पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता और हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रख रहा राजसमंद का अनूठा गांव पिपलांत्री !पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता और हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रख रहा राजसमंद का अनूठा गांव पिपलांत्री !

सुनील कुमार महला

पेड़ हमारे पर्यावरण, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र,मानव व धरती के समस्त प्राणियों, वनस्पतियों को बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक है। कहना ग़लत नहीं होगा कि पेड़ जीवन का मुख्य आधार हैं। यही कारण भी है कि हमारी सनातन भारतीय संस्कृति में पेड़ों को युगों युगों से बहुत ही अहम् और महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यहां तक कि हमारे यहां तो पेड़ों की पूजा करने तक का प्रावधान रहा है।हिंदू धर्म में तो पीपल, बरगद, केला, और नीम जैसे पेड़ों को अत्यंत पवित्र माना गया है।

 हमारी सनातन भारतीय संस्कृति में तो यहां तक माना जाता है कि पेड़ों में मनुष्यों के समान चेतना होती है। सच तो यह है कि भारतीय संस्कृति में पेड़ों को अपने पुत्रों से बढ़कर माना गया है। पाठकों को बताता चलूं कि भारतीय संस्कृति को अरण्य अर्थात वृक्ष की संस्कृति भी कहा जाता है। बहरहाल, आज जंगल कम हो रहे हैं। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। विकास के नाम पर, शहरीकरण और औधोगिकीकरण के नाम पर वनों का अतिक्रमण हो रहा है।

हाल ही में आई केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 13,056 वर्ग किमी वन क्षेत्र पर अतिक्रमण हुआ है, जो दिल्ली के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक है, यह चिंताजनक है। जानकारी मिलती है कि मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 5,460.9 वर्ग किमी वन भूमि पर कब्जा है, जबकि 409 वर्ग किमी भूमि अतिक्रमण मुक्त की जा चुकी है।

कहना ग़लत नहीं होगा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंपी गई रिपोर्ट कहीं न कहीं देश में वनों के अतिक्रमण की भयावह स्थिति को उजागर करती है, लेकिन वहीं देश में कुछ ऐसे भी स्थान हैं,जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में देश और समाज के समक्ष एक मिसाल प्रस्तुत करते हैं। पाठकों को बताता चलूं कि राजस्थान के राजसमंद ज़िले का पिपलांत्री गांव,  पर्यावरण संरक्षण के साथ साथ ही लड़कियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है। जानकारी के अनुसार यहां हर नवजात बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाए जाते हैं और इस अनोखी पहल की वजह से यह गांव हमारे देश में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में मशहूर है।

गांव की खास बात यह है कि इस गांव में हर तरफ हरियाली नजर आती है तथा यह पहाड़ियों से घिरा हुआ है। बहुत कम ही लोगों को यह जानकारी होगी कि गौचर भूमि संरक्षण,जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण में इस गांव का स्थान विश्व में प्रमुखता से लिया जाता है। इस गांव में हजारों पेड़ लगाए गए हैं और यहां आप पक्षियों की चहचहाहट सुन सकते हैं। इस गांव में पेड़ों को भाई मानकर पेड़ों के राखी बांधने की परंपरा आज भी कायम है। कहना ग़लत नहीं होगा कि पिपलांत्री मॉडल हमारे देश व समाज ही नहीं अपितु पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है।

वास्तव में यह बालिकाओं को बचाने और हमारे पर्यावरण व पारिस्थितिकी की रक्षा की नींव पर निर्मित यह पर्यावरण-नारीवाद मॉडल कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। राजस्थान के इस गांव की कहानी वर्ष 2005 में राजस्थान के इस गांव के सरपंच (पिपलांत्री गांव के पूर्व सरपंच/पंचायत प्रमुख) श्री  श्याम सुंदर पालीवाल के साथ शुरू हुई। उन्होंने बालिकाओं को बचाने,जल संरक्षण करने तथा पेड़ लगाने का बीड़ा उठाया। उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्ष 2000 से पहले, पिपलांत्री गांव में

संगमरमर की खदानों और खदानों की भरमार थी, जैसा कि राजसमंद इनके लिए प्रसिद्ध रहा है। यहां पानी का स्तर 700- 800 फीट तक नीचे चला गया था और पीने तक के लिए पानी नहीं बचा था। गांव में सामान्य बुनियादी ढांचे(बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर) जैसे कि सड़क, सिंचाई और कृषि का अभाव था। श्री पालीवाल को वर्ष 2007 में निर्जलीकरण(डिहाइड्रेशन) के कारण अपनी 17 वर्षीय बेटी किरण की मृत्यु का सामना करना पड़ा। इससे पिपलांत्री को बदलने का उनका जुनून और बढ़ गया। अपनी बेटी किरण की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपनी बेटी किरण की याद में पहला पेड़ लगाया।

