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बेंगलुरू के जल संकट का सबक

पंकज चतुर्वेदी

अभी दिवाली के बाद हुई बरसात में जो शहर कई–कई फुट पानी में डूबा था , गर्मी का आगाज़ होते ही  पानी की एक –एक बूँद को तरस  रहा है। भले ही बहाना  हो कि लगातार दो साल  से बरसात कम हो रही है और राज्य के 256 ताल्लुकों में सूखा घोषित है  लेकिन हकीकत यह है कि बंगलुरु जैसे पानीदार महानगर के यह हालात  पहले से दी गई चेतावनियों पर समय रहते सतर्क न रहने का दुष्परिणाम है। सन  2018 में जब दक्षिण अफी्रका के शहर  केपटाउन में पानी की भयंकर संकट के मद्देनजर दुनिया के जिन पंद्रह शहरों पर ‘शून्य जल’ स्तर के संकट का खतरा बताया था, उसमें भारत का एक ही नाम था  – बंगलूरू ।

‘शून्य जल’ स्तर यानि ना तो नलों से पानी की सप्लाई और ना ही नहाने या हाथ धोने को पानी उपलब्ध । आज शहर की जरूरत 2600 एम् एल डी है जबकि  कावेरी नदी से मात्र 460 मिल रहा है। कोई 1200 से अधिक नलकूप सूख चुके हैं। बरसात अभी कम से कम दो महीने दूर है और इसी लिए कई  स्कूल- कालेज-दफ्तर बंद कर दिए गए। पानी के दुरूपयोग पर पाँच हजार के जुर्माने सहित कई  पाबंदियाँ लगा दी गई है।

 

 यदि शहर  की जल कुंडली बांचें तो यह बात अस्वाभाविक सी लगती है क्योंकि यहां तो पग-पग पर जल निधियाँ है।  लेकिन जब इस ‘कुंडली’ की ‘गृह दशा’ देखें तो स्पष्ट होता है कि अंधाधुंध शहरीकरण और उसके लालच में उजाड़ी जा रही पारंपरिक जल निधियों व हरियाली का यदि यही दौर चला तो बंगलूरू को केपटाउन बनने से कोई नहीं रोक सकता । सरकारी रिकार्ड के मुताबिक नब्बे साल पहले

बेंगलुरू शहर  में 2789 केरे यानी झील हुआ करती थीं। सन साठ आते-आते इनकी संख्या घट कर 230 रह गई। सन 1985 में शहर  में केवल 34 तालाब बचे और अब इनकी संख्या तीस तक सिमट गई हे। जल निधियों की बेरहम उपेक्षा का ही परिणाम है कि ना केवल शहर  का मौसम बदल गया है, बल्कि लोग बूंद-बूंद पानी को भी तरस रहे हैं। वहीं ईएमपीआरइाई यानी सेंटर फार कन्सर्वेसन, इनवारमेंटल मेनेजमेंट एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपनी रपट में कहा है कि बेंगलुरू में फिलहाल 81 जल-निधियों का अस्तित्व बचा है, जिनमें से नौ बुरी
तरह  और
22 बहुत  कुछ दूषित  हो चुकी हैं।

शहर की आधी आबादी को पानी पिलाना टीजीहल्ली यानि तिप्पा गोंडन हल्ली तालाब के जिम्मे है । इसकी गहराई 74 फीट है । लेकिन 1990 के बाद से इसमें अरकावति जलग्रहण क्षेत्र से बरसाती पानी की आवक बेहद कम हो गई है । अरकावति के आसपास कालोनियों, रिसोर्ट्स और कारखानों की बढ़ती संख्या के चलते इसका प्राकृतिक जलग्रहण क्षेत्र चौपट हो चुका है । इस तालाब से 140 एमएलडी(मिलियन लीटर डे) पानी हर रोज प्राप्त किया जा सकता है । चूंकि तालाब का जल स्तर दिनों-दिन घटता जा रहा है, सो बंगलूरू जल

प्रदाय संस्थान को 40 एमएलडी से अधिक पानी नहीं मिल पाता है। इस साल फरवरी में तालाब की गहराई 15 फीट से कम हो गई । पिछले साल यह जल स्तर 17 फीट और उससे पहले 26 फीट रहा है । बंगलूरू में पानी की मारा-मार चरम पर है । गुस्साए लोग आए रोज तोड़-फोड़ पर उतारू हैं ।  परंतु उनकी जल गगरी ‘टीजी हल्ली’ को रीता करने वाले कंक्रीट के जंगल यथावत फलफूल रहे हैं ।

