तलाश में वन्य जीव अपने प्राकृतिक अधिवासों को छोड़कर आबादी क्षेत्र में घुस जाते हैं, क्यों कि इन जीवों के क्षेत्र में तो आज मानव ने अपनी पैठ बना ली है। आखिर जंगली जानवर जायें तो जायें कहां ? आज वन्य जीवों के संरक्षण के उपाय भी नाकाफी हैं।आज वन्यजीवों की सुरक्षा और भोजन-पानी की व्यवस्था के लिए भी सरकार की ओर से बजट की व्यवस्था तो की जाती है लेकिन वह नाकाफी होती है। यह विडंबना ही है कि आज कहीं पर कोई घटना होने पर वन्यजीवों को बचाने के लिए भी वन विभाग के पास विशेष साधन, उपकरण आदि उपलब्ध नहीं है।

आज राजस्थान राज्य के विभिन्न वन्य क्षेत्रों में कई जगहों पर खनन गतिविधियां बढ़ती जाने से यहां वनस्पति व वन्य जीवों को लगातार नुकसान पहुंच रहा है। खनन से पर्यावरण प्रदूषण भी लगातार हो रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज मानवीकृत गतिविधियों के कारण वन्यजीवों का स्वच्छंद विचरण भी प्रभावित हुआ है। आज वनों में आगजनी(दावानल) की घटनाएं व लकड़ियों की कटाई से वन क्षेत्र लगातार सिकुड़ता/सिमटता जा रहा है। इससे जैव-विविधता पर भी कहीं न कहीं खतरा उत्पन्न होने की आशंका भी है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज मानव अपने स्वार्थ और लालच के चलते अपने अधिवास की तो व्यवस्था कर रहा है, खुद तो विलासितापूर्ण जीवन जीना चाहता है लेकिन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जंगली जानवरों के अधिवास छीन रहा है। आज जंगली जानवर मानव आबादी के बीच नहीं आए हैं। स्वयं मानव ने अपने स्वार्थ और लालच के चलते जंगल और पहाड़ों की दुनिया, प्रकृति में अपना पुरजोर हस्तक्षेप किया है। मानव आज जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास में घुस चुका है। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि वन्यजीव और जंगल के साथ ही साथ मानव का भी अस्तित्व एक दूसरे से जुड़ा हुआ है।

प्रकृति का अपना एक चक्र व व्यवस्था है, जिसे मानव अपने स्वार्थ और लालच के लिए अव्यवस्थित कर रहा है। आदमी ग़र जंगली जानवरों से जंगल छीनेंगे तो ये प्रकृति हमारा चैन छीन लेगी। हमें यह चाहिए कि हम अपने लालच और स्वार्थ से परे वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए वन्य क्षेत्रों की व वन्य जीवों की रक्षा-सुरक्षा करें, शिकार आदि पर प्रतिबंध लगाए, सख्त कानून बनाएं। सरकार को यह चाहिए कि वह अभयारण्यों के निर्माण के साथ ही प्रकृति में उद्देश्यों की हर हाल व परिस्थितियों में रक्षा करे, बजट की भी समुचित व्यवस्था की जाए। आबादी क्षेत्रों में सुरक्षा के लिए चारदीवारी, तारबंदी (फेंसिंग) सहित अन्य व्यवस्थाएं करें। हमें यह याद रखना चाहिए कि वन्य जीवों का संरक्षण भी पेड़ों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा जितना ही महत्वपूर्ण व जरूरी है।

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