बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय

विज्ञान रहस्य

सौर महा-विस्फोट

अनुवाद सावन कुमार बाग, मेहेर वान

वर्ष 1871 के सितंबर महीने में, एक अमेरिकी महान खगोलशास्त्री यंग ने जिस आश्चर्य से सौर-विस्फोट को देखा था, ऐसी प्रकांड घटना मनुष्य की आँखों के सामने फिर कभी नहीं हुई। यह विश्व को विराम की स्थिति में ले आने वाला अग्नि-विप्लव जैसा था, यह समुद्र-की ऊंची लहरों की तुलना दूध के कटोरे में दूध उबलने के साथ करने जैसा होगा।

जिन लोगों ने आधुनिक यूरोपियन खगोल-विज्ञानिकों का अच्छी तरह से अनुशीलन नहीं किया है, इस जटिल बात को उन्हें समझाने के लिए सूरज की प्रकृति के संबंध में दो-चार बातें बतानी ज़रूरी हैं।

सूरज एक अति-विशाल, तेज से परिपूर्ण गोला है। यह गोला हमें बहुत छोटा दिखता है, लेकिन यह असल में कितना बड़ा है, पृथ्वी का परिमाण बिना जाने यह समझ नहीं आएगा। यह ज्ञात है कि पृथ्वी का व्यास 7091 मील है। अगर पृथ्वी को एक मील लम्बाई और एक मील चौड़ाई के हिसाब से विभाजित किया जाये तो यह  19 करोड़ 6 लाख 26 हज़ार वर्ग किलोमीटर होती है। एक मील लम्बे, एक मील चौड़े और एक मील उंचे हिस्से काटने पर पृथ्वी के 259800000000 हिस्से मिलेंगे।

आश्चर्य है कि विज्ञान के बल पर पृथ्वी का वजन किया गया है। पृथ्वी का वजन टन में जितना पाया गया है, वह आगे एक संख्या के सहारे लिखा गया है। 6069000,000,000,000,000,000 टन। एक टन 27 मन (1 मन = 40 किग्रा) से भी अधिक है।

इन सब संख्याओं को देखकर मन अस्थिर हो जाता है। पृथ्वी कितनी बड़ी है, यह समझ में नहीं आता। अगर अब यह बोलूँ कि ऐसे और भी कई ग्रह और नक्षत्र हैं, जो पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़े हैं, तब क्या चौंक जाओगे? लेकिन असल में सूरज पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है। 13 लाख पृथ्वीयों को एक साथ रख देने से बनी वस्तु का आयतन सूरज के आयतन के बराबर हो जाएगा।

फिर हमें सूरज इतना छोटा क्यों दिखाई देता है? उसकी पृथ्वी से दूरी की वजह से। भूतकाल में हो चुकी गणनाओं के हिसाब से यह हम जानते थे कि पृथ्वी की सूरज से दूरी 9 करोड़ मील है। आधुनिक गणनाओं में पृथ्वी से सूरज की दूरी 9,16,78,000 मील सुनिश्चित हुई है, अर्थात 1 करोड़ 14 लाख, 45 हजार सात सौ पंचनबे योजन (1 योजन = 8 मील)। इस विशाल दूरी की कल्पना करना संभव नहीं है। 12000 पृथ्वीयाँ एक रेखा में, श्रंखला में सजाने से भी हम पृथ्वी से सूरज तक नहीं पहुंच पाएंगे।

इस दूरी की कल्पना करने के लिए एक उदाहरण देता हूँ। हमारे देश में ट्रेन 20 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है, अगर सूरज से पृथ्वी तक रेलवे पटरियाँ होतीं, तब हम कितने समय में सूरज तक पहुँच पाते? उत्तर है- अगर ट्रेन दिन-रात बिना रुके 20 मील प्रति घंटा की रफ्तार से चलती रहे तो 520 साल 6 महीने 16 दिन में हम सूर्य-लोक पहुँच सकते हैं अर्थात जो व्यक्ति उस ट्रेन में चढ़ेगा उसकी 17वीं पीढ़ी उसी ट्रेन में मर जाएंगी।

इतने समय में पाठक समझ गए होंगे कि जो सौर-मण्डल बहुत छोटे-छोटे दिखते हैं वह असल में बहुत बड़े हैं। जिस सूरज को हम एक रेत के कण के रूप में देख पाते हैं, उसका विस्तार भी लाखों कोस (1 कोस = 2 मील) तक हो सकता है।