बंगलूरू के तालाब सदियों पुराने तालाब-शिल्प का बेहतरीन उदाहरण हुआ करते थे । बारिश चाहे जितनी कम हो या फिर बादल फट जाएं, एक-एक बूंद नगर में ही रखने की व्यवस्था थी । ऊंचाई का तालाब भरेगा तो उसके कोड़वे(निकासी) से पानी दूसरे तालाब को भरता था । बीते दो दशकों के दौरान बंगलूरू के तालाबों में मिट्टी भर कर कालेनी बनाने के साथ-साथ तालाबों की आवक व निकासी को भी पक्के निर्माणों से रोक दिया गया । पुट्टन हल्ली झील की जल क्षमता 13.25 एकड़ है ,जबकि आज इसमें महज पांच एकड़ में पानी आ पाता है। जरगनहल्ली और मडीवाला तालाब के बीच की संपर्क नहर 20 फीट से घट कर महज तीन फीट की रह गई ।

अल्सूर झील को बचाने के लिए गठित फाउंडेशन के पदाधिकारी राज्य के आला अफसर हैं । 49.8 हेक्टेयर में फैली इस अकूत जलनिधि को बचाने के लिए जनवरी-99 में इस संस्था ने चार करोड़ की एक योजना बनाई थी । अल्सूर ताल को दूषित करने वाले 11 नालों का रास्ता बदलने के लिए बंगलूरू महानगर पालिका से अनुरोध भी किया गया था । कृष्णम्मा गार्डन, डेविस रोड़, लेज़र रोड़, मोजीलाल गार्डन के साथ-साथ पटरी रोड कसाई घर व  धोबी घाट की 450 मीट्रिक गंदगी इस जलाशय में आ कर मिलती है ।

समिति ने कसाई खाने क अन्यंत्र हटाने की सिफारिश भी की थी । लेकिन खेद है कि अल्सूर को जीवित रखने के लिए कागजी घोड़ों की दौड़ से आगे कुछ नहीं हो पाया । इस झील का जलग्रहण क्षेत्र(केचमेंट एरिया) 11 वर्ग किमी है , जिस पर कई छोटे-बड़े कारखाने जहर उगल रहे हैं । जाहिर है कि यह गंदगी बेरोक-टोक झील में ही मिलती है . बेलंदूर, जो शहर  के दक्षिण-पूर्व में स्थित है और आज भी यहां की सबसे बड़ी झील है। इसका क्षेत्रफल 148 वर्गकिमी यानि कोई 37 हजार एकड़ है।  कल्पना करें कि 3.6 किलोमीटर लंबी झील , जिसका अतिरिक्त पानी बह कर अन्य झील वर्तुर में जाता है और आगे चल कर यह जल निधि पेन्नियार नदी में मिलती है।

हैब्बाल तालाब , चेल्ला केरे झील को तो देवन हल्ली में बन रहे नए  इंटरनेशनल एयरपोर्ट तक पहुंचने के लिए गढ़े जा रहे एक्सप्रेस हाईवे का ग्रहण लग गया है । कोई एक सदी पहले किसी दानवीर द्वारा गढ़े गए कामाक्षी पाल्या तालाब से तो अब इलाके के बांशदों ने तौबा कर ली है । वे चाहते हैं कि किसी भी तरह यह झील पाट दी जाए । शहर के कई तालाबों को सुखा कर पहले भी मैदान बनाए गए हैं । कर्नाटक गोल्फ क्लब के लिए चेल्ला घट्टा झील को सुखाया गया , तो कंटीरवा स्टेडियम के लिए संपंगी झील से पानी निकाला गया ।

अशोक नगर का फुटबाल स्टेडियम षुल्या तालाब हुआ करता था तो साईं हाकी स्टेडियम के लिए अक्कीतम्मा झील की बलि चढ़ाई गई । मेस्त्री पाल्या झील और सन्नेगुरवन हल्ली तालाब को सुखा कर मैदान बना दिया गया है । गंगाशेट्टी व जकरया तालाबों पर कारखाने खड़े हो गए हैं । आगसना तालाब अब गायत्रीदेवी पार्क बन गया है । तुमकूर झील पर मैसूर लैंप की मशीनें हैं ।

असल में ये झीलें केवल पानी ही नहीं जोडती थीं, अधिक बरसात होने पर जलभराव का निदान भी इनमें था। शहर के भूजल को बरक़रार रखना, बगीचों का शहर कहे जाने वाले बंगलुरु महानगर के मौसम के मिजाज को भी नियंत्रित करती थीं।  यदि आज भी शहर की सभी झीलों को सहेजना शुरू किया जाय  तो बंगलुरु को फिर से “केरे” का शहर बनाया जा सकता है।