इससे पिपलांत्री गांव में क्रांति का विचार आया। पालीवाल इस बात से वाकिफ थे कि किस प्रकार से एक लड़की को जन्म से पहले ही मार दिया जाता था, श्री पालीवाल ने बेटी जन्म पर एक पेड़ लगाने के विचार को बढ़ाकर 111 पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा, इससे एक सामाजिक बदलाव की शुरुआत हुई। उनकी इस पहल के कारण अब तक 3 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए हैं और 700-800 फीट से नीचे का जल स्तर मात्र 5 वर्षों में 15 फीट ऊपर उठ गया है। इतना ही नहीं,पेड़ों को दीमक से बचाने और फलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए उनके चारों ओर 2.5 मिलियन से अधिक एलोवेरा के पौधे भी लगाए गए हैं। एलोवेरा उत्पादों से आर्थिक बदलाव भी आएं हैं, लोगों को रोजगार मिला है।

पाठकों को बताता चलूं कि गांव में ‘किरण निधि’ योजना की शुरुआत की गई, जिसमें पंचायत द्वारा बालिका के नाम पर बैंक खाता खोला जाता था और उसमें 21,000 रुपये की शुरुआती राशि जमा की जाती थी। माता-पिता (जो शेष 11000 रुपये का योगदान करते हैं) को एक हलफनामे पर हस्ताक्षर करना होता है, जिसमें वादा किया जाता है कि वे कन्या भ्रूण हत्या नहीं करेंगे या अपनी बेटी की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले नहीं करेंगे, और वे उसे शिक्षित करेंगे। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी बालिका शिक्षा से वंचित न रहे और उसके पास अपने भविष्य के लिए पर्याप्त धन हो।

इतना ही नहीं,श्री पालीवाल ने खदान प्रबंधन का मुद्दा अपने हाथों में ले लिया, क्यों कि मार्बल का फेंका गया कचरा एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा था और इससे गांव की जमीनें बंजर हो रहीं थीं।श्री पालीवाल को निर्मल ग्राम पंचायत पुरस्कार मिला और पुरस्कार स्वरूप 5 लाख रुपए मिले। श्री पालीवाल के कारण आज पिपलांत्री अपने प्राकृतिक संसाधनों पर एक आत्मनिर्भर और समृद्ध गांव है। इतना ही नहीं, महिला व्यवसाय और शिक्षा के विकास से बालिका सशक्तीकरण का मुख्य लक्ष्य पूरा हुआ है। वन्य जीवन में वृद्धि देखी गई है, जल संरक्षण हुआ है और गांव के लोग समृद्ध और खुशहाल हैं। श्री पालीवाल की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें वर्ष 2021 में प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि बेटी के जन्म को इस गांव में एक बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आज भी बेटी के जन्म पर यहां 111 पौधे लगाने की परंपरा जारी है। कहना ग़लत नहीं होगा कि राजस्थान के राजसमंद जिले का यह गांव लैंगिक समानता और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सामुदायिक भागीदारी का एक अनोखा, नायाब व खूबसूरत मॉडल प्रस्तुत कर रहा है।

सच तो यह है कि इस गांव की यह परंपरा महज एक रस्म नहीं, बल्कि आज एक सामाजिक आंदोलन बन चुकी है, जो समाज की मानसिकता को बदलने का कार्य कर रही है। गांव में हर नवजात बेटी के जन्म के साथ 111 पौधे लगाए जाते हैं, जो यह दर्शाता है कि यदि संकल्प सच्चा हो, तो इस दुनिया में कोई भी कार्य असंभव नहीं है। वास्तव में, गांव की यह अनूठी प्रथा न सिर्फ़ जीवन के उत्सव का प्रतीक है बल्कि पर्यावरण और लड़कियों दोनों के पोषण और सुरक्षा की शपथ भी है।

आज पौधारोपण के संकल्प से पूरे गांव की बयार बदल चुकी है। हर तरफ हरितिमा का आवरण आज नजर आता है। आज गांव में नीम, शीशम, आम और आंवला समेत अनेक प्रजातियां विद्यमान हैं।जल संरक्षण, वनस्पतियों का संरक्षण और साथ ही बेटियों की रक्षा का अनूठा संगम इसी गांव में देखने को मिलता है। मुहिम का असर इस कदर हुआ है कि आज बेटियों को बोझ नहीं, बल्कि गौरव का प्रतीक माना जाने लगा है। बहरहाल, कहना चाहूंगा कि पिपलांत्री का यह मॉडल लैंगिक समानता, जलवायु अनुकूलन, जैव-विविधता और टिकाऊ विकास(सस्टेनेबल डेवलपमेंट) का अनूठा प्रतीक बन चुका है।

वास्तव में, पर्यावरण संरक्षण और लैंगिक समानता के प्रति गांव के ऐसे समग्र दृष्टिकोण ने गांव को सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रगति के प्रतीक में बदल दिया है। अंत में, यही कहूंगा कि राजस्थान के राजसमंद के पिपलांत्री की यह कहानी महिला सशक्तीकरण, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जमीनी पहल को दिखाती है। हमें यह चाहिए कि हम राजसमंद के इस गांव से प्रेरणा लें और अपनी युवा पीढ़ी को इसके बारे में जानकारी दें ताकि वे पर्यावरण संरक्षण के साथ ही जल संरक्षण और बेटियों की सुरक्षा व संरक्षण के प्रति कृतसंकल्पित हों सकें।

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