दीपावली की रात बेबस सुप्रीम कोर्ट हांफता रहादीपावली की रात बेबस सुप्रीम कोर्ट हांफता रहा

पंकज चतुर्वेदी

अमावस की गहरी अंधियारी रात में इंसान को बेहतर आवोहवा देने की सुप्रीम कोर्ट की उम्मीदों का दीप खुद ही इंसान ने बुझा दिया। 31 अक्तूबर की रात आठ बजे बाद जैसे-जैसे रात गहरी हो रही थी, केंद्र सरकार द्वारा संचालित सिस्टम- एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग  एंड रिसर्च अर्थात सफर के एप पर  दिल्ली एनसीआर के का एआईक्यू अर्थात एयर क्वालिटि इंडेक्स  खराब से सबसे खराब के हालात में आ रहा था।  गाजियाबाद में तो हालात गैस चैंबर के थे, यहां पीएम 2।5 और 10 का स्तर 700 के पार था। कार्बन डाय आक्साईड  400से अधिक लेकिन आधी रात तक  पूरी तरह पाबंद पटाखे, जैसे लड़ी वाले, आकाश में जा कर धमाके से फटने वाले बेरियम के कारण बहुरंगी सभी धड़ल्ले  से चलते रहे। इस बात की नाफरमानी सरेआम रही कि रात दस बजे बाद  आतिशबाजी का शोर न हो । उल्टा दस बजे बाद यह धमाके और बढ़ गए । कह सकते हैं कि इस बार दिल्ली में तो आतिशबाजी मिल नहीं रही थी लेकिन उससे ठीक सटे  एनसीआर के यूपी-हरियाणा के शहरों में  तो पटाखे होम डिलेवरी पर उपलब्ध थे । आतिशबाजी चला कर सुप्रीम कोर्ट  को नीचा दिखाने वालों की संख्या पिछले साल की तुलना में इस बार बढ़ गई और उनके पाप आवोहवा के जहरीला बनाने के लिए पर्याप्त था। उनकी इस हरकत से लाखों  वे लोग भी घुटते रहे जो आतिशबाजी से तौबा कर चुके है। रात नौ बजे तक तो गहरा स्माग छाया था और सड़क पर वाहनों को फोग  लाईट जला कर चलना पड़ रहा था।  यही नहीं सुबह मुहल्लों की सड़के-गलियां  आतिशबाजी से बचे कचरे से पटी हुई थीं और स्वच्छता अभियान में हमारी कितनी आस्था है उसकी बानगी थीं।

साफ हो गया कि बीते सालों की तुलना में इस बार दीपावली की रात का जहर कुछ कम नहीं हुआ, कानून के भय सामाजिक अपील सबकुछ पर सरकार ने खूब खर्चा किया लेकिन भारी-भरकम मेडिकल बिल देने को राजी समाज ने सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भी समय, आवाज की कोई भी सीमा नहीं मानी । दुर्भाग्य यह है कि  जब देश के प्रधानमंत्री  शून्य  कार्बन उत्सर्जन जैसा वादा अंतर्राष्ट्रीय  समुदाय के सामने कर रहे है, तब  एक कुरीति के चलते देश की राजधानी सहित समूचे देश में वह सबकुछ हुआ जिस पर पाबंदी है और उस पर रोक के लिए ना ही पुलिस और ना ही अन्य कोई निकाय मैदान में दिखा।

दिल्ली से सटे गाजियाबाद के स्थानीय निकाय का कहना है कि केवल एक रात में पटाखों के कारण दो सौ टन अतिरिक्त कचरा निकला।  यह भी जान लें कि यहां कूड़े के निबटान के लिए उसे जलाना आम बात है । जाहिर है कि अभी सांसों के दमन का अंत नहीं हैं। दीपावली की रात यहां की कुछ मध्यवर्ग व शिक्षित लोगों की बस्तियों जैसे  वसुंधरा, वैशाली, राजेन्द्र नगर में हवा की गुणवत्ता दर्शाने वाले उपकरणों की ही सीमा समाप्त हो गई । रात ग्यारह बजे बाद हल्की ओस शुरू  हुई और स्मॉग से  दम घुंटने लगा । स्मॉग यानि फॉग यानि कोहरा और स्मोक यानि धुआं का मिश्रण। इसमें जहरीले कण शामिल होते हैं जो कि भारी होने के कारण उपर उठ नहीं पाते व इंसान की पहुंच वाले वायुमंडल में ही रह जाते हैं। जब इंसान सांस लेता है तो ये फैंफड़े में पहुच जाते हैं। किस तरह दमे और सांस की बीमारी के मरीज बेहाल रहे, कई हजार लोग ब्लड प्रेशर व हार्ट अटैक की चपेट में आए- इसके किस्से हर कस्बे, शहर में हैं।

