राष्ट्रपति भवन, दिल्ली। चकाचौंध वाले बड़े से परिसर में पद्म पुरस्कार दिए जाने थे। दमकते कपड़ों से सजे लोगों के बीच- साधारण सी साड़ी पहने, नंगे पैर एक बुजुर्ग महिला वहां बैठी थी । सभी की निगाह उन पर थी लेकिन वे सभी को आश्चर्य से देख रही थी। उनकी आँखें बता रही थी कि वे खुद से पूछ रही थीं कि आखिर उन्हें यहाँ क्यों बुलाया ? प्रधानमंत्री जी  से ले कर सभी लोग उन्हें झुक कर नमस्ते करते और कहते-वृक्षम्मा। कर्नाटक के छोटे से गाँव से आई थिमक्का बीते सालों की यादों में खो गई।

याद आया उस दिन वे बहुत निराश थीं- 40 साल की उम्र हो गई। कोई बच्चे नहीं हुए। निराश थीं, समाज  ताने देता, मन किया कि ऐसे क्या जीना ?

एक सुबह मैनें अपने पति को साथ लिया। कुछ बरगद के पेड़ लगाए। मैंने अपने पति के साथ मिल कर पहले साल चार कि॰मी॰ तक सड़क के दोनों ओर 10 बरगद के पौधे लगाए। अपने बच्चों की तरह ही पौधों की देखभाल की। हर साल इन पेड़ों की गिनती बढ़ती गई। जब किसी ने कहा कि हम आठ हज़ार पेड़ लगा चुके हैं तो भरोसा नहीं हुआ।  असल में हमारे यहाँ बरगद के पेड़ उगाना चुनौतीपूर्ण था,क्योंकि हमारे यहाँ जमीन में नमी कम है। अचानक उनका नाम पुकारा गया। वे झुकीं कमर के साथ मंच पर पहुँचीं। राष्ट्रपति ने उन्हें सम्मानित किया। यह बात 2019 की है। उसके बाद 2020 में इन्हे  केंद्रीय विश्‍वविद्यालय कर्नाटक की ओर से मानक डॉक्‍टरेट की उपाधि से सम्‍मानित किया गया। सन 2022  में कर्नाटक सरकार ने उन्हें 111 वर्ष की उम्र में कैबिनेट मंत्री के बराबर पद दिया।

पंकज चतुर्वेदी