लेकिन सूरज इतना उज्ज्वल है कि उसके शरीर में कुछ भी देख पाना संभव नहीं है, सूरज की तरफ देखने से हम अंधे हो जाते हैं, सिर्फ सूर्य-ग्रहण के समय इसका तेज़ चाँद के पीछे छुप जाता है, और हम इसे देख पाते हैं। तब भी सामान्य लोगों की आँखों के ऊपर स्याही लगा हुआ कांच रखे बिना इस तेजस्वी सूरज को नहीं देखा जा सकता।

उस समय अगर स्याही लगी हुई काँच को छोड़ कर, अच्छे दूरदर्शी से सूरज की तरफ देखा जाये, तब कुछ आश्चर्यजनक घटनाएँ नज़र आती हैं। पूर्ण ग्रहण के समय अर्थात जब चाँद के पीछे सूरज पूरा छुप जाता है, तब देखा गया है कि सूरज के चारों तरफ अपूर्व ज्योतिमय कीर्तिमण्डल उसे घेर कर रखती है। यूरोपीय विद्वान इसे कोरोना कहते हैं, लेकिन इस कीर्ति (मुकुट) मण्डल के अलावा भी और एक अद्भुत चीज़ कभी-कभी नज़र आती है। कीर्ति के मूल पर परछाई से ढँके हुये सूरज के शरीर में, उसके बाहर किसी अनजाने पदार्थ की उपस्थिति मिलती है।

यह पदार्थ इतने छोटे हैं कि टेलीस्कोप न हो, तो यह दिखाई नहीं देते, सिर्फ टेलीस्कोप से दिखाई देते हैं, इसलिए यह मान लेना पड़ा कि वह आकार में बड़े हैं। यह कभी-कभी 50000 मील ऊंचे देखे गए हैं। छह पृथ्वीयों को एक के ऊपर एक सजाने से भी इतना ऊंचा आकार नहीं बनेगा। इन सब उभरे हुए पदार्थों का आकार कभी पर्वत श्रंखला जैसा, कभी सूरज से अलग दिखाया गया है। इनका रंग कभी उज्ज्वल रक्त की तरह, कभी गुलाबी, कभी नीला होता है।

विद्वानों ने विशेष अनुमान के जरिए यह सुनिश्चित किया है कि यह सूरज के ही हिस्से हैं। पहले किसी ने विवेचना की थी कि ये सौर-पर्वत हैं। बाद में इन्हें सूरज से अलग होते हुये देखकर उस मत को नकार दिया गया।

अभी बिना किसी शक के यह प्रमाणित हुआ है कि ये विशाल पदार्थ सूरज के गर्भ से निकल कर आए हैं। जैसे पृथ्वी में ज्वालामुखी से पदार्थ और गैसीय चीज़ें निकल कर आती हैं, और यह पहाड़ के माथे पर बादल के आकार में दिखाई देते हैं, वैसे ही ये सौर-बादल हैं। ऊपर उठ रही यह चीजें जब तक सूरज से अलग होकर पुनः नीचे नहीं गिर जातीं, तब तक इन्हें पृथ्वी से बादल के आकार में देखा जा सकता है।

पाठक अब स्वयं यह सोच कर देखेँ, कि ऐसे एक सौर-बादल या सौर-स्तूप को टेलीस्कोप से देखकर कैसे पहचान कर सकते हैं। ऐसे समझना पड़ता है कि एक बहुत बड़े प्रकाशित क्षेत्र के साथ एक अनोखी क्रांतिकारी घटना घटी है। इस उत्पात काल में सूरज के गर्भ से निकली हुई पदार्थ-राशि, इस तरह इतने दूर तक फैल जाती है कि उसके अंदर पृथ्वी के आकार की बहुत सारी पृथ्वीयाँ डूब सकती हैं।

ऐसे सौर-उत्पात वैज्ञानिक यंग से पहले भी कई लोगों ने देखे हैं, लेकिन प्रोफेसर यंग ने जो देखा वह विशेष रूप से अजनबी है। प्रोफेसर यंग सुबह के 9 से 12 बजे के समय में टेलीस्कोप से सूरज को देख रहे थे। उस समय ग्रहण नहीं था। उसके पहले ग्रहण के समय को छोड़ कर किसी ने इन सब चीजों को नहीं देखा था। लेकिन डॉक्टर हिग्गिंस ने पहली बार ग्रहण के अलावा इन्हें देखने के उपाय बताए थे। प्रोफेसर यंग इस स्तर के विज्ञान-कुशल थे कि वह सूरज के भीषण तेज के समय भी सूरज के इन स्तूपों की फोटो लेने में कामयाब हो गए थे।

