बढ़ती उम्र के साथ बढ़ती बीमारियाँ
पंकज चतुर्वेदी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़े बताते हैं कि बीते पाँच दशकों के दौरान भारत में इंसान की औसत उम्र यानि जीवन प्रत्याशा में 22 साल का इजाफा हुआ और यह 70.42 साल हो गई । इसी के साथ चिंता की बात यह है कि आम आदमी का दवाई और अस्पताल का खर्च बढ़ता जा रहा हैं । सबसे बड़ी बात अधिकांश बीमारियाँ जीवन शैली से जुड़ी हैं जिनमें खान-पान की अनियमितता या गुणवत्ता से उपजे रोग सर्वाधिक हैं । चिंता की बात है कि देश के 35 फीसदी युवा पीढ़ी उच्च रक्तचाप, तनाव और मधुमेह जैसे रोगों के शिकार हो रहे हैं ।
कोविड के समय देखने को मिला कि जान गँवाने वाले आधे से अधिक लोग ऐसी ही जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों के पहले से शिकार थे । प्रसिद्ध चिकित्सा शोध पत्रिका की एक रिपोर्ट कहती हैं कि सारी दुनिया में हर साल एक करोड़ लोगों का जीवन अस्वास्थ्यकर भोजन के कारण खतरे में पड़ता है और इसमें भारत में अत्यधिक स्टार्च और चीनी के कारण बड़ा संकट है । अशुद्ध खानपान से हमारे देश में लगभग 4 लाख 20 हजार लोगों की जान चली जाती है। खाना बनाने में मिलावट, असुरक्षित खाना और खराब गुणवत्ता के कारण फूड पॉइजनिंग, डायरिया, स्टमक फ्लू और अन्य गंभीर बीमारियां मौत और अस्पताल खर्चों का बड़ा कारण हैं ।
बीते एक दशक के दौरान भारत में घर से बाहर खाने , सड़क के किनारे स्नेक्स या पेय पदार्थ लेने का चलन बढ़ा है । सोशल मीडिया पर सड़क पर बिकने वाले खानों की तारीफ के हजारों चैनल हैं और इनको देख कर स्वाद-परीक्षा करने वाले करोड़ों में । हाल ही में केंद्र सरकार ने मोटापा के खिलाफ एक अभियान शुरू किया है जिसमें भोजन में तेल, चीनी और नमक की मात्रा कम करने पर जोर दिया जा रहा है । जरूरी यह भी है कि भोजन बेचने वाले छोटे-बड़े स्थानों पर खाना बनाने की सामग्री की गुणवत्ता , रसोई-स्थल की साफ सफाई और भोजन परोसने के तरीकों और बर्तनों के प्रति सतर्कता की दिशा में जागरूकता और कार्य किया जाए । सबसे बड़ी बात हमारा भोजन सीधे सीधे खेती से जुड़ा है और यह भोजन चक्र पानी के व्यय और उपलब्धता पर असर डालता है ।
“लैंसेट” का शोध बताता है की बीमारियों का बोझ बढ़ाने वाले 11 मुख्य कारकों में छः आहार संबंधी हैं । जान आकर आश्चर्य होगा की अब बड़ी आबादी पेट भरने के बनिस्पत स्वाद और फेशन के लिए बहुत सा आहार ले रही हैं जिसका असर साबुत अनाज, फल-सब्जी और देरी उत्पाद के साथ साथ मांसाहार पर भी दिखता है । विटामिन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा भोजन में कम हो रही है , वहीं गैरजरूरी वसा और कार्बोहाएड्रेड बढ़ रहा है , जिससे मोटापा और उसके साथ की रोग शरीर में घर बना रहे हैं।
फ्रंटियर्स इन न्यूट्रीशन’ नाम की पत्रिका में छपी एक एक बड़ी रिसर्च बताती है कि जो लोग ऐसी चीजें खाते हैं जिनसे शरीर में सूजन बढ़ती है (जैसे तली-भुनी और प्रोसेस्ड चीजें), उनमें लिवर की गंभीर बीमारी होने का खतरा 16% ज्यादा रहता है, जिसमें क्रोनिक लिवर डिजीज (सीएलडी) शामिल है। इसके उलट, मेडिटेरेनियन डाइट और अच्छा पोषण वाला खाना खाने वालों में यह खतरा कम हो जाता है। लिवर ट्रांसप्लांटेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. संजीव सैगल कहते हैं, “करीब 50 प्रतिशत लिवर की बीमारियां सिर्फ खाना सुधारने से रोकी जा सकती हैं। शराब, प्रोसेस्ड फूड और आलसी जीवनशैली से लिवर को जो नुकसान होता है, वो सही खानपान से ठीक भी किया जा सकता है।”
कुछ साल पहले हैदराबाद के उस्मानीय मेडिकल कालेज की एक टीम ने शहर में एक सर्वे किया तो पता चला की स्ट्रीट फूड में मतवाले हैदराबादी असल में स्वाद के साथ जहर निगल रहे हैं । अध्ययन में पता चल की हर छठा हैदराबादी सड़क का खाना खाने के बाद बीमार पड़ता है। ऐसे 500 विक्रेताओं में से अधिकांश अस्वच्छ पानी का उपयोग करते हैं, और हाथ धोने जैसी बुनियादी स्वच्छता प्रथाओं का पालन नहीं करते। शहर में भेलपुरी के 45.3% नमूने आंतों को नुकसान पहुंचाने वाले वेकटेरिया से दूषित थे। चीनी फास्ट फूड तो जहर का दूसरा नाम पाया गया । इसके 90-92% नमूनों में बेसिलस सेरेयस पाया गया, जो खाद्य विषाक्तता का बड़ा कारण होता है ।
मुंबई में मेट्रापोलिस हेल्थकेर द्वारा किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि मुंबई के 88% सड़क खाद्य नमूने बैक्टीरिया से दूषित थे और 70 खाद्य नमूनों में से 61 में बैक्टीरिया पाए गए, जिनमें कोलीफॉर्म और फीकल स्ट्रेप्टोकोकस शामिल थे । पिछले साल दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अक्टूबर 2024 में हेपेटाइटिस ए के अचानक मामले बढ़ कर 50% तक पहुंच गए । इस पर हुए अध्ययन में 145 नमूनों में से 70 से अधिक लोग हेपेटाइटिस ए के शिकार पाए गए जिसका मुख्य कारण असुरक्षित भोजन और पानी का सेवन था ।
कुछ महानगर तो बस बानगी हैं शहर छोटा हो या कस्बा, सास , चटनी आदि का सेवन खतरे से खाली नहीं होता । फिर ऐसी रेहड़ियाँ नाले की किनारे होती हैं, जूठे डिस्पोजेबल वहीं पड़े होते हैं जिनमें आवारा पशु मुंह मारते हैं , पास में यातायात चलता रहता है और धूल उड़ती है । इस तरह का भोजन धीरे-धीरे शरीर को ऐसी बीमारियों के चपेट में पहुंचा देता हैं , जहां जेब में छेद होना और खाने में दवा की मात्रा जिंदगीभर के लिए जुड़ जाना आम बात हैं ।
भारत में सड़क का खाना सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण और मजबूरी भी है, बहुत से मेहनतकश लोगों की आर्थिक स्थिति और काम के हालत ऐसे नहीं होते कि समय पर, घर का भोजन कर सकें या फिर बाहर महंगे रेस्टोरेंट का बोझ उठाया सकें । लेकिन इसके सेवन से जुड़ी स्वास्थ्य जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उचित निगरानी, शिक्षा, और जागरूकता के माध्यम से इन जोखिमों को कम किया जा सकता है।