पुस्तक समीक्षा
मौ. वाजिद अली
हर इंसान अपने दिन की शुरुआत पानी के इस्तेमाल से करता है । पानी पीने के अलावा शौच, स्नान, कपड़े धोना, खाना बनाना, साफ-सफाई करना और अपने वाहनों को धोना आदि कामों में इस्तेमाल किया जाता है। पानी के बगैर जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती । बावजूद इसके हमारे घरों में, दफ्तरों में यहाँ तक की मीडिया में भी तमाम गंभीर मुद्दों के बीच पानी और उसके स्रोत जैसे नदी-तालाब- झरनों आदि के संरक्षण की चर्चा नहीं होती।
हालांकि, ऐसे बहुत सारे चिंतक हैं जो रात-दिन देश की नदियों के रखरखाव और उनके अस्तित्व को खत्म होने से बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जिनमें प्रवीण पांडेय का नाम शामिल है। हाल ही में प्रकाशित उनकी किताब “जलनिधियों को जीने दो” उसी का परिणाम है। प्रवीण पांडेय ने अपनी किताब के माध्यम से जन जागरूकता का काम किया ही है साथ ही हमें नदियों के असली मायने भी बताए हैं। वह कहते हैं –
“नदियाँ सिर्फ जलधाराएँ नहीं जीवनधाराएँ हैं। नदियाँ भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और आस्था की जीवनधारा हैं। भारत में नदियां विश्वास, आशा, संस्कृति और पवित्रता का प्रतीक हैं। यह लाखों लोगों की आजीविका का स्त्रोत हैं”।
यह कहना अतिशयोक्ति न होगी की हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी नदियों, तालाबों, झीलों को सहेजने जैसे मसलों से वास्ता नहीं रखती। यहाँ तक की नदियों, तालाबों और झीलों के विनाश का कारण जितनी फैक्ट्री और सरकारें हैं, उतने ही जिम्मेदार आम लोग हैं। समाज अपनी नदियों को सहेजने में असमर्थ रहा हैं। प्रवीण पांडेय ने कई गुमनाम नदियों के साथ कुछ तालाबों को भी इस पुस्तक में लिखा है । ऐसे तालाब जिन्हेें समाज के, लोगों ने परमार्थ के लिए निर्मित किया लेकिन उस पर लोग कब्जा कर बैठे। हर गाँव कस्बे में बहने वाली छोटी नदियों के लुप्त या दूषित होने पर इस किताब में खास ध्यान दिया गया हैं ।
इस पुस्तक के माध्यम से प्रवीण पांडेय ने हमारे सामने हमारी नदियों और तालाबों का हाल बयान किया है। साथ यह भी बताया है कि किस तरह यदि सामज को अपनी आने वाली पीढ़ी को धरती पर जीवन का बेहतर परिवेश देना है तो आज से ही नदी-तालाब को संभालने के प्रति गंभीरता से विचार करना होगा । भारत की नदियों और अन्य जल स्रोत के बारे में जानने और समझने के लिए “जलनिधियों को जीने दो” एक बेहतरीन पुस्तक साबित हुई है।
जलनिधियों को जीने दो, पूरे भारत की नदियों की बात करती है। सबसे महत्वपूर्ण बात इस पुस्तक की यह है की नदियों पर शोध करने वालों के लिए यह एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। जिस बारिकी इस किताब में नदियों की जानकारियाँ दी गई हैं सराहनीय है। हम सभी को यह किताब पढ़नी चाहिए साथ ही एक शोधकर्ता के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगी। इस पुस्तक के मुखय अध्याय हैं – नदियाँ बन रही नाला, गुम होते तालाब, भारत की जल संस्कृति आदि।
पुस्तक शीर्षक – जलनिधियों को जीने दो
लेखक – प्रवीण पांडेय
प्रकाशक – प्रवासी प्रेम पब्लिशिंग इंडिया
मूल्य – ₹370
पेज – 121