सुनने में आता है, प्रोफेसर यंग ने देखा था कि सूरज के ऊपरी भाग में एक बादल जैसा पदार्थ है। दूसरे उपायों से यह सिद्धान्त बना कि पृथ्वी जैसे हवा के आवरण से घिरी हुई है, सूर्य में भी वैसा ही है। वह बादल के जैसे पदार्थ वाली सौर हवाओं के ऊपर तैर रहा है। पाँच स्तंभों वाले आधार के ऊपर उस बादल को उठे हुये देखा गया। प्रोफेसर यंग पिछले दिनों 9 से 12 बजे तक यह देख रहे थे।

उसके बाद उन्हें इसमें परिवर्तन का कोई लक्षण नहीं दिखा। वह खंभे उज्ज्वल और बादल के आकार से बड़े थे, इसके अलावा बादलों की निविड़ता या चमक कुछ भी नहीं थी। यह सूक्ष्म सूत्रकार पदार्थों के संयोग की तरह दिखाई दे रहे थे। यह अपूर्व बादल सौर-वायु के पाँच हजार मील ऊपर तैर रहे थे। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि प्रोफेसर यंग ने इनकी चौड़ाई और लंबाई भी मापी। इसकी लंबाई लाखों मील और चौड़ाई 54000 मील थी। 12 पृथ्वीयों को श्रंखला में लगाने से उसकी लंबाई इसके बराबर नहीं होती। छः पृथ्वीयां श्रंखला में सजाने से उसकी चौड़ाई के बराबर नहीं होती।

12 बज कर 30 मिनट पर उन खंभों में अवस्था परिवर्तन के कुछ-कुछ लक्षण देखे गये। उस समय प्रोफेसर यंग साहब को टेलीस्कोप रख कर दूसरी जगह जाना पड़ा। 1 बजने में 5 मिनट बाकी थे, जब वह वापस आए तो उन्होंने वह चमत्कार देखा! नीचे से पैदा हुए किसी भयंकर बल से बादल बिखर कर इधर-उधर हो गए, उसके बाद सौर गगन में व्याप्त घना उज्ज्वल सूत्राकार पदार्थ सभी दिशाओं में ऊपर की तरफ भाग गया। यह सूत्राकार पदार्थ सब दिशाओं में प्रबल गति से ऊपर की तरफ भाग रहा है।

सबकी तुलना में यह गति ही चमत्कार है। प्रकाश या विद्युत धारा की शक्ति अलग है, वज़न वाले पदार्थ में ऐसी गति सुनने में नहीं आती। यंग साहब जब लौटकर आए थे, तब यह पदार्थ 1 लाख मील के ऊपर नहीं गया था। बाद में 10 मिनट के बीच में जो एक लाख मील था वह दो लाख मील हो गया। अगले 10 मिनट में 10 लाख मील की गति हो गई। हर सेकेंड में 165 मील गति बढ़ गई, अर्थात विस्फोट हुआ पदार्थ इसी गति से बढ़ता गया।

यह गति कितनी भयंकर है यह समझ पाना मुश्किल है। तोप का गोला बहुत ज़ोरों से भागता है तब भी 1 सेकेंड में ½ मील से ज़्यादा गति नहीं होती। इस सौर-पदार्थ की गति में सामान्यतः तोप के गोले के वेग से 100 गुना से भी ज़्यादा तेज़ है। यह बात कहनी गलत नहीं होगी।

सूरज के दो लाख मील ऊपर ऐसी गति देखी गई थी, जो पदार्थ दो लाख मील ऊपर इतना गतिमान है, निर्गम काल में उसकी गति कितनी होगी? सभी जानते हैं कि अगर हम एक पत्थर को ऊपर की तरफ फेंकते हैं तब वह जिस वेग से निकलता है वह गति अंत तक समान नहीं रहती। पत्थर की गति के कम होते जाने के दो कारण है, एक पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण और दूसरा हवा का प्रतिघर्षण।

