खूब बरसेगा मानसून, जल-नियोजन जरूरी !खूब बरसेगा मानसून, जल-नियोजन जरूरी !

खूब बरसेगा मानसून, जल-नियोजन जरूरी !

सुनील कुमार महला

हाल ही में आईएमडी (भारतीय मौसम विभाग) ने यह जानकारी दी है कि इस बार देश में जमकर बारिश होगी। आईएमडी का अनुमान है कि इस बार मानसून में औसत से 105% अधिक बारिश होगी।मौसम विभाग की ओर से ये भविष्यवाणी ऐसे समय में आई है जब देश के कई हिस्से भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं।हालांकि,लद्दाख, पूर्वोत्तर और तमिलनाडु में कम बारिश की संभावना बताई गई है।

दरअसल, अल-नीनो और इंडियन ओशियन डाइपोल स्थितियां सामान्य रहने की उम्मीद जताई गई है, जिससे अच्छी बारिश होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो मानसून के दौरान अल नीनो की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि जून-सितम्बर के दौरान 105% बरसात हो सकती है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अल नीनो, भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र के पानी का गर्म होना है। वास्तव में यह एक प्राकृतिक घटना है, जिससे दुनिया के कई हिस्सों में मौसम का पैटर्न बदल जाता है।

यह अल नीनो ही होता है जिसकी वजह से धरती पर गर्म तापमान, सूखा, और तूफ़ान जैसी समस्याएं आती हैं। अल-नीनो के कारण मौसम संबंधी आपदाओं में तीव्रता आ सकती है। वहीं पर यदि हम इंडियन ओशियन डाइपोल स्थितियों यानी कि हिंद महासागर द्विध्रुव(आईओडी) की बात करें तो यह एक जलवायु पैटर्न है, जिसमें हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों के बीच समुद्र के तापमान में उतार-चढ़ाव होता है। वास्तव में,इस घटना में, हिंद महासागर के पश्चिमी हिस्से में गर्म पानी और पूर्वी हिस्से में ठंडा पानी होता है।

पाठकों को बताता चलूं कि इसे इंडियन नीनो भी कहा जाता है। वास्तव में, भारतीय उपमहाद्वीप में सामान्य से कम मानसूनी बारिश से जुड़ी अल-नीनो की स्थितियां इस बार विकसित होने की संभावना नहीं हैं। पाठकों को बताता चलूं कि देश के विभिन्न हिस्से फिलहाल भीषण गरमी से जूझ रहे हैं, और उत्तर भारत में तो तापमान अभी से ही यानी कि अप्रैल माह में ही 42 से 45 तक पहुंच गया है। इसी बीच, अप्रैल अंत से जून-2025 के दौरान भीषण गरमी पड़ने का अनुमान जताया गया है, जिससे बिजली ग्रिडों पर अच्छा-खासा दबाव पड़ सकता है और पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि भारत विश्व का एक बड़ा कृषि प्रधान देश है और यहां की कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा जाता है।गौरतलब है कि भारत में मानसून आमतौर पर 1 जून के आसपास केरल के दक्षिणी सिरे पर आता है। यह मध्य सितंबर में वापस चला जाता है। बहरहाल, भारतीय कृषि को मानसून का जुआ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि मानसून की अनिश्चितता के कारण यहां की फ़सलें खराब हो जाती हैं। इससे उत्पादन कम हो जाता है और हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है।

मानसून जल निकायों को भी काफी हद तक प्रभावित करता है। मानसून से जुड़े खतरों की यदि हम यहां बात करें तो इससे ओलावृष्टि, चक्रवात, सुखांड, लू, अनावृष्टि, अतिवृष्टि और शीतलहर जैसे प्रचंड मौसम के कारण फसल उत्पादन में हर साल काफी क्षति होती है। वास्तव में, हमारे देश में कृषि क्षेत्र के लिए मानसून बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो देश की लगभग 42.3% आबादी की जीविका का आधार है। गौरतलब है कि देश की जीडीपी(सकल घरेलू उत्पाद) में कृषि का योगदान 18.2% होता है।

यहां पाठकों को बताता चलूं कि जीडीपी किसी देश में किसी निश्चित अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य होता है तथा यह किसी देश की अर्थव्यवस्था के आकार और स्वास्थ्य का एक माप है। बहरहाल, हमारे देश में कुल खेती योग्य क्षेत्र का आधे से ज्यादा यानी कि लगभग 52% हिस्सा वर्षा आधारित प्रणाली पर निर्भर है। यह देशभर में पीने के पानी और बिजली उत्पादन के लिए जलाशयों को भरने के लिए भी महत्वपूर्ण है। बहरहाल, इस बार मानसून किसानों के लिए राहत और उम्मीदें लेकर आ रहा है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि इस वर्ष जून से सितंबर के बीच देश में औसत से तीन फीसदी ज्यादा बारिश होने का अनुमान है।

