पंकज चतुर्वेदी
इस बार तो मार्च के दूसरे हफ्ते में ही झारखंड, ओडिसा से ले कर मुंबई तक तापमान 40 के पार गया और हवा जानलेवा लू में बदलने लगी । विभिन्न राज्य सरकारों ने लू को ले कर चेतावनी और तैयारी के पत्र जारी किए हैं लेकिन उनमें लू लगने के बाद इलाज के लिए अस्पताल में व्यवस्था आदि पर ज्यादा जोर है । लू अर्थात हीट वेव से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर इससे निपटने के लिए कार्य योजना बनाने को कहा है। हालांकि इस तरह की योजना हर साल बनती हैं इसके बावजूद लोगों की जानें जाती हैं।
हाल ही में केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की एक स्थाई समिति ने एक विस्टर्ट रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि नई उभरती आपदाओं में लू को भी शामिल किया जाए । श्री राधा मोहन दास के अध्यक्षता में 31 सांसदों की इस समिति ने बता कि सन 2013 के बाद दस सालों में 10635 लोग लू से मारे गए और अब इसका असर व्यापक होता जा रहा है । 2020 से 2022 के बीच देश में हीट स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों में वृद्धि हुई और संख्या 530 से 730 हो गई। एनडीएमए के अनुसार, 2024 के हीट स्ट्रोक से मौत के मामलों में 269 संदिग्ध थे तो 161 मामलों में ही पुष्टि हो पाई थी।
जान लें लू केवल इंसान के लिए शारीरिक संकट ही नहीं है, बल्कि निम्न ये वर्ग, खुले में काम करने वाले, जैसे- यातायात पुलिस, गिग- वर्कर, रेहड़ी-रिक्शा खींचने वाले आदि के साथ साथ किसान और मजदूर के लिए सामाजिक-आर्थिक रूप से भी विपरीत प्रभाव डालती है
लू अर्थात हीट वेव आमतौर पर रुकी हुई हवा की वजह से होती है। उच्च दबाव प्रणाली हवा को नीचे की ओर ले जाती है। यह शक्ति जमीन के पास हवा को बढ़ने से रोकती है। नीचे बहती हुई हवा एक टोपी की तरह काम करती है। यह गर्म हवा को एक जगह पर जमा कर लेती है। हवा के चले बिना, बारिश नहीं हो सकती है, गर्म हवा को और गर्म होने से रोकने के लिए कोई उपाय नहीं होता है। इन्सान का शारीर का औसत तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है ।
जब बाहर तापमान 40 से अधिक हो और हवा में बिलकुल नमी नहीं हो तो यह घातक लू में बदल जाती है । शरीर का तापमान बढ़ने से शरीर का पानी चुकने लगता है और इसी से चक्कर आना, कोमा में चले जाना, बुखार, पेट दर्द, मितली आदि के रूप में लू इन्सान को बीमार करती है। शरीर में पानी की मात्र कम होने अर्थात डीहाएड्रेशन से मौत होती हैं।
कोइ पाँच साल पहले भारत सरकार के केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय तैयार पहली “जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट” में आगाह किया गया है था कि 2100 के अंत तक, भारत में गर्मियों (अप्रैल-जून) में चलने वाली लू या गर्म हवाएं 3 से 4 गुना अधिक हो सकती हैं | इनकी औसत अवधि भी दुगनी होने का अनुमान है वैसे तो लू का असर सारे देश में ही बढेगा लेकिन घनी आबादी वाले भारत-गंगा नदी बेसिन के इलाकों में इसकी मार ज्यादा तीखी होगी ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मियों में मानसून के मौसम के दौरान सन 1951-1980 की अवधि की तुलना में वर्ष 1981–2011 के दौरान 27 प्रतिशत अधिक दिन सूखे दर्ज किये गए | इसमें चेताया गया है कि बीते छः दशक के दौरान बढती गर्मी और मानसून में कम बरसात के चलते देश में सुखा-ग्रस्त इलाकों में इजाफा हो रहा है | खासकर मध्य भारत, दक्षिण-पश्चिमी तट, दक्षिणी प्रायद्वीप और उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्रों में औसतन प्रति दशक दो से अधिक अल्प वर्षा और सूखे दर्ज किये गए |