इस बार एनसीआर में आतिशबाजी की दुकानों की अनुमति नहीं थी। यहां तक कि ग्रेप  पीरियेड होने के कारण  ग्रीन आतिशबाजी की भी अनुमति नहीं थी, जहां थी वह भी केवल आठ बजे से दस बजे तक। परंतु ना प्रशासन ने अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाई और ना ही पटाखेबाजों ने अपनी सामजिक जिम्मेदारी। केवल एक रात में पूरे देश में हवा इतनी जहर हो गई कि 68 करोड़ लोगों की जिंदगी तीन साल कम हो गई। अकेले दिल्ली में 300 से ज्यादा जगह आग लगी व पूरे देश में आतिशबाजी के कारण लगी आग की घटनाओं की संख्या हजारों में हैं। इसका आंकड़ा रखने की कोई व्यवस्था ही नहीं है कि कितने लेग आतिशबाजी के धुंए से हुई घुटन के कारण अस्पताल गए। दीपावली की रात प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी व देश के लिए अनिवार्य ‘‘स्वच्छता अभियान’’ की दुर्गति देशभर की सड़कों पर देखी गई।

दीपावली की अतिशबाजी ने राजधानी दिल्ली की आवोहवा को इतना जहरीला कर दिया गया कि बाकायदा एक सरकारी सलाह जारी की गई थी कि यदि जरूरी ना हो तो घर से ना निकलें। फैंफडों को जहर से भर कर अस्थमा व कैंसर जैसी बीमारी देने वाले पीएम यानि पार्टिक्यूलर मैटर अर्थात हवा में मौजूद छोटे कणों की निर्धारित सीमा 60 से 100 माईक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि दीपावली के बाद यह सीमा कई जगह एक हजार  के पार तक हो गई। ठीक यही हाल ना केवल देश के अन्य महानगरों के बल्कि प्रदेशों  की राजधानी व मंझोले शहरों के भी थे । सनद रहे कि पटाखें जलाने से निकले धुंए में सल्फर डाय आक्साईड, नाईट्रोजन डाय आक्साईड, कार्बन मोनो आक्साईड, शीशा , आर्सेनिक, बेंजीन, अमोनिया जैसे कई जहर सांसों के जरिये शरीर में घुलते हैं। इनका कुप्रभाव परिवेश में मौजूद पशु-पक्षियों पर भी होता है। यही नहीं इससे उपजा करोड़ों टन कचरे का निबटान भी बड़ी समस्या है। यदि इसे जलाया जाए तो भयानक वायु प्रदुषण  होता है। यदि इसके कागज वाले हिस्से को रिसाईकल किया जाए तो भी जहर घर, प्रकृति में आता है। और यदि इसे डंपिंग में यूं ही पड़ा रहने दिया जाए तो इसके विशैले  कण जमीन में जज्ब हो कर भूजल व जमीन को स्थाई व लाईलाज स्तर पर जहरीला कर देते हैं। आतिशबाजी से उपजे शोर  के घातक परिणाम तो हर साल बच्चे, बूढ़े व बीमार लोग भुगतते ही हैं।

हालांकि यह सरकार व समाज देनें को भलीभांति जानकारी थी  कि रात 10 बजे के बाद पटाखे चलाना अपराध है। कार्रवाई होने पर छह माह की सजा भी हो सकती है। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2005 में दिया था जो अब अब कानून की शक्ल ले चुका है। 1998 में दायर की गई एक जनहित याचिका और 2005 में लगाई गई सिविल अपील का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे। 18 जुलाई 2005 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायमूर्ति आरसी लाहोटी और न्यायमूर्ति अशोक शर्मा ने बढ़ते शोर की रोकथाम के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारों की आड़ में दूसरों को तकलीफ पहुंचाने, पर्यावरण को नुकसान करने की अनुमति नहीं देते हुए पुराने नियमों को और अधिक स्पष्ट किया, ताकि कानूनी कार्रवाई में कोई भ्रम न हो। अगर कोई ध्वनि प्रदूषण या सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त निर्देशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ भादंवि की धारा 268, 290, 291 के तहत कार्रवाई होगी। इसमें छह माह का कारावास और जुर्माने का प्रावधान है। पुलिस विभाग में हेड कांस्टेबल से लेकर वरिष्ठतम अधिकारी को ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्रवाई का अधिकार है। इसके साथ ही प्रशासन के मजिस्ट्रियल अधिकारी भी कार्रवाई कर सकते हैं। विडंबना है कि इस बार  रात एक बजे तक जम कर पटाखें बजे, ध्वनि के डेसीमल को नापने की तो किसी को परवाह थी ही नहीं, इसकी भी चिंता नहीं थी कि ये धमाके व धुआं अस्पताल, रिहाईशी इलाकों या अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में बेरोकटोक किए जाते रहे ।

यह जानना जरूरी है कि दीपावली असल में प्रकृति पूजा का पर्व है, यह समृद्धि के आगमन और पशु धन के सम्मान का प्रतीक है । यह देश की सांस्कृतिक  पहचान है । इसका थोथे राष्ट्रवाद  और धार्मिकता से भी कोई ताल्लुक नहीं है। यह गैरकानूनी व मानव-द्रोही कदम है। यदि वास्तव में सुप्रीम कोर्ट को अब अपने आदेशों का क्रियान्वयन करवाना है तो अब उसे ऐसे जिले के आला आफसरें पर कड़ी कार्यवाही करना होगा जिनके यहां आतिशबाजी के धमाकों  ने कानून की धज्जियां उडाई हैं। वैसे पर्यावरण  और इंसान का स्वास्थ्य  स्वयं नागरिक की जिम्मेदारी भी है ।