गौरतलब है कि भारत में औसत बारिश 868.6 मिमी होती है और इस साल यानी कि वर्ष 2025 में करीब 895 मिमी बारिश हो सकती है। आईएमडी के अनुसार  2025 में 105 फीसदी यानी 87 सेंटीमीटर बारिश हो सकती है।अनुमान लगाया गया है कि इस बार उत्तर भारत में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और यूपी(उत्तर प्रदेश) में मानसून समय पर पहुंचेगा। इतना ही नहीं, महाराष्ट्र व मध्य भारत में मराठवाड़ा, विदर्भ में भी अच्छी बारिश की संभावना जताई गई है। गौरतलब है कि साल 2023 में अल-नीनो की वजह से बारिश में कमी देखने को मिली थी, लेकिन इस साल(वर्ष 2025) वैश्विक जलवायु संकेतकों में सुधार देखने को मिल रहा है।

यदि इस साल भारत में अच्छी बारिश का यह अनुमान सटीक निकलता है तो कहना ग़लत नहीं होगा कि इससे भारतीय किसानों को खेती में अभूतपूर्व लाभ मिल सकेंगे। मसलन, वे समय पर बुवाई कर सकेंगे तथा इसके साथ ही किसानों की सिंचाई पर निर्भरता भी घटेगी और खेती की लागत में भी कमी आएगी। खरीफ फसलों विशेषकर धान, मक्का, सोयाबीन, कपास आदि की पैदावार बेहतर होने की उम्मीद है।

इतना ही नहीं, खेतों में नमी रहने से रबी(गेहूं, जौ, मटर, चना, सरसों, अलसी, मसूर, आलू आदि)की भी अच्छी फसल होगी जिससे महंगाई घटने की उम्मीद है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि बारिश के फायदे और नुकसान दोनों ही हैं। मसलन बारिश के फायदों की अगर बात करें तो बारिश से नदियों, झीलों, और जलभृतों का जलस्तर बढ़ता है और पेड़-पौधों और वनस्पतियों को फायदा पहुंचता है।

बारिश से हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर के लिए पानी की कमी पूरी होती है। बारिश का नुक़सान यह है कि यदि थोड़े समय में जबरदस्त बारिश हो जाती है, तो इससे बाढ़ जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। हालांकि, यह मानसून खरीफ की फसल के मुनाफिक होता है। अत्यधिक वर्षा के कारण आने वाली विपदाओं से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। महानगरों में निचले स्थानों पर जलभराव की समस्याएं पैदा हो जातीं हैं, क्यों कि नगर नियोजन ठीक नहीं है।

अधिक बारिश के कारण बहुत बार कच्चे घर/झोपड़े और जानवर बह जाते हैं। पक्षियों को भी खास परेशानी होती है और खेतों में खड़ी फसलों को जबरदस्त नुकसान पहुंचता है।बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि बीते साल यानी कि वर्ष 2024 में जून-सितम्बर के दौरान रिकॉर्ड औसतन 8% अधिक बारिश हुई थी। यहां पाठकों को बताता चलूं कि एक शोध में पाया गया कि पिछले कुछ समय में मानसून की तीव्रता में अच्छी-खासी दीर्घकालिक वृद्धि हुई है, जो पश्चिमी घाट और आसपास के क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं को बढ़ाने में योगदान दे रही है।

उदाहरण के लिए, 2018 और 2019 में वायनाड और कोडागु में आए विनाशकारी भूस्खलन व बाढ़ को इसी का परिणाम बताया गया है। अध्ययन बताते हैं कि पिछले 800 वर्षों में पश्चिमी घाट में मानसून की तीव्रता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वास्तव में, इसकी वजह जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है।बहरहाल, यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि मौसम विभाग ने यह भी कहा है कि इस साल हीटवेव के दिन बढ़ेंगे। यानी 40 फीसदी से ज्यादा तापमान वाले दिनों की संख्या पहले से ज्यादा होगी।

ध्यातव्य है कि इस साल अप्रैल के महीने में ही हीटवेव शुरू हो चुकी है। अंत में यही कहूंगा कि मौसम विभाग की भविष्यवाणियों में केवल 4% की त्रुटि होती है, इसलिए अधिक बारिश से सतर्क रहने की भी आवश्यकता महत्ती है। इससे पहले कि देश में अधिक बारिश की परिस्थितियां बनें, हमें यह चाहिए कि हम बरसाती जल का उचित संरक्षण और भंडारण करने की ओर अभी से पर्याप्त ध्यान दें और इसके लिए पूर्व-प्लानिंग करें।

हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि वर्षा जल संचयन से पानी की आपूर्ति पर पड़ने वाला बोझ कम होता है तथा इससे जहां एक ओर बिजली बिल व मृदा अपरदन में कमी आती है, वहीं जल-संचयन से पीने योग्य पानी, सिंचाई आदि की आवश्यकताओं की भी पूर्ति होती है।

फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

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