यह चिंताजनक है कि सूखे से प्रभावित क्षेत्र में प्रति दशक 1। 3 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है । रिपोर्ट में संभावना जताई है कि जलवायु परिवर्तन की मार के चलते ना केवल सूखे की मार का इलाका बढेगा, बल्कि अल्प वर्षा की आवर्ती में भी औसतन वृद्धि हो सकती है ।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से तैयार जलवायु पारदर्शिता रिपोर्ट -2022 के अनुसार वर्ष 2021 में भीषण गर्मी के चलते भारत में सेवा, विनिर्माण, खेती और निर्माण क्षेत्रों में लगभग 13 लाख करोड़ का नुक्सान हुआ , रिपोर्ट कहती है कि गर्मी बढ़ने के प्रभाव के चलते 167 अरब घंटे संभावित श्रम का नुक्सान हुआ जो सन 1999 के मुकाबले 39 प्रतिशत अधिक है । इस रिपोर्ट के अनुसार तापमान में डेढ़ फीसदी इजाफा होने पर बाढ़ से हर साल होने वाला नुक्सना 49 प्रतिशत बढ़ सकता है ।
वहीं चक्रवात से होने वाली तबाही में भी इजाफा होगा । लेंसेट काउंट डाउन की रिपोर्ट कहती है कि भारत में -2000-2004 और2017 – 21 के बीच भीषण गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या में 55 प्रतिशत का उछाल आया है । खासकर लू बढ़ रही है । बढ़ते तापमान से स्वास्थ्य प्रणाली पर हानिकारक असर हो रहा है । मार्च-24 में संयुक्त राष्ट्र के खाध्य और कृषि संगठन (एफ ए ओ ) ने भारत में एक लाख लोगों के बीच सर्वे कर एक रिपोर्ट में बताया है कि गर्मी/लू के कारण गरीब परिवारों को अमीरों की तुलना में पाँच फीसदी अधिक आर्थिक नुकसान होगा। चूंकि आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग बढ़ते तापमान के अनुरूप अपने कार्य को ढाल लेते हैं , जबकि गरीब ऐसा नहीं कर पाते ।
इतनी सारी रिपोर्ट और चेतवाणियाँ होने के बावजूद अभी तक हम आखिर कोई माकूल कार्य योजना क्यों नहीं बना पाए । अहमदाबाद नगर निगम में सन 2013 में ही , अपने सभी बड़ी बाग –बगीचे दिन में एक से पाँच बजे तक रेहड़ी,पटरी वालों और अन्य खुले में काम करने वालों के लिए खोल दिए । इससे खुले में काम करने वालों को लू के चरम प्रभाव वाले समय में बेहतर परिवेश में पेड़ों के छाँव में रहने का अवसर मिल जाता है । हाल ही में मुंबई में भी सड़क पर व्यवसाय करने वालों ने ऐसे ही पार्क खोलने की मांग की है ।
यह एक छोटा सा प्रयोग है जिसमें बगैर किसी अतिरिक्त खर्च के , मौजूदा संरचना में लू की मार से बचने का सशक्त उपाय दिया । उड़ीसा के कुछ शहरों में ट्राफिक की रेड लाइट पर हरा पारदर्शी शेड लगाया गया , जिससे दुपहिया वालों को कुछ राहत मिली । सार्वजनिक पायाऊ अधिक से अधिक खोलना लू को बड़ी टक्कर दे सकता है ।
यह तय है कि जिस तरह से मौसम का मिजाज बदल रहा है उसके कारण मौसम का अनियमित और चरम स्वरुप, तापमान में वृद्धि को झेलना ही है , गौर करने वाली बात है कि जिन इलाकों में लू से मौत हो रही हैं, वहां गंगा और अन्य विशाल जल निधियों का जाल है । इसके बावजूद वहां लू की मार है । एक तो इन इलाकों में हरियाली कम हो रही है , दूसरा तालाब, छोटी नदियाँ, सरिता जैसी जल निधियां या तो उथली हैं या फिर लुप्त हो गई है। कंक्रीट के सम्रझ ने भी गर्म हवाओं की घातकता को बढ़े है ।
यदि लू के प्रकोप से बचना है तो एक तरफ तो क़स्बा- ग्राम स्तर पर परिवेश को पर्यावरण अनुकूल बनाने के प्रयास करने होंगे, दूसरा सरकारी या खेत में काम के समय को सुबह दस बजे तक और फिर शाम को पांच बजे से करने की योजना बनानी होगी। सबसे बड़ी बात मेहनतकश और खुले में काम करने के लिए मजबूर लोगों के लिए शेड , पंखे यदि कि व्यवस्था के साथ-साथ बेहतर स्वास्थ्य सेवा की योजना जरूरी है ।