बंगलूरू : कैसे कंक्रीट के जंगल लील गए तालाबों को

बीते दो दशकों के दौरान बंगलूरू शहर  की कई बड़ी झीलों को पहले दूशित किया गया, फिर उन्हें पाटा गया और उसके बाद उनका इस्तेमाल शहरीकरण के लिए हो गया। इसी का परिणाम है कि थोड़ी सी बारिश में अब शहर में बाढ़ आ जाती है और गर्मी से पहले ही  जल संकट । वहाँ का मौसम अब इतना खुशगवार रहता नहीं है। शहर  की कुछ ऐसी झीले जो देखते ही देखते नए अवतार में आईं।

 

                                     

क्रमांक पहले
यहां तालाब था             आज यहां  यह है

1.       मारेन हल्ली झील        मरेनाहल्ली कालोनी

2.       चैन्नागेरे झील     इजीपुरा कालोनी

3        सारक्की अग्रहारा झील/डोरसानिपाल्या जे पी नगर फेज –4

4.       चलंगघट्टा ताल कर्नाटक गोल्फ क्लब

5.       दोमलुरू झील  दोमलुरू कालोनी स्टेज-2

6        सिद्धपुरा झील  सिद्धपुरा/जयनगर आई ब्लाक

7.       गेद्दला हल्ली    आरएमवी स्टेज-2, ब्लाक-2

8.       नागेशेट्टीहल्ली  आरएमवी स्टेज-2, ब्लाक-2

9.       कदिरेन हल्ली   बनशंकरी स्टेज-2

10.     त्यागराज नगर झील     त्यागराज नगर

11.     तुमकुर ताल     मैसूर लैंप

12      रामशेट्टी पाल्य केरे       मिल्क कालोनी खेल का मैदान

13.     अगसना झील  गायत्रीदेवी पार्क

14.     कट्टेमारन हल्ली लेक    महालक्ष्मीपुरम

15      गंगा षेट्टी लेक  मिनर्वा मिल्स और मैदान

16      जकरया झील   कृश्णा फ्लोर मिल्स

17      धर्मामबुधि झील         केंपेगोडा बस टर्मिनल

18      अग्रहार होसेकेरे चेलुवाडीपाल्या

19      कलासि पाल्या लेक     कलासि पाल्या कालोनी

20      संपंगी लेक      कंटिरवा स्टेडियम

21      षुले तालाब     अशोक नगर फुटबाल स्टेडियम

22      अक्कीतिम्मा ताल       साई हॉकी स्टेडियम

23      सुंकला लेक     कर्नाटक राज्य परिवहन निगम का वर्कशाप

24      कोरामंगला झील        नेशनल डेयरी रिसर्च इन्स्टीट्यूट

25      कोडीहल्ली झील        न्यू तिप्पेसंदरा/सरकारी भवन

26      हॉसकेरे रेसीडेंशियल रेलवे स्टॉक यार्ड

27      सोन्नेनहली झील        आस्टीन टाउन(आरईएस कालोनी)

28      गोकुला तालाब मोतीकेरे कालोनी

29      विद्यारन्यापुरा झील      जालहल्ली ईस्ट कालोनी

30      काडुगोंडाहल्ली लेक   काडुगोंडाहल्ली कालोनी

31      हेन्नूर झील      नागावारा (एचबीआर लेआउट)

32      बाणसवाड़ी तालाब     सुब्बपाल्या एक्सटेंशन नगर

33      चेन्नासंद्रा झील पुल्ला रेड्डी लेआउट

34      विजिनापुरा ताल(कोत्तुरू)        राजराजेश्वरी लेआउट

35      मुरगेशपल्या लेक        मुरगेशपल्या

36      परंगीपलया लेक         एचएसआर लेआउट

37      मेस्ट्रीपलया झील        मेस्ट्रीपलया मैदान

38      टिंबर यार्ड झील          टिंबर यार्ड लेआउट

39      गंगोदनाहल्ली लेक      गंगोदनाहल्ली बस्ती

40      विजय नगर कॉर्ड रोड झील      विजय नगर

41      उदरापल्या झील         राजाजीनगर औद्योगिक क्षेत्र

42      सानेगुरूवन हल्ली       शिवनहल्ली खेल का मैदान

43      कुरूबरहल्ली झील      बसवेश्वर नगर