यह दो कारण सूरज-लोक में भी उपस्थित हैं। जो चीज़ जितनी ज़्यादा भारी है, उसका गुरुत्वाकर्षण बल उतना ज़्यादा शक्तिशाली है, पृथ्वी की तुलना में सूरज का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की सतह से 28 गुना ज़्यादा है। उसको लांघ कर अगर कोई पदार्थ लाखों कोस ऊपर उठ जाता है तो वह सूरज को त्याग देता है। पहले उसकी गति प्रति सेकेंड में लगभग 166 मील थी, यह गणना से सिद्ध हुआ है, लेकिन इस गति से विस्फोटित होने से वह लाखों मील ऊपर उठ पाएगा, हालांकि लाखों मील की दूरी तय करके के बाद उसकी गति मात्र 166 मील प्रति सेकेंड हो गई होगी, ऐसा नहीं है। अंत में गति 65 मील प्रति सेकेंड मात्र होती है।

प्रॉक्टर साहब ‘गुडवर्ड’ में लिखते हैं, ‘अगर मान लिया जाता है कि सूरज में हवा का घर्षण नहीं है, तो यह उगला हुआ पदार्थ जो सूरज के बीच से निकल कर आया था। वह 500 मील प्रति सेकंड की गति से निकला था।‘

लेकिन सूरज-लोक में गैसीय पदार्थ नहीं है यह बात कह नहीं सकते। सूरज एक गरम वातावरण से ढंका हुआ है यह तय हुआ है। प्रॉक्टर साहब ने विभिन्न दिशाओं में सोचने के बाद यह माना है कि पृथ्वी में हवा के प्रतिरोध का जितना बल है, सूरज में भी अगर उतना ही बल हो तब यह पदार्थ जब सूरज के बीच से निकलता है, तब उसकी गति एक सेकेंड में लगभग 1000 मील होती है।

इस वेग की कल्पना करना मुश्किल है, इस गति से निकला पदार्थ 1 सेकेंड में भारतवर्ष को पार कर सकता है। 5 सेकेंड में कोलकाता से विदेश पहुँच सकता है। 24 सेकेंड में अर्थात 1 मिनट के आधे से भी कम समय में पृथ्वी को घूम कर वापस आ सकता है।

आश्चर्य की एक बात और है अगर हम कोई निर्जीव चीज़ ऊपर की तरफ फेंकते हैं तो वह फिर से नीचे आ कर गिरती है। इसका कारण यह है कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल और हवा के प्रतिरोध की वजह से फेंकी गई चीज़ का वेग कम हो जाता है। जब एक बार चीज वेगहीन हो जाती है, तब गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से फिर से आकर मिट्टी में गिरती हैं। सूरज-लोक में भी ऐसा होना संभव है लेकिन गुरुत्वाकर्षण बल या हवा के प्रतिरोध की शक्ति कभी असीम नहीं है। दोनों की एक सीमा है।

हालांकि ऐसी भी गति है जो इन दोनों को पराजित कर सकती है। यह गति कितनी है यह भी गणनाओं से पता चला है। जो वस्तु निर्गमन काल में 380 मील वेग से चलती है, वह गुरुत्वाकर्षण बल और हवा के प्रतिरोध को पार कर के आगे चली जाती है। अर्थात ऊपर की तरफ जाने वाली यह वस्तु फिर से लौटकर सौर-लोक में नहीं आती। प्रोफेसर यंग ने जिस सौर विस्फोट को देखा था वह ऊपर की जाने वाली चीज़ दोबारा लौट कर सौर-लोक में नहीं आयी थी। वह अनंत काल तक अनंत आकाश में धूमकेतु या किसी और ग्रह के रूप में मानी जाएगी, या उसका क्या होगा यह किसी को मालूम नहीं।

प्रोफेसर प्रॉक्टर साहब ने हिसाब लगाया कि सूरज से उछला हुआ पदार्थ लाखों कोस तक देखा गया था, लेकिन अदृश्य होने के बाद उसने अधिक दूरी तय नहीं की, ऐसा नहीं है। जब तक वह गरम और जल रहा था तब तक वह दिखाई दे रहा था। धीरे-धीरे ठंडा हो कर धुंधला हो गया और फिर उसे हम नहीं देख पाए । उन्होंने माना है कि वह 350 लाख मील ऊपर उठा था, अर्थात यह सूरज से निकाला हुआ पदार्थ अद्भुत है- यह लाखों मील फैला हुआ है, मनोगति, एक नई सृष्टि की शुरुआत है।

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